राकेश पालीवाल।
भले ही बड़ी बड़ी समस्याओं और जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौती के समाधान के लिए गांधी की तरफ पूरे विश्व के बुद्धिजीवी देख रहे हों लेकिन अपने देश का एक प्रभावशाली तबका, जिसमें बड़े मीडिया समूह भी शामिल हैं, गांधी से सायास परहेज करता साफ दिखाई देता है।
इससे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति क्या हो सकती है कि कल गांधी की पुण्यतिथि पर बहुत सी संस्थाओं और स्कूल कालेजों में गांधी पर कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम आयोजित किए गए थे। लेकिन बड़े अखबारों में उनका कोई जिक्र तक नहीं है।
विज्ञापन के झूठ और फिल्मी नायक नायिकाओं के अर्धनग्न फोटो प्रकाशन को वरीयता देने वाले मीडिया से गांधी जैसी सत्य,सादगी और सेवा की प्रतिमूर्ति को आगे बढ़ाने की कम ही उम्मीद की जा सकती है लेकिन गांधी की पुण्यतिथि के समाचारों तक से परहेज लोकतंत्र के तथाकथित चौथे स्तंभ कहलाने वाले मीडिया की विश्वसनीयता को बहुत नीचे गिराता है।
क्या गांधी के 150 वें जयंती वर्ष में मीडिया में काम करने वाले सजग और संवेदनशील पत्रकार और सम्पादक इस विषय पर कुछ आत्मचिंतन कर अपने आकाओं को आइना दिखाने का प्रयास करेंगे !
लेखक मुख्य आयकर आयुक्त हैं। यह आलेख उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है।
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