ममता यादव।
अभी तो मध्यप्रदेश में चुनाव हुए नहीं न ही सरकार बनी तब ये तेवर। कांग्रेस के अध्यक्ष बदलने के साथ ही मीडिया की टीम बदली गई।
साहब नए मीडिया प्रभारी के आते ही कई मीडिया के दिग्गजों वरिष्ठ पत्रकारों तक को सूचना पहुंचना बन्द हो गई।
जब दो एक पत्रकारों ने जाकर बात की तो साथ में और 10-15 नाम जुड़ गए जो हटा दिए गए थे।
जबतक बाकी लोग नए मीडिया प्रभारी के पास शिकायत लेकर जाते तब तक उनकी विदाई हो गई। अब नई मीडिया प्रभारी भी आ गईं। ईमेल आदि जिन पर डेली ब्रीफिंग आती है करीब दो महीने से बन्द है। बीच में जुड़ गए फिर हट गए।
तर्क दिया गया मेंटेनेंस चल रहा है। कांफ्रेंस आदि की सूचनाएं भी नहीं मिलतीं। बीच में एक नई परम्परा का भी आभास हुआ।
राष्ट्रीय नेताओं की पत्रकार वार्ता की सूचना तो ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचती मगर स्थानीय की गायब। ये शिकायत आधे से ज्यादा मीडिया की है ये वो लोग हैं जो सालों से जुड़े हुये थे।
कुछ भी कहिये पुराने अध्यक्ष के समय के मीडिया प्रभारी का पीआर भी बेहतर था और पूरे मीडिया से व्यवहार भी बेहतर था। वैसे इस मामले में भाजपा हमेशा एक सी रही। हालांकि भाजपा में अध्यक्ष बदलने के साथ मीडिया प्रभारियों की टीम नहीं बदली जाती सो उन्हें तारतम्य बिठाने में बार-बार मेहनत भी नहीं करनी पड़ती।
पर कांग्रेस में अध्यक्ष क्या बदले पूरे घर के बदलने की तर्ज़ पर मीडिया प्रभारी भी बदल जाते हैं। यूँ नेता प्रतिपक्ष के यहां का मीडिया विभाग कार्यालय से तो बेहतर ही चलता है।
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