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राजकुमार केसवानी को याद कर बोले पत्रकार गैस हादसे के बाद दुनिया भर के पत्रकारों की जरूरत बन गए थे केसवानी

मीडिया            May 17, 2022


मल्हार मीडिया भोपाल।
सारी दुनिया को हिला देने वाले गैस हादसे के खतरे से सरकार को लगातार आगाह करने वाले पत्रकार राजकुमार केसवानी को हादसा न रोक पाने का मलाल उम्र भर रहा।

गैस त्रासदी के बाद वे एक तरह से दुनिया भर के पत्रकारों की ‘जरूरत’ बन गए थे। उनकी बातचीत में भले ही खुरदुरापन हो लेकिन उनका लेखन मखमली था।

इस तरह के विचार आज माधवराव सप्रे संग्रहालय के सभागार में सुनाई दिए। अवसर था प्रसिद्ध पत्रकार,लेखक और स्तंभकार राजकुमार केसवानी की याद में आयोजित स्मरण सभा का।

स्व. केसवानी की प्रथम पुण्यतिथि 21 मई के पूर्व सप्रे संग्रहालय द्वारा इस सभा का आयोजन किया गया था।

जिसमें पत्रकारिता, साहित्य और कला-संस्कृति से जुड़े लोगों ने उन्हें याद किया. पूर्व प्रशासनिक अधिकारी ओपी दुबे ने उन्हें याद करते हुए कहा कि गैस हादसे के बाद वे दुनिया भर के पत्रकारों की जरूरत थे।

उन्होंने बताया कि गैस हादसे के बाद भोपाल कलेक्टर का जिम्मा मिला था, तब देखा था इस त्रासदी की रिपोर्टिंग करने विदेशों से आये पत्रकार पहले केसवानी जी को ही खोजते थे।

व्यक्तिगत संबंधों का जिक्र करते हुए कहा कि एक पत्रकार के रूप में नहीं बल्कि एक पारिवारिक मित्र के रूप में हमारे संबंध रहे।

वरिष्ठ पत्रकार अभिलाष खांडेकर ने कहा कि केसवानी जी को भोपाल और भोपाल हादसे क बारे विशेषज्ञता थी लेकिन वे हर विषय की जानकारी रखते थे।

जिस तरह से उन्होंने युनियन कार्बाइड मामले को उठाया उससे साबित होता है कि वे सही मायने में पत्रकार थे। नए पत्रकारों ने उनसे बहुत कुछ सीखा है।

आपसी व्यवहार में कभी रुखापन प्रतीत होता था लेकिन फिर भी लोग उन्हें प्यार करते थे। टीवी पत्रकार ब्रजेश राजपूत ने कहा कि उनके व्यक्तिव या व्यवहार में भले ही तीखापन हो लेकिन वे दुर्लभ व्यक्तिव के धनी थे।

वे फिल्मों के इनसाइक्लोपीडिया थे, जिसकी बानकी उनके साप्ताहिक स्तंभ ‘आपस की बात ’ में सहज ही देखी जा सकती थी।

उनके पास दुर्लभ किताबों और दुर्लभ जानकारियों का खजाना था। फिल्म अभिनेता राजीव वर्मा ने कहा कि बचपन में हम मोहल्लेदार थे, इसलिए जीवन भर उन्हें उसी नजर से देखा। कभी एक पत्रकार के नजरिये से नहीं देखा था।

भोपाल त्रासदी के पहले और बाद के सच को बड़ी बेबाकी से दुनिया के सामने रखा था। पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता राकेश दीवान ने कहा कि उन्होंने फिल्म या राजनीतिक पत्रकारिता ही नहीं कि बल्कि पर्यावरण के मसले पर भी उनकी कलम चली।

नर्मदा आंदोलन से जुड़े लोगों के प्रति कई लोगों को अविश्वास था लेकिन केसवानी जैसे कुछ ही पत्रकार थे जिन्हें हम पर भरोसा था और वे बांध प्रभावितों की आवाज द भी उठाते थे।

वरिष्ठ पत्रकार चंद्रकांत नायडू ने कहा कि उनका और मेरा संबंध एक पत्रकार का नहीं बल्कि कॉलेज में मुझसे जूनियर का था। इस नाते भी वे मेरा सम्मान करते थे। वे निश्छल व्यक्ति थे। उन्होंने पत्रकारिता का पूरा धर्म निभाया।

स्तंभकार आरिफ मिर्जा ने कहा कि उन्होंने पेशेवर पत्रकारिता नहीं की बल्कि पत्रकारिता को जिया। उनके स्वभाव में भले ही रुखापन था लेकिन वे सरस भी थे।

वे एक तितली की तरह थे, उन्हें पकड़ने जाओ तो हाथ नहीं आये लेकिन कब आपके बदन पर आकर बैठ जायें कह नहीं सकते। उनका भाषा शिल्प अद्भुत था। वे विशुद्ध हिंदी नहीं बल्कि हिंदुस्तानी भाषा लिखते थे।

उनके सहयोगी रहे अनुराग द्वारी ने कहा कि उनके साथ बहुत कुछ सीखा। यह भय जरूर रहता था कि कब उखड़ जायें लेकिन चीजों को पकड़ना और उसे अलग नजरिये से देखना यह उनसे ही सीखा था।

इसी तरह के विचार उनके कैमरामैन रिजवान के भी थे। उन्होंने ईमानदारी से स्वीकार किया कि आज जहां भी हूं उनकी बदौलत ही हूं। उनकी झिडक़ी या डांट का डर बना रहता था लेकिन साथ काम करने में मजा भी आता था।

सभा में उनके साथी रहे अनेक लोगों का मानना था कि बातचीत व्यवहार में रुखापन जरूर था, लेकिन वे इस जरिए अपने लिए एक ‘स्पेस’ रखते थे। ताकि कोई व्यर्थ समय जाया नहीं करे। उनके सहयोगी रहे मनीष समंदर ने कहा कि वे ज्ञान पाने वाले व्यक्ति और ज्ञान देने वाले व्यक्ति दोनों की पहचान रखते थे। इसलिए वे अपने पास ज्यादा लोगों को आने नहीं देते थे।

वे बड़े तरीके से बड़ा काम नहीं करते थे बल्कि छोटे तरीके से बड़ा काम करने वाले थे। इसी तरह राजेश बादल ने भी कहा कि यह धारणा ठीक नहीं कि वे ‘कडक़’ थे। जो व्यक्ति कला-संस्कृति की इतनी गहरी समझ रखता हो वे ‘कड़क’ हो ही नहीं सकता।

उन्होंने अपनी लेखनी से भोपाल की पहचान समंदर पार तक पहुंचाई। उनकी ‘काशगोल’ नामक पुस्तक ‘दास्तान-ए- मुगल-ए- आजम’ की तरह ही है।

विजय तिवारी ने कहा कि वे एक जिद्दी व्यक्ति थे, इसीलिए उन्होंने कभी पेशे से समझौता नहीं किया था।

देशदीप सक्सेना ने कहा स्वभाव में अक्खड़पन उनकी खूबी थी। वे किसी भी राजनेता के आगे झुके नहीं। उनकी तरह पत्रकारिता कर ही हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दे सकेंगे।

आरंभ में सप्रे संग्रहालय के संस्थापक निदेशक विजयदत्त श्रीधर ने कहा कि केसवानी जी का व्यक्तिव और कृतित्व में भोपाल समाया था। यहां का हर व्यक्ति उनसे किसी न किसी रूप में जुड़ा था।

जिस समय उनकी मृत्यु हुई वह ऐसा दौर था जब हम उन्हें कांधा देना तो दूर श्रद्धांजलि तक नहीं दे पाये थे। ऐसे में जरूरी था कि इस तरह की स्मरण सभा हो जिसमें हम सब उन्हें श्रद्धांजलि दे सकें।

यह सभी उस कमी की भरपाई का प्रयास है। कार्यक्रम का संचालन जनसंपर्क विभाग के पूर्व अपर संचालक रघुराज सिंह ने किया।

आभार उनके छोटे भाई शशि केसवानी ने व्यक्त किया। इस अवसर पर संग्रहालय की निदेशक मंगला अनुजा, रंगकर्मी रीता वर्मा, केसवानी जी की धर्मपत्नी, पुत्र रौनक तथा अन्य परिजन मौजूद रहे। मालूम हो कि कोरोना की दूसरी लहर में गत् वर्ष 21 मई को केसवानी का निधन हो गया था।

भारतीय पत्रकारिता पर केंद्रित पुस्तक भेंट
कार्यक्रम में भारतीय पत्रकारिता पर आई पुस्तक ‘ब्रेकिंग द बिग स्टोरीज ग्रेट मूमेंट ऑफ इंडियन जर्नलिज्म’ की प्रति ओपी दुबे ने संग्रहालय को सौंपी। वरिष्ठ पत्रकार बीजी बर्गिस के संपादन में निकली इस किताब में भारतीय पत्रकारिता की नौ प्रमुख स्टोरीज हैं। इनमें सबसे पहली गैस हादसे पर राजकुमार केसवानी द्वारा लिखी स्टोरी है।

 



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