शिवराज सरकार का साहिसक फैसला:आजीवन कारावास काट रहे रेपिस्ट आतंकी, ड्रग स्मगलर्स अब आखिरी सांस तक रहेंगे जेल में

खास खबर, राष्ट्रीय            Sep 01, 2022


मल्हार मीडिया भोपाल।

मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने जेल में सजा काट रहे रेपिस्टों,आतंकियों और नशीले पदार्थों के अवैध व्यवसाय के अपराधियों के संबंध में साहिसक फैसला लिया है। इसके तहत आजीवन कारावास की सजा प्राप्त इन अपराधों के बंदियों को नई नीति के जघन्य अपराधियों को कोई राहत नहीं मिलेगी।

दस राज्यों की नीतियों के अध्ययन के बाद यह प्रस्तावित नीति तैयार की गई है।

हालांकि नीति परिवर्तन का यह फैसला ऐसे समय में आया है जब गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो केस के सभी आरोपियों को अच्छे आचरण के कारण रिहा कर दिया है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में आज मंत्रालय में विभिन्न अधिनियमों में आजीवन कारावास से दंडित बंदियों की रिहाई की अवधि की प्रस्तावित नीति -2022 पर चर्चा हुई। वर्तमान में प्रदेश में वर्ष 2012 की नीति लागू है।

गौरतलब है कि वर्तमान में प्रदेश के 131 जेलों में 12 हजार से अधिक बंदी आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं।

आजीवन कारावास की सजा प्राप्त बंदियों के संबंध में जो नई नीति तैयार की गई है, उसमें जघन्य अपराधियों को कोई राहत नहीं मिलेगी।

आतंकी गतिविधियों और नाबालिगों से बलात्कार के अपराधियों का कारावास 14 वर्ष में समाप्त नहीं होगा।

मध्यप्रदेश में ऐसे अपराधियों को अंतिम साँस तक कारावास में ही रहने की नीति बनाई गई है।

ऐसे अपराधियों में विभिन्न अधिनियम में आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त पाए गए दोषी, नाबालिग से बलात्कार के दोषी, गैंगरेप के दोषियों, जहरीली शराब बनाने, विदेशी मुद्रा से जुड़े अपराधों, दो या दो से अधिक प्रकरण में हत्या के दोषी को अब अंतिम साँस तक जेल में रहना होगा।

शासकीय सेवकों की सेवा के दौरान हत्या का अपराध करने वाले दोषी भी शामिल होंगे। इसी तरह राज्य के विरुद्ध अपराध और सेना के किसी भी अंग से संबंधित अपराध घटित करने वाले अपराधी भी किसी रियायत का लाभ नहीं ले सकेंगे।

इन सभी के लिए नई नीति लागू नहीं होगी। इन अपराधों में आजीवन कारावास से दंडित बंदियों को अब जेल में ही अंतिम सांस तक रहना होगा।

आजीवन कारावास से दंडित धारा 376 के दोषी बंदी भी 20 वर्ष का वास्तविक कारावास और परिहार सहित 25 वर्ष पूर्ण करने से पहले जेल से रिहा नहीं हो सकेंगे। जिन आजीवन कारावास के बंदियों को 14 साल या 20 साल की वास्तविक सजा के बाद रिहाई की पात्रता बनेगी वह भी तभी रिहा होंगे जब कलेक्टर, एसपी और जिला प्रोसीक्यूशन आफिसर की अनुशंसा होगी और जेल मुख्यालय द्वारा उक्त अनुशंसा के आधार पर राज्य सरकार को भेजा जाएगा और जिसमें राज्य सरकार की स्वीकृति होगी।

पूर्व में लागू वर्ष 2012 की नीति में साल में दो बार आजीवन कारावास काट रहे बंदियों के रिहाई की नीति के अनुसार तथा जिला स्तरीय समिति की अनुशंसानुसार जेल मुख्यालय द्वारा कार्यवाही की जाती थी।

अब वर्ष में चार बार 15 अगस्त, 26 जनवरी, 14 अप्रैल और 2 अक्टूबर को नवीन नीति के प्रावधान तथा जिला स्तरीय समिति एवं जेल मुख्यालय की अनुशंसा पर राज्य सरकार की अनुमति से की जाएगी।

बलात्कार के दोषियों के साथ कोई रियायत नहीं

मुख्यमंत्री ने कहा कि आजीवन कारावास के ऐसे बंदी जो अच्छे व्यवहार, आचरण आदि के कारण समय पूर्व रिहाई का लाभ लेते हैं, वे अलग श्रेणी के हैं और आतंकी, बलात्कारी बिल्कुल अलग श्रेणी के अपराधी हैं।

बलात्कार के मामलों में किसी भी स्थिति में बंदियों को समय पूर्व रिहाई का लाभ नहीं मिलना चाहिए। ऐसे अपराधी समाज विरोधी हैं।

कारावास में रिहाई का अर्थ सिर्फ सदव्यवहार और आगे अपराध मुक्त जीवन का संकेत देने वाले अपराधियों पर ही लागू हो सकता है।

एक बार इस तरह का गंभीर अपराध करने वाले आगे ऐसा अपराध नहीं करेंगे, इसकी गारंटी कौन ले सकता है।

उन्होंने कहा कि जागरूकता अभियान से बलात्कार के मामलों में कमी लाने के लिए एक कार्य-योजना पर भी अमल किया जाए।

मुख्यमंत्री ने निर्देश दिए कि कम उम्र की बालिकाओं के साथ यौन अपराध करने वाले अपराधियों को सख्त से सख्त सजा के मौजूदा प्रावधानों को सख्ती के साथ बनाए रखना आवश्यक है।

उल्लेखनीय है कि दस राज्यों की नीतियों के अध्ययन के बाद यह प्रस्तावित नीति तैयार की गई है। इसके लिए अपर मुख्य सचिव गृह की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति गठित की गई थी। समिति के दो अन्य सदस्यों में प्रमुख सचिव, विधि और महानिदेशक जेल शामिल थे।

मुख्यमंत्री ने निर्देश दिए कि एंटी गैम्बलिंग एक्ट (ऑन लाइन गैम्बलिंग के विरूद्ध प्रावधान के साथ), पब्लिक सैफ्टी एक्ट और गैंगस्टर एक्ट के प्रस्ताव शीघ्र तैयार कर प्रस्तुत किए जाएँ, जिससे इन्हें राज्य में लागू करने की दिशा में कार्यवाही शीघ्र हो सके।

गृह एवं जेल मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा, मुख्य सचिव श्री इकबाल सिंह बैंस, अपर मुख्य सचिव गृह एवं जेल डॉ. राजेश राजौरा और संबंधित वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

 

 



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