मल्हार मीडिया डेस्क।
अमेरिका के ट्रंप प्रशासन की ओर से देश का सैन्य खर्च 10 प्रतिशत तक बढ़ाने के घोषणा के बाद चीन ने भी कहा है कि वह इस साल अपने रक्षा खर्च को करीब सात प्रतिशत तक बढ़ाएगा। दरअसल दक्षिण चीन सागर विवाद के बीच चीन अपनी नौसेना की ताकत बढ़ाने में जुटा है।
चीनी संसद द नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (NPC) की प्रवक्ता फू यिंग ने रक्षा खर्च को बढ़ाए जाने की घोषणा की है। उन्होंने कहा कि चीन का रक्षा खर्च देश के सकल घरेलू उत्पाद का 1.3 प्रतिशत रहेगा।
चीन की नौसेना को आने वाले सालाना रक्षा बजट में काफी फंडिंग मिलने की उम्मीद है। बीजिंग समुद्र में अमेरिका के प्रभुत्व को चुनौती देना चाहता है। पिछले कुछ महीनों से चीनी नौसेना की भूमिका काफी अहम हो गई है। चीन का पहला एयरक्राफ्ट कैरियर स्वशासित ताइवान के इर्द-गिर्द चक्कर काट रहा है। चीन के कई नए जंगी जहाज कई दूर-दराज के हिस्सों में देखे जा रहे हैं। ऐसा नहीं कि चीन ने खुद को सैन्य क्षमताओं में मजबूत करने की यह मुहिम हाल-फिलहाल शुरू की है। पिछले लंबे समय से वह लगातार अपनी सैन्य क्षमताएं बढ़ाने और सेना के आधुनिकीकरण की कोशिशों में जुटा हुआ है। पिछले 15-20 सालों में चीन ने इसके लिए पानी की तरह पैसा भी बहाया है।
रक्षा खर्च के मामले में शीर्ष पर 622 अरब डॉलर के खर्च के साथ अब भी अमेरिका ही है। इस सूची में दुनिया में दूसरे नंबर चीन है। आईएचएस जेन की वार्षिक रक्षा बजट रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के अतिरिक्त समूचे यूरोप तथा चीन समेत सारी दुनिया में उभरते विवादों तथा अस्थिरता के दौर की वजह से अगले दशक के दौरान रक्षा व्यय में बढ़ोतरी होगी।
रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2016 के दौरान वैश्विक रक्षा खर्च कुल एक फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 16 खरब अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया, जबकि वर्ष 2015 में इसमें 0.6 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी।
पिछले साल चीन ने अपने रक्षा बजट में केवल 7.6 फीसद वृद्धि की थी, जो कि पिछले 6 सालों के आंकड़ों के मुताबिक सबसे कम है। इससे पहले पिछले 2 दशकों से चीन लगातार अपने रक्षा बजट के अंदर दहाई संख्या में इजाफा करता आया था। आधिकारिक तौर पर चीन ने बताया था कि साल 2016 में उसने अपने रक्षा बजट पर करीब 93 खरब रुपये खर्च किए।
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