मल्हार मीडिया ब्यूरो।
बिहार चुनाव के नतीजों को लेकर बढ़ी दिलचस्पी के बीच यह जानना रोचक है कि वो आखिर कौन-से बड़े कारण रहे, जिन वजहों से महागठबंधन धराशायी होता दिखा। यह जानना भी दिलचस्प है कि क्या नीतीश कुमार 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे?
इनके अलावा सर्वाधिक चर्चित सीटों की स्थिति, 2020 के मुकाबले इस बार के चुनाव परिणाम में अंतर, प्रशांत किशोर के राजनीतिक दल- जनसुराज और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी- एआईएमआईएम और लालू यादव के बेटे तेज प्रताप यादव की सीट को लेकर भी जिज्ञासा रही।
वोट प्रतिशत की बात करें तो तेजस्वी की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। राजद को 23 फीसदी से अधिक वोट मिले हैं। 20 प्रतिशत वोट के साथ भाजपा दूसरे नंबर पर रही है।
अब सीटों के लिहाज से बात करें तो भाजपा सबसे आगे है। इस परिणाम का एक चौंकाने वाला पहलू यह भी है कि मतदान प्रतिशत के मामले में जनसुराज का कहीं भी अता-पता नहीं है। यह इसलिए भी हैरान करने वाला है क्योंकि प्रशांत किशोर की पार्टी ने 200 से अधिक सीटों पर ताल ठोकी थी।
परिणाम कई मायनों में दिलचस्प रहे हैं। कुल 243 सीटों में महागठबंधन का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है। पांच साल पहले आए चुनाव परिणाम में 110 सीटें जीतने वाला महागठबंधन इस बार 30 सीटों पर सिमटता दिख रहा है। दूसरी तरफ सत्ताधारी खेमा NDA इस बार 200 सीटों से अधिक जीतता दिख रहा है।
चुनाव से पहले दो दशक से अधिक समय बाद कराए गए मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) और वोट चोरी जैसे जुमलों का इस्तेमाल करने वाले विपक्षी खेमे को जितनी सीटें मिली हैं, इससे साफ है कि उसके उठाए मुद्दे बेअसर साबित हुए।
दोनों दल 101-101 सीटों चुनावी मैदान में उतरे थे। 2020 में भाजपा 74 सीटों पर जीती थी। इस बार वह करीब 95 सीटें जीतती नजर आ रही है। यानी 20 से ज्यादा सीटों का फायदा। वहीं, जदयू को करीब 85 सीटें मिलती दिख रही हैं। उसे 40 से ज्यादा सीटों का फायदा हुआ है। 2020 में उसे 43 सीटें मिली थीं।
महागठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी राजद ही थी। तेजस्वी यादव ने आक्रामक प्रचार किया। सबसे ज्यादा रैलियां उन्हीं ने कीं। वे मुख्यमंत्री पद का चेहरा थे, लेकिन उनकी पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा। राजद को करीब 27 सीटें मिलती नजर आ रही हैं। उसे 48 सीटों का नुकसान हुआ है। 2020 में उसे 75 सीटें मिली थीं।
कांग्रेस का प्रदर्शन सबसे ज्यादा चौंकाने वाला रहा। वह महज चार सीटें जीतती नजर आ रही है। पिछली बार उसे 19 सीटें मिली थीं। राहुल गांधी का ‘हाइड्रोजन बम’ काम नहीं आया।
प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज ने 200 से अधिक सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। इस चुनाव में यह इकलौती पार्टी थी, जिसने इतनी सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे। हालांकि, प्रशांत किशोर ने खुद चुनाव नहीं लड़ा। बीते तीन साल से अधिक समय से बिहार में सामाजिक-राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे प्रशांत की पार्टी खाता नहीं खोल पाई।
पीके उपनाम से चर्चित प्रशांत किशोर तमाम साक्षात्कारों में यह दावा करते दिखे कि उनके पास प्रत्याशियों की ऐसी फौज है, जो बिहार में नई इबारत लिखेगी। हालांकि, वे खुद इस बात को भी रेखांकित करते थे कि जनसुराज पार्टी या तो अर्श पर होगी या फर्श पर। तमाम बातों के बावजूद नतीजे इसलिए भी हैरान कर रहे हैं क्योंकि इस पार्टी को मिलने वाला मतदान प्रतिशत चुनाव आयोग की वेबसाइट पर आठ घंटे के बाद भी उपलब्ध नहीं दिखा।
खुद को प्रधानमंत्री का हनुमान बताने वाले चिराग पासवान ने अपनी भूमिका बखूबी निभाई। उनकी पार्टी लोजपा (रामविलास) के खाते में 29 सीटें आई थीं। हालांकि, पार्टी ने 27 सीटों पर चुनाव लड़ा। वह 19 सीटों पर जीतती नजर आ रही है, जबकि 2020 में उसने महज एक सीट जीती थी। वहीं, ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM) ने अपना प्रदर्शन बरकरार रखा। उसे 2020 की तरह पांच सीटें मिलती दिख रही हैं।
इस चुनाव में कई बड़े सूरमा भी पस्त होते दिख रहे हैं। अपने राजनीतिक करियर में करीब तीन साल तक डिप्टी सीएम रहे तेजस्वी यादव भी रुझानों में कई घंटों तक पिछड़ते दिखे। इस बार वे महागठबंधन की तरफ से मुख्यमंत्री पद का चेहरा थे।
इसके अलावा दरभंगा जिले की सीट अलीनगर से ताल ठोकने वाली सबसे युवा प्रत्याशी मैथिली ठाकुर की निर्णायक बढ़त भी चर्चा में है। चुनावी हिंसा और बाहुबली परिवारों के बीच मुकाबले की वजह से मोकामा सीट सबसे ज्यादा चर्चा में थी। यहां से जदयू के अनंत सिंह जीत गए। परिवार से अलग होकर जनशक्ति जनता दल बनाने वाले लालू के बेटे तेज प्रताप यादव महुआ हार के करीब हैं।
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