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निजता का अधिकार सशर्त मौलिक अधिकार है

राष्ट्रीय            Jul 26, 2017


मल्हार मीडिया ब्यूरो।

केंद्र सरकार ने बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है, लेकिन यह सशर्त है और इसके सभी पहलू इसके दायरे में नहीं आएंगे।

महान्यायवादी के.के. वेणुगोपाल ने प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे.एस. केहर के नेतृत्व वाली नौ न्यायाधीशों की पीठ से कहा, "निजता मौलिक अधिकार है, लेकिन यह निर्बाध नहीं है, यह सशर्त है, क्योंकि निजता के अधिकार में विभिन्न पहलू शामिल होते हैं और इसके प्रत्येक पहलू को मौलिक अधिकार नहीं कहा जा सकता है।"

वेणुगोपाल ने यह बात इस मुद्दे पर बुधवार को नौ न्यायाधीशों की पीठ द्वारा शुरू की गई सुनवाई के दौरान कही।

कर्नाटक और पश्चिम बंगाल समेत चार गैर-भाजपा शासित राज्यों ने निजता के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित करने के सवाल पर उच्चतम न्यायालय में चल रही सुनवाई में हस्तक्षेप करने की अनुमति शीर्ष अदालत से मांगी। कर्नाटक और पश्चिम बंगाल के अलावा कांग्रेस के नेतृत्व वाले पंजाब और पुडुचेरी ने भी इस मुद्दे पर केंद्र सरकार के विपरीत रूख अपनाया है। केंद्र सरकार का कहना है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं बल्कि एक आम कानूनी अधिकार है।

इन चार राज्यों का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष अपनी बात रखी। सिब्बल ने कहा कि तकनीकी प्रगति को देखते हुए अज के दौर में निजता के अधिकार और इसकी रूपरेखा पर नए सिरे से गौर करने की जरूरत है। पीठ के समक्ष उन्होंने कहा, ‘‘निजता एक परम अधिकार नहीं हो सकता। लेकिन यह एक मूलभूत अधिकार है। इस न्यायालय को इसमें संतुलन लाना होगा।’’ मामले में सुनवाई जारी है।

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति आर के अग्रवाल, न्यायमूर्ति रोहिन्टन फली नरिमन, न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे,न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। निजता के अधिकार से संबंधित यह मामला पांच सदस्यीय पीठ द्वारा वृहद पीठ को स्थानांतरित कर दिए जाने पर शीर्ष न्यायालय ने 18 जुलाई को नौ सदस्यीय संविधान पीठ का गठन किया था।



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