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देश को साफ़ करने चले मोदी का अहमदाबाद सबसे गंदा

राष्ट्रीय            Jan 11, 2017


अहमदाबाद से लौटकर हेमंत पाल।

देशभर में स्वच्छता को लेकर अभियान छिड़ा है। बड़े शहरों से लेकर छोटे गाँव तक में लोगों को स्वच्छता के लिए जागरूक किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद भी इस अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं। व्यवस्थाओं को लेकर भी जागरूकता फैलाई जा रही है। ट्रैफिक कानूनों के पालन पर सख्ती बरती जा रही है। पूरे देश की गंदगी को बुहारने जैसा माहौल है। लेकिन, गुजरात के बड़े शहर अहमदाबाद को देखकर नहीं लगता कि यहाँ ऐसी कोई सजगता है। हर तरफ पसरी गंदगी। बेतरतीब ट्रैफिक। सिटी बसों के लिए बनी लेन में दौड़ते दोपहिया और ऑटो रिक्शा। सड़कों पर हाथ ठेलों का जमावड़ा। जबकि, नरेंद्र मोदी इसी राज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। जब गुजरात में व्यवस्थाओं की हालत ऐसी है, तो उम्मीद की जा सकती है कि शेष गुजरात के हालात क्या होंगे। प्रधानमंत्री के घर में ही इतनी गंदगी, तो देश कैसे सुधरेगा?

देश में अहमदाबाद को तेजी बदलते शहरों में गिना जाता है। कारोबार के मामले में भी ये शहर देश में अपनी हैसियत रखता है। लेकिन, जब पूरे देश में व्यवस्थाओं में बदलाव को लेकर अभियान छेड़ा गया हो, तब ये शहर उस सबसे अछूता कैसे रह सकता है? प्रधानमंत्री जिस राज्य और शहर का प्रतिनिधित्व करते हों, उसे तो देश में आदर्श बनना चाहिए। पर, वहाँ उल्टी गंगा क्यों बह रही है? जगह-जगह पड़े कचरे के ढेर, सड़कों पर घूमते मवेशी, ट्रैफिक सिग्नलों की अनदेखी, शिकार की तलाश में किनारे खड़े ट्रैफिक जवान, हर रास्ते में लगा जाम! रास्ता रोकते हाथ ठेले वाले। अहमदाबाद में साबरमति नदी के किनारों को संवारकर बोट क्लब बनाया गया है। ये कोशिश अच्छी है, पर रुका हुआ पानी सड़ांध मारने लगता है, ये शायद किसी ने नहीं सोचा। तफरीह के लिए आने वाले और बोट में घूमने वाले लोग इसी पानी में गंदगी फैंकने से भी बाज नहीं आते। ये सारी अव्यवस्थाएं कभी किसी शहर की अच्छी छवि नहीं बनाते।

अहमदाबाद में कचरे के ढेर दिखाई देना सामान्य बात हैं। सड़कों पर पॉलिथीन की थैलियां पतंग की तरह उड़ती रहती हैं। खाने-पीने की सामग्री बेचने वाले सड़कों पर गंदगी फेंकने में जरा भी गुरेज नहीं करते। शहर के सबसे समृद्ध इलाके लॉ गार्डन, एलिस ब्रिज और रिलीफ रोड के फुटपाथों पर तो जैसे दुकानदारों का ही कब्ज़ा हो गया। बड़े-बड़े शोरूमों के सामने वाहन खुलेआम पार्क होते हैं। एकांगी मार्गों पर दोतरफा यातायात तो यहाँ किसी को भी नियम का उल्लंघन नहीं लगता। ट्रैफिक व्यवस्था का ये आलम है कि किसी को भी पुलिस कार्रवाई का ख़ौफ़ नहीं सताता। सिटी बसों के लिए बनाए गए बस रेपिड ट्रांजिट सिस्टम (बीआरटीएस) की हालत तो इतनी बदतर है कि इस लेन में दोपहिया और ऑटोरिक्शा समेत सारे वाहन बेख़ौफ़ दौड़ते हैं। बात समझ परे है कि जब बीआरटीएस का उपयोग ही नहीं होना है, तो इसे बनाया ही क्यों गया?

देशभर खुले में शौच को प्रतिबंधित किया जा रहा है। प्रशासन का एक बड़ा अमला लोगों में जारूकता फैलाने के लिए प्रयासरत है कि लोग खुले में शौच न करें। निश्चित रूप से अहमदाबाद में भी यही कोशिश होगी। लेकिन, अहमदाबाद के पुराने इलाकों में ये काम खुले आम देखा जा सकता है। न तो इस पर कोई सख्ती दिखती है न लोग जागरूक लगते हैं। कालूपुर, सोने की खान और दाहोद की और जाने वाले रास्ते के इलाकों में खुले में शौच सामान्य बात है। जहाँ तक जानकारी है, इस शहर को पतंगबाजी के लिए भी जाना जाता है। यहाँ हर साल संक्रांति से पहले पतंगबाजों के लिए तीन दिन का 'इंटरनेशनल काइट फेस्टिवल' भी होता है। लेकिन, पतंग के मौसम में तो पूरा अहमदाबाद ही पतंग मैदान बना रहता है। पतंग के धागे से खुद बचाने के लिए यहाँ के दोपहिया वाहन चालक अपनी गाड़ी के हेंडल पर 'यू आकार' में तार लगाकर घूमते हैं कि अचानक सामने से कोई धागा आकर उनको घायल न कर दे! जिस शहर में हर आदमी अव्यवस्थाओं, अराजकताओं और सरकारी लापरवाहियों से परेशान हो, वहाँ सुशासन की उम्मीद कैसे की जा सकती है? मुद्दे की बात तो ये कि नरेंद्र मोदी जो कि सारी अराजक व्यवस्थाओं को बदलने पर आमादा हैं, उनके ही घर में इतनी अंधेरगर्दी? इसलिए बेहतर होगा कि देश को साफ—स्वच्छ करने और सुधारने की शुरुआत अहमदाबाद से ही हो।

(लेखक 'सुबह सवेरे' के राजनीतिक संपादक हैं)



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