संजय स्वतंत्र।
वाणी जयराम अब इस दुनिया में नहीं। मगर उनका गाया गीत ‘हम को मन की शक्ति देना, मन विजय करे’, मेरे कानों में गूंज रहा है।
यह गीत नहीं, हम सबके जीवन की प्रस्तावना है। दुनिया के सभी मनुष्यों के लिए प्रेरक मंत्र भी। जो उदास है। जो संघर्ष कर रहे हैं। या जिनके रिश्ते बिखर रहे हैं, किसी भेदभाव के शिकार हैं या फिर किसी बात पर पछता रहे हैं।
मगर जीवन तो जीना है न। तो बहने दीजिए न इस जीवन को, कलकल करती नदी की तरह।
वाणी का गाया यह गीत एक शक्ति पुंज की तरह है-दूसरों की जय से पहले, खुद को जय करें। आप स्वयं विजेता बनें। अर्जुन की तरह। मां शक्ति की तरह।
अवकाश के दिन साहित्य, समाज और सरोकार के साथ समाचारों से जुड़े रहने के क्रम में शाम को प्रसिद्ध गायिका के निधन का समाचार पाकर उदास हो गया।
यों किसी का जाना हम सब को उदास करता है। कोई भी हो, माता-पिता हों या फिर भाई बहन। या कोई रक्त संबंधी। प्रेमी या मित्र का सदा के लिए चले जाना भी अखरता है।
लता दी की देह अग्नि में धधक रही थी, तब मेरी आंखें छलछला उठी थीं। वाणी जी के जाने पर आंखें नम है। उनका स्वर गूंज रहा है। यह मन का विरेचन कर रहा है- ‘भेदभाव अपने दिल से साफ कर सकें, दोस्तों से भूल हो तो माफ कर सकें, झूठ से बचे रहें, सच का दम भरें...’ ये शब्द मन में उतरते हुए जैसे तन को भी निर्मल कर रहे हैं। आज सबसे बड़ी जरूरत दिल को साफ रखने की है। जो हमें अब आसपास नहीं दिखाई देती। सबसे बड़ी बात झूठ से बचना है, सत्य के मार्ग पर चलना है।
हम सब जीवन में अकेले हैं। कई बार आप परिवार और दोस्तों के बीच उस समय अकेले पड़ जाते हैं जब आपकी भावनाओं को कोई महत्व नहीं देता।
क्योंकि सब अपनी दुनिया में खोए हैं। मोबाइल के इस युग में आप और भी अधिक अकेले हैं।
संवाद का सबसे सशक्त माध्यम, फिर भी कोई संवाद नहीं। हर इनसान अपनी दुनिया में गुम है। उसे आप से मतलब नहीं। ऐसे में क्या करें। तो खुद अकेले जीना शुरू करें।
अकेलापन भी कई बार खलता है। वह मनुष्य को खा जाता है।
वाणी जयराम इतनी मशहूर होकर भी अपने फ्लैट में एकाकी जीवन क्यों जी रही थीं।
काश उन्होंने पति के जाने के बाद किसी को साथी बना लिया होता। या किसी को गोद ले लिया होता।
मन की दुनिया में जब अकेले हो जाते हैं तो एक साथी अवश्य होना चाहिए जो सुबह शाम आपकी खैरियत पूछे। क्यों न अपने मन में ही एक गांव बसा लीजिए।
जीवन से कितना भी हार जाएं फिर भी हौसला रखना चाहिए।
जैसा कि वाणी जी ने अपने गीत में गाया- ‘खुद पे हौसला रहे, बदी से ना डरे।’ आत्मविशावस रहेगा तो आप अच्छाई और बुराई के बीच चल रहे संघर्ष को पार कर जाएंगे। आज के दौर में सत्य-असत्य और धर्म तथा अधर्म के बीच लड़ाई चल रही है।
नैतिकता-अनैतिकता के बीच यह द्वंद्व चल रहा है। यह द्वंद्व हमारे भीतर तक उतर आया है।
कोई बात किसी के लिए अनैतिक हो सकती है तो वही बात किसी के मन की कसौटी पर नैतिक है। समाज की कसौटी परंपरा से बंधी है।
मगर मन आाधुनिक हुआ जाता है। विचारों से लेकर परिधान तक बदल रहे हैं। तो इस द्वंद्व के पार जाकर स्वयं के लिए सोचना है। सोचना है कि आप किस चीज से खुश हैं।
वाणी के गाए इस गीत में ईश्वर से भी पुकार है-‘मुश्किलें पड़ें तो हम पे इतना कर्म कर, साथ दें तो धर्म का चलें तो धर्म पर।’ धर्म क्या है?
मन में अकसर यह सवाल उठता है। श्रीकृष्ण ने कहा है कि हमें स्वधर्म को पहचानना चाहिए।
अहंकार से उठ कर जीवन के सत्य समझें। विचार ही हर इनसान का मित्र या शत्रु है। उदासी या उमंग आपकी भावना पर ही निर्भर है।
इसलिए आपको जो चाहिए, उसी अनुसार कार्य कीजिए। मगर ईमानदारी से। अपना एक कदम बढ़ाने से पहले अपने निर्णय को तौलिए। अगर आपके एक अच्छे कार्य से किसी को खुशी मिलती है तो यही धर्म है।
इस एक गीत ने हम सभी को जीना सिखाया है। आज वाणी इस दुनिया में नहीं हैं। कल से लेकर ये पंक्तियां लिखने तक कई बार यह गीत ‘हम को मन की शक्ति देना’ सुन चुका हूं।
यह हर बार नया अर्थ दे गया। सोचता हूं कि अब खुश रहूं। दूसरों के चेहरे पर भी लाता रहूं मुस्कान। न खुद का हौसला टूटने दूं न दूसरों का।
हमारे हाथ में कुछ भी नहीं, मगर हम किसी का आत्मीय संबल तो हो सकते हैं।
अलविदा वाणी। आपका स्वर सदैव गूंजता रहेगा। यह गीत हमें राह दिखाता रहेगा।
5 फरवरी 2023
तस्वीर : आपका मित्र रविवार को दिल्ली के आप्टिकल वर्ल्ड में
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