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अब रील लाईफ के विलेन रियल लाईफ में विलेन नहीं कहलाते

पेज-थ्री            Sep 10, 2024


मल्हार मीडिया डेस्क।

गुजरते समय के साथ भारतीय लोगों में यह समझ जरूर विकसित हो गई है कि पर्दे पर हम किसी इंसान को जो कुछ भी करते हुए देखते हैं वो इंसान असल जिंदगी में उस छवि से बिल्कुल अलग होता है।

किसी फिल्म का करेक्टर और उस करेक्टर को निभाने वाला एक्टर दोनों की अपनी अलग शख्सियत होती है।

इस समझ के विकसित होने का ही परिणाम है कि आज फिल्मों को देखने वाला हर इंसान विलेन का किरदार निभाने वाले शख्स को भी हीरो जितना ही प्यार करता है।

रंजीत भी एक ऐसा ही नाम है फिल्मों में जिनका काम भले ही डरवाना लगता ,है लेकिन शोहरत, इज्जत और प्यार इन्हें भी उतना ही मिला जितना इनके साथ काम करने वाले हीरोज को मिलता है।

12 सितंबर साल 1946 के दिन अमृतसर के पास स्थित एक गांव में पिता द्वारका प्रसाद बेदी के घर उनकी सबसे पहली संतान का जन्म हुआ और नाम रखा गया गोपाल बेदी जिन्हें हम रंजीत के नाम से जानते हैं।

पिता बिजनेसमैन थे और दादाजी अपने जमाने में प्रिंसिपल रह चुके थे, द्वारका प्रसाद जी अपने बेटे को एक बड़ा बिजनेसमैन बनाने का ख्वाब देख रहे थे और दुसरी तरफ बेटे का मन खेल की दुनिया में बसा हुआ था।

रंजीत जब पांच साल के हुए तो इनका परिवार दिल्ली में आकर रहने लगा जहां अपने स्कूली दिनों से ही ये फुटबॉल के खेल को अपना दिल दे बैठे।

स्कूल से निकलकर जब हिन्दू कोलेज में आए तो यहां भी एक गोलकीपर की हैसियत से टीम में अपना स्थान पक्का कर लिया, लोग इनके खेल को देखकर रंजीत जी को गोली कहकर बुलाने लगे।

रंजीत जब अपनी कोलेज की पढ़ाई कर रहे थे उस दौर में किसी भी सरकारी नौकरी का रिजल्ट बहुत ही हैरान कर देने वाला देखने को मिलता था, खासकर वायुसेना और नेवी जैसी भर्तियों की परीक्षा में तो केवल दस बारह पर्सेंट लोग ही सलेक्ट हो पाते थे, ऐसे में रंजीत जी ने अपने दोस्तों के कहने पर या यूं कहें कि उनके उकसाने पर उनके साथ वायुसेना में पायलट की भर्ती का फोर्म बिना अपने माता-पिता को बताए भर दिया जिसमें रंजीत जी सलेक्ट भी हो गए, और अब रंजीत जी को ट्रेनिंग के लिए कोयम्बतूर जाना था, यहां आकर जब कोलेज की पढ़ाई मुश्किल होने लगी तो रंजीत जी ने सेंकेड इयर में पढ़ाई छोड़ दी थी।

ट्रेनिंग में पांच छः महीनों तक पसीना बहाया लेकिन अच्छी खासी बोडी और इस मसल मैन पर रंजीत जी के इंस्ट्रक्टर की बेटी दिल हार गई और वो रोज रंजीत जी से मिलने जाने लगी।

रंजीत जी को अपने इंस्ट्रक्टर की बेटी में कोई दिलचस्पी नहीं थी लेकिन जब बेटी का हेलमेल बढ़ने लगा तो इंस्ट्रक्टर ने रंजीत को उनकी बेटी से दुर रहने की हिदायत दे दी और साथ में ये धमकी भी दी कि अगर ऐसा चलता रहा तो वो तुम्हारा करियर खत्म कर देंगे।

यह बात सुनकर रंजीत जी भी भड़क गए और जवानी के जोश में उनके मुंह से कुछ ऐसे शब्द निकल गए जिन्हें सुनकर इंस्ट्रक्टर ने उन्हें ट्रेनिंग सेंटर से बाहर कर दिया।

पढ़ाई पहले ही छूट गई थी और अब ये वायुसेना में शामिल होने का मौका भी हाथ से चला गया था, ऐसे में खाली बैठे रंजीत साहब का मन फिल्म देखने में लग गया।

कोयम्बतूर से वापस दिल्ली आए रंजीत जी को उनके दोस्तों ने एक दिन बड़ी जिद करके फिल्म गाइड देखने के लिए मना लिया, रंजीत साहब बताते हैं कि यह पहली फिल्म थी जो उन्होंने अपने जीवन में देखी थी, इसके बाद देव साहब की ही एक और फिल्म हम दोनों भी उन्होंने देखी और इन दोनों फिल्मों में देव साहब की अदाकारी रंजीत जी को कुछ इस तरह भाई की रंजीत साहब जिनके घर में फिल्मों को लेकर बात करने पर भी मनाही थी उन्होंने ये दोनों फिल्मों को बीस बार देख लिया।

इन्हीं दिनों रंजीत जी के एक दोस्त ने उन्हें अपने घर पार्टी में शामिल होने के लिए कहा, रंजीत साहब अपने दोस्त के घर पहुंचे और सभी बड़े लोगों को नमस्ते सलाम नमस्कार करते हुए बाहर अपने दोस्त के साथ बैठ गए, इस पार्टी में ठाकुर रणवीर सिंह नाम का एक शख्स भी मौजूद था जो होलीवुड से बोलीवुड तक की फिल्मों में अलग अलग तरह के काम करता था उनकी इन दोनों जगह रोनी नाम से अच्छी जान पहचान थी।

रोनी ने रंजीत की कद काठी देखी और उनके पास आकर बोले क्या तुम फिल्मों में काम करना चाहते हो? रंजीत साहब को लगा ये आदमी उनके साथ मजाक कर रहा है तो मजाक मजाक में उन्होंने भी हां कह दिया, धीरे धीरे फिल्म की कहानी, कास्टिंग और रुपए पैसों के बारे में भी बात हो गई, इस फिल्म का नाम जिंदगी की राहें जिसमें रंजीत को रोनी ने एज ए लीड एक्टर साईन कर लिया और मुम्बई आ गया।

सबकुछ तय तो हो गया लेकिन रोनी के मुम्बई आने के बाद जब दो महीने तक रंजीत को उनका कोई मैसेज नहीं मिला तो वो मानने लगे कि रोनी सच में उनके साथ मजाक कर रहा था लेकिन रंजीत जी का सोचना गलत था,

कुछ दिनों बाद उनको एक पत्र मिला जिसमें रोनी ने लिखा था कि वो तुम्हें यानि रंजीत को लीड रोल तो नहीं लेकिन उसी फिल्म का एक और अच्छा सा किरदार दे सकते है, अगर तुम करना चाहते हो तो मैंने टिकिट के पैसे भेज दिए हैं, मुम्बई आ जाओ मैं चेतन आनंद के घर ठहरा हुआ हूं।

रंजीत जी ने वो टिकिट उठाई और अपने माता-पिता से मुम्बई अपने दोस्तों के साथ घूमने का बहाना बनाकर मुम्बई के लिए रवाना हो गए।

मुम्बई आने के बाद रंजीत साहब ने अपनी पहली रात चेतन आनंद के घर बिताई जहां रोनी के साथ साथ प्रिया राजवंश भी मौजूद थीं, रंजीत साहब बताते हैं कि बोम्बे में उनकी पहली रात बहुत ज्यादा खौफनाक रही क्योंकि पास में समुद्र था जिसकी लहरें लगातार घर की दीवारों से टकरा रही थी और अमृतसर से आए एक सीधे सादे लड़के के लिए ये एक डरावनी बात थी क्योंकि उन्होंने इससे पहले कभी समुद्र देखा भी नहीं था।

रोनी के साथ रहने के कारण रंजीत जी ने बोम्बे में एक सप्ताह के भीतर ही बोलीवुड के बड़े बड़े अभिनेताओं से मुलाकात हो गई , रंजीत साहब रोनी की बदौलत हर दुसरे दिन किसी बड़े सुपरस्टार से मिल रहे थे, लेकिन इन सबके बीच रंजीत जी जिस फिल्म के लिए बोम्बे आए थे वो प्रोड्यूसर और डिस्ट्रीब्यूटर्स की वजह से बंद पड़ गई,

रोनी ने उन्हें साइनिंग अमाउंट यानि सात सौ रुपए पकड़ाए और ब्रिटेन चला गया, यहां रंजीत बिल्कुल निराश हो गए थे ऊपर से पिता जी का कहना था कि उन्हें बोम्बे से आते ही उनके किसी दोस्त के यहां जर्मनी में बिजनेस संभालना होगा।

ऐसे में रंजीत साहब ने कभी दिलीप साहब के यहां तो कभी रोनी के किराए वाले घर में लगभग दो महीने गुजारे और तब उनके पास फिल्म सावन भादो के डायरेक्टर मोहन सहगल का फोन आया और उन्होंने अपनी फिल्म में रेखा के भाई के लिए उन्हें कास्ट कर लिया, साथ ही दत्त साहब भी इस दौरान अपनी फिल्म रेशमा और शेरा बना रहे थे जिसमें वहीदा जी के भाई का किरदार रंजीत को मिल गया, यहां फिल्म रेशमा और शेरा के दौरान दत साहब के कहने पर गोपाल बेदी बन गए रंजीत और इस तरह एक लम्बा फिल्मी सफर शुरू हो गया।

फिल्म रेशमा और शेरा में रंजीत के साथ काम कर रही राखी जी के कहने पर रंजीत साहब को साल 1971 की फिल्म शर्मिली में कुंदन‌ का किरदार मिल गया, एक विलैन के तौर पर रंजीत साहब की यह पहली फिल्म थी जिसका प्रीमियर दिल्ली में रखा गया और यहां जाकर इनके परिवार को पता चला कि उनका बेटा फिल्मों में काम कर रहा है।

आगे की कहानी रंजीत जी कई इंटरव्यूज में साझा कर चुके हैं कि किस तरह राखी जी के साथ बदतमीजी करने वाले सीन के कारण उन्हें घर से बाहर निकाल दिया गया था और किस तरह फिर राखी जी के समझाने पर बात बनी और परिवार ने अपने बेटे को माफ कर दिया।

यहां से हिंदी सिनेमा में रंजीत नाम का एक नया विलैन निकलकर आया जिसने आगे लगभग तीन सौ से ज्यादा फिल्मों में काम किया, फिल्म निर्माता उन्हें बिना स्क्रिप्ट की डिमांड के भी फिल्मों में सिर्फ एक दो रैप सिन के लिए कास्ट कर लेते थे, प्रकाश मेहरा और मनमोहन देसाई जैसे बड़े बड़े फिल्म निर्माताओं की लगभग हर फिल्म में रंजीत का नाम जैसे जरुरी हो गया था।

साल 1975 में आई फिल्म शोले में डेनी डेन्जोंगपा के बाद रंजीत का नाम भी सामने आया था लेकिन कुछ कारणों के चलते वो गब्बर का किरदार नहीं कर पाए लेकिन इससे उनके करियर को किसी तरह का नुक़सान नहीं हुआ, सीधे सादे भाई से एक खूंखार विलैन की जो छवि रंजीत जी ने पर्दे पर बनाई थी उसने लोगों को उनका कायल कर दिया था।

अपने रैप सिन के लिए मशहूर रंजीत साहब ने अपने करियर में लगभग 350 ऐसे दृश्य पर्दे पर अभिनित किए हैं जो अपने आप में एक अनचाहा और अटूट रिकॉर्ड है लेकिन वो यह दृश्य हीरोइन की मर्जी के बगैर नहीं करते थे और गुजरते समय के साथ वो ऐसे दृश्यों में इतने पारंगत हो गए थे कि रंजीत साहब ऐसे दृश्यों को परफेक्टली दिखाने के लिए एक्ट्रेसेज को इंस्ट्रक्ट भी करते रहते थे कि अब उन्हें उनके बाल नोचने है अब धक्का देना है जैसी बातें वो सीन शूट होने के दौरान ही एक्ट्रेसेज के कान में बोल देते थे।

असल जीवन में सादा जीवन उच्च विचार में यकीन रखने वाले रंजीत साहब की छवि उनके करियर के दौरान कुछ इस तरह खराब हो गई थी कि लड़कियां उनके सामने आने से डरने लगी थी, यहां तक कि एक फिल्म के दौरान जिसमें रंजीत जी के करेक्टर को कोबरा पकड़े दिखाया जाने वाला था उसकी शूटिंग के दौरान कोबरा ने उन्हें कई बार डंक मार दिया था,

हालांकि कोबरा का पुरा जहर पहले ही खत्म कर दिया गया था लेकिन डंक का कोई जानलेवा असर रंजीत जी पर ना हो जाए इसके लिए एक लेडी डॉक्टर से संपर्क किया गया लेकिन उस डॉक्टर ने रंजीत जी का नाम सुनकर आने के लिए मना कर दिया,

ऐसा ही एक किस्सा है कि अपनी बेटी के साथ जब भी रंजीत साहब होटल में जाते थे तो वहां मौजूद लोग उन्हें टेढ़ी नजरों से देखते थे और उनका भ्रम मिटाने के लिए रंजीत साहब वेटर को जोर से आवाज देकर बोलते भाई जो मेरी बेटी कहेगी वो ही हम भी खा लेंगे।

ऐसे कई किस्से कहानियां रंजीत साहब की जिंदगी में घटित हुई जिन्हें वो आज अपनी एक्टिंग के लिए मिला सबसे बड़ा पुरस्कार मानकर खुश हो जाते हैं। रंजीत साहब की पर्दे वाली छवि के कारण कुछ लड़कियां डरती थी तो वहीं कुछ लड़कियां उनसे प्यार भी करती थी जिसमें सिम्पल कपाड़िया का नाम भी आता है लेकिन यह रिश्ता आगे नहीं बढ़ पाया क्योंकि राजेश खन्ना रंजीत को पसंद नहीं करते थे।

रंजीत साहब की शादी आलोका बेदी से हुई थी जिन्हें नाजनीन के नाम से भी जाना जाता है, रंजीत के ससुराल वाले कुछ लोगों पर भी इनकी पर्दे वाली छवि का असर हुआ और उन्होंने इस रिश्ते को बिल्कुल ही गलत बताया था लेकिन आज यह जोड़ी पिछले लगभग 35 सालों से साथ हैं, रंजीत साहब के एक बेटी और और एक बेटा है जिनका नाम दिव्यांका बेदी और चिरंजीवी बेदी है।

दिव्यांका एक अवार्ड विनर फैशन डिजाइनर है तो वहीं चिरंजीवी एक रेसर है जो जल्द ही फिल्मी दुनिया में दस्तक देने की कोशिश में भी लगे हुए हैं। शराबी, लैला मजनू, अमर अकबर एंथनी, धर्मात्मा, द बर्निंग ट्रेन और याराना जैसी सैंकड़ों फिल्मों में काम करने वाले रंजीत साहब अपनी पीक के दौरान आठ आठ शिफ्टों में काम करते थे।

अस्सी के दशक के अंत तक आते आते रंजीत जी ने फिल्म कारनामा से फिल्म निर्माण में हाथ आजमाने का विचार किया जिसका पहले नाम किसके लिए था लेकिन रंजीत साहब के कुछ दोस्तों ने कहा कि यह नाम गुलजार साहब की किसी फिल्म जैसा लग रहा है इसमें रंजीत की फिल्म का प्रभाव नहीं नजर आ रहा है।

इसलिए इस फिल्म का नाम कारनामा रखा गया जिसके बाद साल 1992 में रंजीत साहब फिल्म गजब तमाशा के जरिए राहुल रॉय और अनु अग्रवाल की हिट जोड़ी के साथ एक बार फिर फिल्म निर्माण में उतरे लेकिन ये दोनों ही फिल्में कमाल नहीं कर पाई।

रंजीत साहब ने बोलीवुड फिल्मों के अलावा पंजाबी फिल्मों में भी काम किया है साथ ही वो जुगनी चली जलंधर जैसे टीवी सिरियल में भी नजर आ चुके हैं।

रंजीत साहब को आज की फिल्म इंडस्ट्री के काम करने का तरीका भले ही पसंद नहीं आता है लेकिन अपने अंदर काम करने की ललक को शांत करने के लिए वो कभी कभी किसी फिल्म टीवी शोज में नजर आ जाते हैं, लेकिन आजकल वो अपना ज्यादातर समय अपने परिवार के साथ बिताते हैं, सोशल मीडिया पर उनके विडियोज बताने के लिए काफी है कि कलाकार कभी किसी उम्र में थकता नहीं है।

बवंडर नारद टीवी के फेसबुक पेज से

 

 


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