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रविवार की उदास शाम

पेज-थ्री            Feb 06, 2022


संजय स्वतंत्र।
 
आज दिल बहुत उदास है। कलेजे पर टनों बोझ है। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के शिवाजी पार्क में पुष्पों से सज्जित शैया पर लता जी को चिर निद्रा में सोते देख कर आंसू बह चले हैं। जानता हूं अब वे कभी नहीं गाएंगी।  मगर दिल में तो सदा रहेंगी।

आज भारत रत्न लता मंगेशकर को अंतिम विदाई देने की सांझ थी। तमाम बड़े नेता और अन्य विशिष्ट जन उमड़ पड़े थे। एक मन मेरा भी उमड़ा। दो बूंद आंसू मैं भी गिरा आया।
 
शिवाजी पार्क में बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे। हमारे मित्र बताते हैं कि रविवार को अमूमन मुंबई की सड़कों पर भीड़ नहीं होती। मगर आज ऐसा नहीं था। लोग उदास थे। इससे पता चलता था कि लता जी के गीतों का लोगों के जीवन में कितना महत्व था। उन्हें सुनते हुए हम जैसे तमाम लोग जवान हुए।

लता दी के मधुर गीतों में डूब कर जाने कितने लोगों के जीवन की शाम ढल गई  
   
मैं देख रहा था कि शिवाजी पार्क का माहौल कितना गमगीन है। लोग भाव विह्वल हैं। अंत में सेना के जवान लता दी के पार्थिव देह को पूरे सम्मान के साथ उस जगह ले गए, जहां उन्हें पंच तत्व में विलीन होना था। सेना ने राजकीय सम्मान के साथ उन्हें विदाई दी। चिता को अग्नि दिए जाते महसूस हुआ कि आज सुरों की नायाब माला बिखर गई है।  
 
इस दौरान शाम ढल चुकी थी। लता जी के जाने के शोक में नीला आसमान काला पड़ चुका था। वह भी सोने चला गया। पार्श्व में बस यही गीत था, तुम मुझे यूं भुला न पाओगे। सचमुच सत्तर-अस्सी साल की सुरों की यात्रा को अंतिम मंजिल मिल गई थी। उनका जाना दिल के अरमानों का लुट जाने जैसा है। मगर यह भी सच है कि हमारे दिलों में लता जी के सुरों की यात्रा अनवरत चलती रहेगी। गूंजती रहेगी यह आवाज- नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा, मेरी आवाज ही पहचान है, गर याद रहे...।

  

 



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