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गाने की एक लाइन में जीवन का दर्शन: ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन

पेज-थ्री            Aug 11, 2023


डॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी।

जब भी देश-प्रेम की बात होती है तब शहादत या बलिदान की बात पहले होती है, या फिर यह बात होती है कि मेरा देश ही सर्वश्रेष्ठ है। सभी को अपना मुल्क ही सबसे अच्छा लगता है। लेकिन आज में जिस गाने की बात कह रहा हूं वह गाना न तो किसी सैनिक पर फिल्माया गया था, न किसी क्रान्तिकारी या देशभक्त पर !

इस गाने में देश को याद करने वाला एक बूढ़ा है जो पेट की खातिर परदेस में भटक रहा है और जिसे परिस्थितिवश जेल जाना पड़ा।

जेल में वह अपने वतन को याद करता है :

जितना याद आता है मुझको

उतना तड़पाता है तू

तुझ पे दिल क़ुरबान

इस गाने में मरने- मारने की बात किये बिना अपने वतन को बेहद मार्मिक ढंग से वतन को याद किया गया है। शायद ऐसा ही भाव खाड़ी के देशों में काम करनेवाले लाखों भारतीयों के मन में भी होता होगा।

ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन

तुझ पे दिल क़ुरबान

तूही मेरी आरज़ू, तूही मेरी आबरू

तू ही मेरी जान

फिल्म में काबुलीवाला अपने देश की याद में डूबा है। आंखें भी देश प्रेम की भावना से नम हैं, अपने देश की और से आती हुई हवाओं को किया गया उसका प्रणाम तथा वहां होने वाली सुबह व शाम के मंजर को याद करते हुए की गई उसकी गुफ्तगू अतुलनीय है :

तेरे दामन से जो आए, उन हवाओं को सलाम

चूम लूँ मैं उस ज़ुबाँ को जिसपे आए तेरा नाम

काबुलीवाला परदेस में है,जेल में है। अपने देश जा नहीं सकता। देश की याद आ रही है। ऐसे में उसके देश की तरह से आ रही हवाओं को वह सलाम करता है और उसके पवित्र देश का नाम लेने वाले की जुबां को बोसा लेने की भावना रखता है। कोई हालात का मारा अपने देश की याद किस तरह कर रहा है, फिल्म देखकर आँखें नम हो जाती हैं।

इस गाने में देश को माँ का दिल बताते हुए कहा गया है कि तू माँ का दिल बनकर गले से लग जाता है। देश के बारे में, देश के प्यार के बारे में और अपने देश के लोगों के बारे में याद आना स्वाभाविक ही है। चाहे कोई कितना भी दूर क्यों न हो, इसके देश की मिट्टी की खुशबू, अपने परिवार के साथ बिताए सुखद सुबह और शाम के पल और उस देश के प्रति प्यार का गर्व कभी भुलाया नहीं जा सकता। गाने में अपने वतन से दूर होने का अफसोस और मोहक स्मृतियां हैं। परदेस में रह रहे लोगों की यह तमन्ना भी कि मरते समय अपनी मातृभूमि में मिल जाने की सुन्दर भावना भी।

छोड़ कर तेरी ज़मीं को दूर आ पहुंचे हैं हम

फिर भी है ये ही तमन्ना तेरे ज़र्रों की क़सम

हम जहाँ पैदा हुए उस जगह ही निकले दम

तुझ पे दिल क़ुरबान

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की 1892 में लिखी कहानी पर बनी थी काबुलीवाला! तब भारत से अफगानिस्तान तक का सफर और कारोबार अलग तरीके से होता था। एक जैसे लोग इस भूभाग पर तब भी थे, अब भी हैं। कागज़ के नक्शों पर बंटे हुए देशों के लोग अपने वतन पर कुर्बान थे। वतन ही उनकी पहचान, आरज़ू और आबरू थी। लोगों की जान अपने वतन में ही बसती थी और है।

अंग्रेज़ों और अफगानों के बीच 19वीं सदी में जब आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध हुआ, तब बड़ी संख्या में अफ़ग़ान भारत आने लगे। खासकर कोलकाता जो अंग्रेज़ों की राजधानी थी। ये काबुलीवाले इतने बदनाम थे कि लोग अपने बच्चों को ये कहकर डराया करते थे कि काबुलीवाला बच्चों को अपनी बोरी में भरकर ले जाएगा और काबुल में बेच देगा।

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की यह कहानी दो अनजान लोगों के विश्वास और पवित्र रिश्तों को लेकर है। यह उस दौर की कहानी है जब परस्पर अविश्वास सामान्य बात थी। ब्रिटिश इण्डिया की राजधानी कोलकाता में दूर दूर देशों से सौदागर आते रहते थे। ऐसे ही एक अफ़ग़ान पठान रहमान ख़ान यानी बलराज साहनी भी काबुल से सामान लेकर कोलकाता आकर फेरी लगाकर सामान बेचता है।अपने वतन में उसकी बीवी और छोटी बेटी है, जिन्हें वह अक्सर याद करता है। उसे अपनी बेटी की छवि एक भद्र बंगाली परिवार की बच्ची में नज़र आती है और वह उस बच्ची से भावनाओं से जुड़ जाता है। वह बच्ची इससे अनजान है। एक मामले में काबुलीवाला को जेल हो जाती है और जब वह जेल से छूटकर आता है तब उस बच्ची के विवाह की तैयारी चल रही होती है। अब वह बच्ची उसे नहीं पहचानती।

यह गुरुदेव की लिखी कहानी थी और उनके ही शांति निकेतन के विश्व भारती विश्वविद्यालय में हिन्दी शिक्षक रहे बलराज साहनी ने की थी काबुलीवाला की भूमिका। मिली नामक बच्ची की भूमिका निभाई थी गुरुदेव की नातिन बेबी सोनू ने, जो शर्मिला टैगोर की छोटी बहन हैं।

काबुलीवाला फिल्म का यह गाना देश को याद करके आँखें भिगोने वाले गीत के रूप में अमर हो चुका है। इसके गीतकार प्रेम धवन ने देश प्रेम के कई गाने लिखे हैं - मेरा रंग दे बसंती चोला, ऐ वतन ऐ वतन, हमको तेरी कसम, पगड़ी संभल जट्टा आदि। वे गीतकार होने के साथ ही कोरियॉग्राफर भी थे। वे इप्टा के आधार स्तम्भों में से थे। काबुलीवाला का संगीत सलिल चौधरी ने दिया था जो खुद गायक और गीतकार थे।

इस गाने को मन्ना डे ने गाया था। जिन लोगों ने फिल्म नहीं देखी है, उनके लिए यह सोचना स्वाभाविक है कि यह गीत बलराज साहनी पर फिल्माया गया है। लेकिन... ऐसा नहीं है। इस गाने के जरिए वे अपनी मातृभूमि से दूर होने के दर्द को व्यक्त करते हैं। इस गाने को फिल्माया गया था बलराज साहनी पर, जेल में अपने वतन को याद करते हुए, लेकिन परदे पर इसे वजीर मोहम्मद खान को गाते हुए दिखाया गया है, जिन्होंने हिंदी की पहली सवाक यानी बोलती फिल्म 'आलम आरा' में 'दे दे खुदा के नाम पर' गाया था। बलराज साहनी ने केवल अपनी अश्रुपूर्ण आंखों और समय-समय पर बदलते चेहरे के भाव से वे बातें कह दीं जो इस गाने में थीं। अधिकांश दर्शक इस फिल्म में गाने के वक्त रो रहे थे।

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ मानवतावादी थे। उन्होंने मानवता को देश से ज्यादा महत्त्व दिया था। ऐसा ही ओशो के साथ भी था। कबीर ने लिखा है - मन के मारे बन गये, बन तजि बस्ती माहिं! यानि इंसान को कहाँ चैन? बन यानि जंगल में जाएँ या परदेस में। चैन मिलनेवाला नहीं।

काबुलीवाला 1957 में बांग्ला में बनी थी। 1961 में हिंदी में। बांग्ला फिल्म तपन सिन्हा द्वारा निर्देशित थी, जिसमें छबि विश्वास मुख्य भूमिका में थे और दूसरी का निर्देशन हेमंत गुप्ता ने किया था, जिसमें बलराज शाहनी मुख्य भूमिका में थे।2017 में बायोस्कोप वाला भी इसी कहानी पर बनी थी, जिसमें बलराज साहनी का काबुलीवाला रोल डैनी डेन्जोंगपा ने किया।

प्रेम धवन रचित पूरा गाना :

ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन

तुझ पे दिल क़ुरबान

तूही मेरी आरज़ू, तूही मेरी आबरू

तू ही मेरी जान

तेरे दामन से जो आए, उन हवाओं को सलाम

तेरे दामन से जो आए, उन हवाओं को सलाम

चूम लूँ मैं उस ज़ुबाँ को जिसपे आए तेरा नाम

सबसे प्यारी सुबह तेरी, सबसे रंगीं तेरी शाम

तुझ पे दिल क़ुरबान

तूही मेरी आरज़ू, तूही मेरी आबरू

तू ही मेरी जान

माँ का दिल बनके कभी सीने से लग जाता है तू

माँ का दिल बनके कभी सीने से लग जाता है तू

और कभी नन्हीं सी बेटी बन के याद आता है तू

जितना याद आता है मुझको

उतना तड़पाता है तू

तुझ पे दिल क़ुरबान

तूही मेरी आरज़ू, तूही मेरी आबरू

तू ही मेरी जान

छोड़ कर तेरी ज़मीं को दूर आ पहुंचे हैं हम

छोड़ कर तेरी ज़मीं को दूर आ पहुंचे हैं हम

फिर भी है ये ही तमन्ना तेरे ज़र्रों की क़सम

हम जहाँ पैदा हुए उस जगह ही निकले दम

तुझ पे दिल क़ुरबान

तूही मेरी आरज़ू, तूही मेरी आबरू

तू ही मेरी जान

ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन

तुझ पे दिल क़ुरबान

फिल्म : काबुलीवाला (1962)

गीतकार: प्रेम धवन

गायक: प्रबोध चंद्र 'मन्ना' डे

संगीतकार: सलील चौधरी

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-प्रकाश हिन्दुस्तानी

11 -08-2023

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