राकेश दुबे।
देश में राजनीतिक हलचलों के साथ जातिगत जनगणना की मांग भी जोर पकड़ रही है| आंध्र प्रदेश विधानसभा में कानून बनाकर सभी नामित पदों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की सुविधा पहले ही वंचित समूह वर्गों के लिए आरक्षित की गई है|
इससे पहले अक्तूबर माह में तेलंगाना विधानसभा द्वारा भी प्रस्ताव पास कर जातिगत जनगणना कराने की मांग की जा चुकी है|तमिलनाडु एवं ओडिशा की विधानसभा में पहले ही इस प्रकार के प्रस्ताव पारित हैं|
नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार की राजनीतिक पार्टियां प्रधानमंत्री से अनुरोध कर चुकी हैं कि जातिगत जनगणना से समाज में समानता उत्पन्न होगी|
आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर विकास के लेखे-जोखे का भी बिंदुवार विश्लेषण कर सकते हैं कि 'सबका साथ सबका विकास' सिद्धांत में कुछ वर्ग पिछड़ तो नहीं गये। एक आरटीआइ के अनुसार, पिछले वर्ष देश के लगभग सभी विश्वविद्यालयों में पिछड़े वर्ग से किसी प्रोफेसर या एसोसिएट प्रोफेसर का चयन नहीं हुआ है|
इस सब से देश की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी में कुंठा एवं रोष पैदा होना स्वाभाविक है। जातिगत जनगणना के विरोधी तर्क देते हैं कि इससे समाज में खाई और कटुता पैदा होगी, जबकि असमानता से उत्पन्न निराशा और आक्रोश पहले से ही विद्यमान है|
आरक्षण का उद्देश्य रहा है कि जिन जातियों, समुदायों, कार्य समूहों को सदियों से उसके जातीय ढांचे में बांधकर उनके काम आरक्षित कर दिये गये हैं उन्हें भी समान नागरिक के रूप में जीने, प्रशासन में उचित हिस्सेदारी और शिक्षा में उचित भागीदारी मिल सके|
पिछड़ा वर्ग मेहनत एवं कौशल से सफलता की ओर निरंतर अग्रसर है| परीक्षा में ओबीसी छात्र कीर्तिमान रच रहे हैं|
इन सब उत्साहवर्धक कार्यवाही के बाद भी केंद्रीय मंत्रालयों में महज ५.४० प्रतिशत ओबीसी अधिकारी हैं| केंद्र सरकार ने लेटरल एंट्री से संयुक्त सचिव की नियुक्ति शुरू की है, जिससे पिछड़ा वर्ग एवं दलित समाज आरक्षण को लेकर सशंकित है|
आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया के तहत सार्वजनिक उपक्रमों का अंधाधुंध निजीकरण जारी है और नये संस्थानों में किसी भी प्रकार के आरक्षण की प्रक्रिया गैर हाजिर है |
इधर केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट में दिये गये हलफनामे के बाद यह स्वीकार करने में कठिनाई महसूस हो रही है कि 2011 की जातिगत जनगणना में गलतियां और अशुद्धियां थीं| हलफनामे में ओबीसी गणना को प्रशासनिक रूप से अत्यंत जटिल माना गया है|
वहीं दूसरी ओर पिछड़े वर्गों में अत्यंत पिछड़ों के लिए गठित जस्टिस जी रोहिणी कमीशन की रपट भी लगभग तैयार है जिसमें वंचित समूहों के सशक्तीकरण हेतु कोटा तय कर वर्गीकरण किया जाना शेष है।
इस प्रक्रिया की संपूर्णता हेतु भी इन वर्गों के जातीय आंकड़े मांगे गये हैं| ग्रामीण विकास मंत्रालय की स्टैंडिंग कमेटी की 2016 में हुई बैठक में रजिस्ट्रार जनरल ने सूचित किया है कि 18.8 के करीब व्यक्तिगत, जाति और धर्म के आंकड़े त्रुटिपूर्ण नहीं हैं, 118 करोड़ लोगों पर यह सर्वे जब किया गया था|बिहार, झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा और तमिलनाडु की सरकारों के सर्वम्मत प्रस्ताव आ चुके हैं|
इस दिशा में बिहार के मुख्यमंत्री के सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल के प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद का यह वक्तव्य महत्वपूर्ण है कि “प्रधानमंत्री ने उनकी मांग को अस्वीकार किया है|” लगता है अब राज्य सरकारें भी सर्वोच्च न्यायालय में अपना पक्ष रखेंगी. अगले माह से क्रमबद्ध सुनवाई होगी |
सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछड़ों के आरक्षण को संवैधानिक मान्यता मिलने के बाद भी जाति आधारित आरक्षण पर टीका-टिप्पणी जारी है|
नीतीश कुमार की भी आलोचना जारी है कि वे लोहिया के अनुयायी होते हुए कैसे जाति आधारित जनगणना की मांग का नेतृत्व कर सकते हैं|
इतिहास गवाह है डॉ आंबेडकर के बाद जाति व्यवस्था पर सबसे कटु प्रहार डॉ लोहिया ने किया है कि किस प्रकार लंबी गुलामी की वजह भारत की जातीय व्यवस्था है|
डॉ लोहिया तो यहाँ तक कह चुके हैं कि छोटी जाति वालों को ऊंची जगहों पर बैठाओ, उसके बिना तो कुछ आने-जाने वाला नहीं है, योग्यता की बराबरी की जो बहस चली है कभी हिंदुस्तान में जात-पात को तोड़ नहीं सकती इसलिए अब योग्यता की बराबरी छोड़कर विशेष अवसर के ऊपर हिंदुस्तान की रचना करनी होगी|
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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