ममता यादव।
वे जगत मामा हैं। जनता उन्हें प्यार से भी मामा कहती है, शिकायत भी मामा कहकर करती है और गुस्सा भी मामा कहकर ही दिखाती है।
यूं देखा जाए तो डकढ़ दशक से ज्यादा तक सत्ता में अब तक रहने वाले जगत मामा शिवराज सिंह अब राष्ट्रीय नेताओं की श्रेणी में पहुंच चुके हैं।
उसी राजनीतिक माहौल में उन्हीं पार्टियों और उन्हीं लोगों के बीच रहकर भी उनके व्यक्तिगत आभामंडल और सार्वजनिक व्यवहारिकता में 19—20 का भी फर्क नहीं आया है।
उनके धुर विरोधी भी उनकी सरलता के कायल हैं। जनता चाहे नाराज रहे या न रहे जब चर्चा होती है तो कहा यही जाता है कि वे सीएम हैं लेकिन व्यक्तिगत रूप में बहुत सरल हैं।
सामने से कोई भी आ रहा हो वे हाथ जोड़ते हुए आगे बढ़कर पूछ लेते हैं और सब ठीक है।
कांग्रेस की 15 महीनों की सरकार में अगर मध्यप्रदेश की जनता के हर वर्ग ने कमी महसूस की तो इसी सादेपन और सरलता की। नतीजा भी उपचुनाव में दिखा। भाजपा को एकतरफा वोट मिले और फिर सरकार में आई।
ये अलग बात है कि जिन मुद्दों पर कांग्रेस सरकार में आई थी 15 महीने बाद उन्हीं मुद्दों और व्यवहारिक कमी के कारण चली भी गई।
वे 15 महीने राजनीतिक दलों को यह सिखाने बताने के लिए काफी थे कि आप सत्ता में रहें या न रहें मगर जनता के साथ आपको सरलता ओर तमीज से पेश आने की आदत डालनी होगी।
उन 15 महीनों में विपक्ष में रहते हुए भी शिवराज एक दिन भी चैन से नहीं बैठै। वे हमेशा सड़क पर दिखे। चाहे कोई हादसा हो, जनमुद्दा हो, विधानसभा का कोई विषय हो। शिवराज की मौजूदगी बराबर बनी रही।
वहीं मुख्य विपक्षी दल होने के बावजूद कांग्रेस के नेता ही नहीं कांग्रेस ही सड़क से गायब है।
किस्से बहुत हैं, जो सभी लिख रहे हैं दिखा रहे हैं मगर एक विषय जो पूरे भारतीय सामाजिक जीवन में रह रहे परिवारों को व्यक्तिगत तौर पर प्रभावित करता है वह बेटी की शादी। शिवराज सिंह ने मुख्यमंत्री बनते ही सबसे पहले सामुहिक कन्या विवाह योजना शुरू की।
बताया जाता है कि तब शिवराज सिंह सामान्य नेता थे और कुछ समय बाद जब पहली बार विधायक बने। शिवराज के पास उनके गृहगांव जैत के पास बोरना गांव का एक गरीब व्यक्ति उनके पास बेटी की शादी का निमंत्रण लेकर पहुंचा और बोला आप तो विधायक बन गए मदद करो। उन्होंने उसकी बेटी की शादी कराई।
उस एक गरीब लड़की की शादी ने मध्यप्रदेश की तमाम गरीब बेटियों के भविष्य की पटकथा का प्लॉट तैयार कर दिया।
उसी समय शिवराज ने ऐसी गरीब बेटियों की शादी का संकल्प लिया और 1991 से यह सिलसिला शुरू हुआ। बुंदेलखंड में मामा भांजियों की शदियां कराएं तो यह पुण्य कार्य माना जाता है, संभवत: यही वजह रही कि शिवराज सिंह मामा के रूप में पहचाने जाने लगे।
विधायक, सांसद रहते हुए शिवराज सिंह चौहान ने सामूहिक विवाहों के आयोजन 1991 के बाद लगातार किए। पहले जैत में किया तो फिर शाहगंज, सुल्तानपुर, उदयपुरा में ये आयोजन हुए।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी चंदौली विधानसभा की चुनावी सभा में मंच से उन्हें जगत मामा बताया गया। स्थानीय सांसद महेंद्र नाथ पांडे ने सीएम चौहान का परिचय देने के लिए उनसे माइक लेकर कहा कि यह केवल मध्य प्रदेश के बेटे- बेटियों के नहीं पूरे देश के बेटे- बेटियों के मामा हैं। उन्होंने शिवराज मामा जिंदाबाद के नारे लगवाकर माइक चौहान को सौंपा।
यानि अब वे मध्य प्रदेश के बच्चों के ही नहीं बल्कि जगत मामा बन चुके हैं।
इसके बाद शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्रित्वकाल का जैसे—जैसे समय बीतता गया उन्होंने बच्चियों के जन्म से लेकर पढ़ाई तक की योजनाएं लागू करवाईं। लाड़ली लक्ष्मी योजना, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना।
यह ऐसी योजनाऐं रहीं जिनको बाद में अन्य राज्यों ने भी अपने यहां लागू किया।
एक और मील का पत्थर शिवराज सरकार की देन है 12 साल से कम की बच्चियों के साथ रेप करने वाले अपराधियों को फांसी की सजा का प्रावधान करवाना।
यह विधेयक बकायदा विधानसभा में लाया गया और उसे पारित करवाया गया। जिसमें लड़कियों से दुष्कर्म या किसी भी उम्र की महिला से गैंगरेप के दोषी को फांसी की सजा देने का प्रावधान किया गया।
इसमें 12 साल की नाबलिग से दुष्कर्म पर फांसी या दस साल सजा का प्रावधान किया गया।
इस विधेयक में विवाह का प्रलोभन देकर शोषण करने और आदतन अपराध के मामले में भी सजा बढ़ाई गई है। नए कानून में धारा 495 जोड़ी गई। इसमें पीछा करने पर सजा, एक लाख रुपए तक के दंड और सरकारी वकील का पक्ष सुने बिना जमानत नहीं देने का प्रावधान रखा गया।
कोई शक नहीं कि शिवराज जब विधायक और सांसद थे, उन 15-16 सालों और मुख्यमंत्री के रूप में 14 सालों को जोड़ें तो उनके जन-कल्याणकारी कार्यों की लिस्ट बहुत लंबी होगी।
यदि सिर्फ मुख्यमंत्री के कार्यकाल की चर्चा करें तो यह बात स्पष्ट तौर पर सामने आती है कि मुख्यमंत्री श्री चौहान ने बुनियादी क्षेत्रों के विकास को सदैव केन्द्र में रखा है।
मगर अब जबकि बतौर मुख्यमंत्री जगत मामा की चौथी पारी चल रही है तो जमीनी मुद्दों पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। अतिथी शिक्षकों का मुद्दा मुंह बाये खड़ा है।
यह वो वर्ग है जिसके वोट बैंक की भूमिका सरकार बनाने में बहुत बड़ी होती है। इसके अलावा रोजगार अब भी बड़ी समस्या है।
बहुत सारी घोषणाएं हैं, जिनको अमलीजामा पहनाने के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत है। निचले स्तर का भृष्टाचार कहीं न कहीं जनता का विश्वास डगमगाने के लिए काफी होता है। इस ओर कई स्तरों पर ध्यान देने की जरूरत है।
भीतरी विरोध को हैंडल करना और विरोधियों से निपटना शिवराज बखूबी जानते हैं बवजूद इसके उन्हें अब भी कुछ छिपे हुऐ विराधियों को पहचानकर उनसे सतर्क रहने की जरूरत है।
चौथी पारी में पूर्ण बहुमत से सरकार में आने के बाद शिवराज राष्ट्रीय राजनीति का चेहरा तो बन ही गए हैं। कहीं न कही उन्हें पीएम पद का दावेदार भी माना और कहा जाने लगा है।
आज मध्यप्रदेश भाजपा के पास शिवराज के व्यक्तित्व का कोई विकल्प नजर नहीं आता। संभवत: यही कारण है कि वे जगत मामा के साथ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में अलग ही पहचान लेकर खड़े दिखाई देते हैं।
पिछले कुछ समय से मध्यप्रदेश के कई कद्दावर नेताओं में बेचैनी है। इसकी वजह पार्टी में उनके कद का घटना और नए नेताओं का उभरना शामिल है। इन सबके बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर मजबूत नेता बनकर उभरे हैं।
जनता से सीधे जुड़े रहकर, विरोधियों निपटते हुए अपनी लाईन बड़ी करते हुए, विपक्ष के हर आरोप का जमीनी तर्कसंगत जवाब देते हुए मध्यप्रदेश की जनता के दिलों पर राज करते हुए सरकार चलानी कैसे है?
यह शिवराज भलीभंति जानते हैं। शायद यही कारण है कि उनकी गिनती राजनीति के माहिर खिलाड़ियों में होती है।
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