16 जिलों में 8 जिले ऐसे हैं जिनमें 29 सीटें यादवलैंड में

राजनीति            Feb 18, 2022


मल्हार मीडिया डेस्क।

20 फरवरी को  उत्तर प्रदेश में तीसरे चरण के लिए मतदान होना है। तीसरे चरण में 16 जिलों की 59 सीटों पर वोटिंग होनी है। 16 जिलों में 8 जिले ऐसे हैं जिनमें 29 सीटें यादव लैंड में आती हैं, उन पर भी 20 फरवरी को मतदान होना है।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की करहल सीट इनमें से एक है। चुनावी दृष्टि से, मुलायम सिंह यादव और उनकी समाजवादी पार्टी ने 2017 के चुनावों तक इस इलाके पर शासन किया है। 1992 में अपनी स्थापना के बाद से करहल सपा का एक अभेद्य किला रहा है। 2012 में सपा ने अपने गढ़ में 24 सीटें जीती थीं।

लेकिन भगवा लहर ने 2017 में इसे ध्वस्त कर दिया। अपने परिवार और पार्टी की साख दोबारा हासिल करने के लिए अखिलेश चुनावी मैदान में किस्मत आजमाने के लिए मैनपुरी जिले की करहल सीट से उतरे हैं। साथ ही उन्होंने अपने चाचा शिवपाल यादव को इटावा की जसवंतनगर सीट से चुनाव मैदान में उतारा है।

यादव परिवार का पैतृक गांव सैफई, करहल से कुछ 8 किलोमीटर दूर है। बहुत पहले जब सैफई एक छोटा सा गांव था, करहल इसका सबसे नजदीकी बाजार हुआ करता था। करहल के जैन इंटर कॉलेज में मुलायम और उनके परिवार के अधिकांश सदस्यों ने शिक्षा प्राप्त की।

पिछले 20 वर्षों में, सैफई ने अपनी हवाई पट्टी, स्टेडियम, स्विमिंग पूल, चिकित्सा विश्वविद्यालय और शानदार सड़कों के साथ एक अलग ही विकास देखा है। करहल, हालांकि, पिछले 30 वर्षों से बस सपा का किला बना हुआ है। करहल पिछले महीने तक अपने चमकते पड़ोस की छाया में रहा, जब तक अखिलेश यादव ने यहां से चुनाव में उतरने की बात नहीं की थी।

अखिलेश अपने घरेलू मैदान से चुनाव में उतर रहे हैं, जिससे पूरे क्षेत्र के सपा कार्यकर्ताओं में खासा जोश और उत्साह है। वहीं चाचा शिवपाल यादव के इस कच्चे सोदे से उनके समर्थकों का उत्साह जमीन पर दिखाई नहीं दे रहा है। दूसरी तरफ पूर्व मंत्री शिव कुमार बेरिया और इटावा के पूर्व सांसद रघुराज शाक्य जैसे कुछ बड़े नाम भाजपा में शामिल हो गए हैं, लेकिन सपा कार्यकर्ता इस तरह के नुकसान की भरपाई के लिए उत्साह से भरे हैं।

उधर भाजपा के शीर्ष नेताओं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव मौर्य- सभी ने भाजपा के करहल उम्मीदवार को इस चुनौती से लड़ने के लिए पूरा साथ देकर सक्षम बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

लेकिन सपा कार्यकर्ता बेफिक्र हैं। जसवंत नगर के सपा पदाधिकारी अर्जुन यादव कहते हैं, 'इटावा और मैनपुरी में सिर्फ एक ही सवाल पूछा जा रहा है. 'किसकी होगी बड़ी जीत? अखिलेश जी या शिवपाल जी'। इटावा में जसवंतनगर ऐतिहासिक रूप से सपा के कबजे में रहा है। 1967 में इसी सीट से पहली दफा मुलायम सिंह यादव चुनाव मैदान में उतरे और जीत हासिल कर विधानसभा तक पहुंचे थे। समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के भाई और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव 1996 से इस सीट पर विधायक चुने जा रहे हैं।

यादव, जो कम से कम 20 जिलों में 25-35% मतदाता हैं, अपनी पसंद और अपनी इच्छा के बारे में मुखर हैं। टिल्लू यादव, 20 के दशक के मध्य से, एक खास सपा समर्थक हैं। मुखर होकर कहते हैं, 'मैं दावा कर सकता हूं कि हमारे गांव का सारा वोट सिर्फ अखिलेश यादव को जाएगा। यह हमारे स्थानीय नेता के पीछे एकजुट होने का समय है।'

तीसरे चरण के चुनाव में बीजेपी और सपा दोनों ही एक बार फिर जातीय समीकरणों को साधने का प्रयास कर रही हैं। जहां बीजेपी ध्रुवीकरण के सहारे हिन्दू वोटों को एकजुट करने के कोशिशों में है, वहीं अखिलेश ने महानदल और अपना दल (कृष्णा) के जरिए गैर यादव पिछड़ी जातियों को साधने की कोशिश की है।

तीसरे चरण में बीजेपी के लिए जहां अपनी सीटें बचाने की चुनौती है तो सपा की साख दांव पर है। पिछले चुनाव में अपने प्रभाव वाले इन जिलों में सपा की हुई दुर्गति से उनके परिवार और पार्टी की साख मिट्टी मे मिल गई थी। अखिलेश यादव के सामने अपने गढ़ में खिसक चुके पार्टी के सियासी आधार को दोबारा से हासिल करने की बड़ी चुनौती है।

बुंदेलखंड के जिन जिलों की सीटों पर चुनाव हैं, वहां पर पिछली बार सपा-बसपा-कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी। इसके अलावा एटा, कन्नौज, इटावा, फारुर्खाबाद, कानपुर देहात जैसे जिलों में भी सपा को करारा झटका लगा था। जबकि, 2012 के चुनाव में इन जिलों में सपा को 37 सीटें मिली थीं। लेकिन 2017 में वो महज 9 सीटों पर सिमट गई थी। अब अखिलेश के सामने बाजी पलटने की बड़ी चुनौती है।


 



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