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प्रभात झा को याद कर बोले शिवराज, वे सच में एक सवेरा एक संस्था थे

राजनीति            Aug 06, 2024


मल्हार मीडिया भोपाल।

भाजपा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व राज्यसभा सांसद श्रद्धेय प्रभात झा की श्रद्धांजलि सभा में केन्द्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि अभी भी विश्वास नहीं होता कि प्रभात झा जी हमारे बीच नहीं रहे।

उन्होंने कहा कि कई बार जब व्यक्ति हमारे बीच होता है तो हम उनका महत्व तब नहीं समझते हैं, जाने के बाद ध्यान में आता है कि वो कितने महत्वपूर्ण थे।  अपने  लिए तो सब जीते हैं, अपने लिए जीये तो क्या जीये। जीता वही है जो समाज के लिए, देश के लिए और समाज के लिए जीये।

प्रभात जी के जीवन को हम देखते हैं, उनका क्या था उनके लिए। मैंने तो जब से उन्हें देखा, उन्हें झोला टांग कर काम करते हुए देखा। जब मैं युवा मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष था, तब पहली बार उनसे संपर्क हुआ। हमने क्रांति मशाल यात्रा की योजना बनाई, वो पत्रकार थे लेकिन हजारों पत्र कार्यकर्ताओं को उस यात्रा के लिए लिखे थे।

श्री चौहान ने कहा कि जितने पत्र प्रभात जी ने लिखे, और किसी ने नहीं लिखे होंगे। अपना हर काम कैसे सफल हो, ये तड़प उनमें थी। वो व्यक्ति नहीं, एक संस्था थे। लेखक के रूप में मौलिक चिंतक और राष्ट्रवादी विचारक थे। उनकी लेखनी ने ग्वालियर स्वदेश को एक विशेष स्थान दिलाया था।

कार्यकर्ता के नाते वो अद्भुत थे। मेरी एक सभा हुई थी, वो उसके लिए दिन और रात जुटे। एक जिद, जुनून, जज्बा सदैव उनमें था।

केंद्रीय मंत्री ने कहा आइडिया उन्हें ऐसे आते थे, क्रांति मशाल यात्रा हो या जनआशीर्वाद यात्रा, वो उसकी सफलता के लिए जुट जाते थे। पार्टी के राजनीतिक कार्यकाल को देखें, तो वो कितने पदों पर रहे। प्रदेश अध्यक्ष के नाते हर मण्डल अध्यक्ष से उनका संवाद होता था, प्रवास की कोई सीमा नहीं थी।

एक दिन में कई मंडलों का भ्रमण कर लेते थे। काम काज का लेखा-जोखा लेते हुए कई बैठक कर लेते थे। राज्य सभा के सदस्य के नाते कुशल सांसद के नाते अलग छाप उन्होंने छोड़ी।

एक कमी थी उनमें, काम करते हुए कभी अपने स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रखा। स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद लापरवाह थे। एक बार उनके पाँव में घाव हुआ, मैं जबरदस्ती इलाज के लिए उन्हें चेन्नई लेकर गया।

उन्होंने याद करते हुए कहा कि जब वो प्रदेश अध्यक्ष नहीं थे, तब जन आशीर्वाद यात्रा में वो लगातार यात्रा की बस में बैठते। जिस दिन वो यहाँ से दिल्ली ले जाए जा रहे थे, तब भी लगता था कि जल्दी ही वो स्वस्थ होंगे लेकिन वो लौटे नहीं। प्रभात जी सच में सवेरा थे, उन्होंने कई पत्रकारों को तैयार किया। मन को ये सोच के सांत्वना देनी पड़ती है कि सशरीर वो हमारे बीच नहीं हैं, शरीर क्षणभंगुर है, लेकिन आत्मा तो अजर अमर है।

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः नैनं चैनं क्लेदयन्त्यपो न शोषयति मारुतः ॥

वो सदैव हमारे बीच रहेंगे और हमें प्रेरणा देंगे।

हम उनके विचारों से शिक्षा लेकर अपने जीवन को सार्थक बनायें।

प्रभात जी, हो सके तो फिर लौट कर आना। उनके चरणों में विनम्र श्रद्धांजलि।

 


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