अरूण दीक्षित।
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के बुजुर्ग नेता दिग्विजय सिंह क्या अब पार्टी के भीतर अपनी अलग लाइन खींच रहे हैं?
केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा उपेक्षित दिग्विजय अब अपने पुराने "मित्र" कमलनाथ को भी किनारे करना चाहते हैं?
यह और ऐसे ही कई सवाल इन दिनों मध्यप्रदेश के राजनीतिक गलियारों में तैर रहे हैं।पिछले दिनों सड़क पर हुए संवाद ने इन सवालों को हवा दी है।
कांग्रेसी मानते हैं दिग्विजय खुद को चर्चा में बनाये रखने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं।इस समय वह जो कुछ कर रहे हैं,वह कोई नई बात नही है। उनका इतिहास टटोलिये सब समझ आ जायेगा।
फिलहाल दिग्विजय सिंह पिछले एक सप्ताह से चर्चा में हैं।पहले वे सुर्खियों में इसलिये आये क्योंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने उन्हें मिलने का समय नहीं दिया।
यह बात खुद दिग्विजय ने मीडिया को बताई और कहा कि शिवराज समय देकर भी उनसे नही मिल रहे हैं। इसलिए वे मुख्यमंत्री निवास के बाहर धरना देंगे।
अब वे 21 जनवरी को हुए धरने के समय सड़क पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ से अपने संवाद को लेकर चर्चा में हैं।
हालांकि 23 जनवरी को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने उन्हें अपने घर बुला लिया था। लेकिन इस मुलाकात के समय राजगढ़ के किसानों के साथ कमलनाथ भी मौजूद थे। इस मुलाकात के बाद दिग्विजय कोरोना की गिरफ्त में आ जाने की बजह से एकांतवास कर रहे हैं।
21 जनवरी को सड़क पर उनके और कमलनाथ के बीच हुआ संवाद चर्चा में है।यह संवाद वायरल हुआ है।दिग्विजय जब मुख्यमंत्री निवास के बाहर सड़क पर बैठे थे तब कमलनाथ भी उनसे मिलने पहुंचे थे।
वह भी उनके साथ सड़क पर बैठे। लेकिन उन्होंने दिग्विजय से पूछा कि चार दिन पहले तो मैं यहीं था मुझे इस कार्यक्रम के बारे में बताया तक नहीं गया।
इस पर बगल में बैठे दिग्विजय ने कहा कि क्या मैं आप से पूछकर मुख्यमंत्री से मिलने का समय लूंगा ? इस घटना के बाद ही अटकलों और सवालों का दौर शुरू हुआ है।
यह भी संयोग है कि जिस समय दिग्विजय धरने पर बैठे थे ठीक उसी समय कमलनाथ और शिवराज सिंह हवाईअड्डा पर आपस में बात कर रहे थे।
शिवराज से मिलने के बाद ही कमलनाथ दिग्विजय के धरने में पहुंचे थे।इस पर कमलनाथ से मीडिया ने सवाल भी किये थे।
कांग्रेस नेताओं का एक बड़ा वर्ग यह मान रहा है कि दिग्विजय सिंह अपनी लाइन बड़ी करना चाहते हैं। इसीलिए उन्होंने राजगढ़ के किसानों की आड़ लेकर यह सब किया।
गोपनीयता की शर्त पर एक वरिष्ठ नेता ने कहा-दिग्विजय प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, मुख्यमंत्री और केंद्रीय महासचिव रहे हैं। फिलहाल वह राज्यसभा सदस्य हैं। उन्हें पार्टी के नियमों की भलीभांति जानकारी है। उन्हें यह साफ करना चाहिए कि क्या वे निजी हैसियत से मुख्यमंत्री से मिलना चाहते थे या फिर राज्यसभा सदस्य और पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से?
अगर यह उनका निजी कार्यक्रम था तो कोई बात नहीं। अगर ऐसा नही तो उन्हें प्रदेश अध्यक्ष को इस बारे में सूचित तो करना ही चाहिए था।
अगर पार्टी नेता उनका अनुसरण करने लगेंगे तो फिर क्या होगा। अराजकता फैल जाएगी। कोई किसी की न सुनेगा न मानेगा।
एक अन्य नेता का कहना है कि दिग्विजय अब मनमानी कर रहे हैं। वे अब चाहते हैं कि कमलनाथ अब कोई एक पद अपने पास रखें।या तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहें या फिर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष।
इसके साथ ही वे यह भी सावित करना चाहते हैं कि कमलनाथ प्रदेश का नेतृत्व करने में सक्षम नही हैं।वह सिर्फ छिंदवाड़ा तक ही सीमित रहते हैं।इसलिए उन्हें खुद एक पद छोड़ना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि कमलनाथ की सरकार के पतन के लिए भी दिग्विजय ही जिम्मेदार माने जाते हैं। उनके और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच चल रहे घोषित युद्ध में कमलनाथ पिस गए।वे दिग्विजय की बातों में आ गए।उन्होंने सिंधिया की अनदेखी की।
नतीजा यह हुआ कि सिंधिया कांग्रेस छोड़ भाजपा में चले गए और कमलनाथ अचानक वर्तमान से भूतपूर्व मुख्यमंत्री हो गए। कहा यह भी जाता है कि सिंधिया से पहले दिग्विजय के करीबी आधा दर्जन विधायक भाजपा के पाले में गए थे।
दिग्विजय उन्हें रोक इसलिए नही पाए क्योंकि वे समर्थन मूल्य के साथ साथ मंत्री पद का सौदा कर चुके थे। उनके फैसले के बाद ही सिंधिया समर्थक एकजुट हुए थे।
कांग्रेसी साफ साफ कहते हैं कि 15 महीने की सरकार के मुखिया तो कमलनाथ थे लेकिन उसका असली कंट्रोल दिग्विजय के हाथ में था।प्रमुख पदों पर उनके विश्वस्त अफसर बैठाए गए थे।
कमलनाथ भरम में रहे, दिग्विजय को अपना सबसे पुराना और करीबी साथी बताते रहे,उधर दिग्विजय ने अपना कमाल दिखा दिया।
दिग्विजय के समकालीन एक वरिष्ठ नेता तंज करते हुए कहते हैं-कमलनाथ यह भूल गए थे कि इन्ही दिग्विजय सिंह ने अपने गुरु अर्जुन सिंह को प्रदेश में राजनीतिक हाशिये पर पहुंचा दिया था।
इन्होंने ही अपने एक फिल्मस्टार नीतीश भारद्वाज को हराने वाले आने सगे भाई लक्ष्मण सिंह को एक अनजान आदमी से लोकसभा चुनाव हरवा दिया था।वे उनके सगे कैसे हो सकते हैं।
दिग्विजय की राजनीति पर पिछले चार दशक से गहरी नजर रखने वाले एक पुराने कांग्रेसी नेता की राय में-दिग्विजय इन दिनों तड़प रहे हैं।
दिल्ली उन्हें पूछ नही रही है, जिस उत्तरप्रदेश के प्रभारी रहे हैं,उसमें चुनाव प्रचार का चेहरा भी नही बनाया है।10 जनपथ और 24 अकबर रोड के कपाट उनके लिए खुल नही रहे हैं। तो फिर वे क्या करें?कुछ तो करेंगे ही!
उनका कहना है कि 2003 के चुनाव में पार्टी को रसातल में पहुंचाने के बाद से दिग्विजय लगातार उसकी जड़ें खोखली कर रहे हैं। 2003 के बाद हुए सभी विधानसभा चुनावों में उनकी भूमिका की समीक्षा कर ली जाए तो असलियत सामने आ जायेगी।
लेकिन दुःखद स्थिति यह है कि केंद्रीय नेतृत्व खुद आंखे बंद किये बैठा है। फैसले न लेने के उसके फैसले ने पार्टी को जिस हाल में पहुंचाया है वह सभी देख रहे हैं।यही हाल रहा तो मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस की हालत उत्तरप्रदेश जैसी हो जाएगी।
दिग्विजय एकांतवास में हैं, लेकिन कांग्रेस के भीतर और बाहर चर्चा उन्ही को लेकर हो रही है।यह साफ है कि वे वही कर रहे हैं जो वे चाहते हैं। कमलनाथ तो क्या उन्हें अब गांधी परिवार की भी परवाह नही है?
वे चाहते हैं कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस उनके अंगूठे के नीचे रहे।
देखना यह है कि अब कमलनाथ क्या करते हैं!
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