कौशल सिखौला।
मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद अतीत का स्मरण हो रहा है !
स्वतन्त्र भारत का स्वर्णिम अतीत !
विपक्ष के अनेक स्वनामधन्य नेताओं की याद आ रही है ,,,
वे धुरंधर नेता , जिनसे देश को बल मिला , सरकार आगे बढ़ी और सच कहें तो सच्चे लोकतन्त्र की परिभाषा सत्य हुई ,,,
विपक्ष के उन नामों को आप भी जरा याद कीजिये !
अच्छा लगेगा , कुछ चित्र मस्तिष्क में उभर आएंगे !
साथ ही समय परिवर्तन का अनुभव भी हो जाएगा !
याद हैं न राममनोहर लोहिया , श्यामाप्रसाद मुखर्जी , दीनदयाल उपाध्याय , महावीर त्यागी , प्रकाशवीर शास्त्री , तारकेश्वरी सिन्हा , अटल बिहारी वाजपेयी , लालकृष्ण आडवाणी , जार्ज फर्नांडि ,मधु लिमये , सुषमा स्वराज , मुरलीमनोहर जोशी , राजनारायण , पीलू मोदी , ज्योति बसु , चरण सिंह , मधु दण्डवते , सुरजीत सिंह , चंद्रशेखर , रामधन , सोमनाथ चटर्जी , मोहन धारिया आदि सरीखे बड़े बड़े नाम। ऐसे नेता जो संसद की शान थे , आन बान थे।
इन नेताओं और इन जैसे अनेक भुला दिए गए नेताओं के सामने तत्कालीन प्रधानमंत्री तथा अन्य तमाम मंत्री जोरदार तैयारियां करके आते थे।
सभी लोकसभाध्यक्ष और राज्यसभा सभापति इन नेताओं को समय बीत जाने पर भी बोलने से नहीं रोक पाते थे , खुद सुनना चाहते थे।
जयप्रकाश नारायण , नानाजी देशमुख , गोविंदाचार्य , हेमवती नंदन बहुगुणा आदि को भुला पाना मुश्किल है । आजादी के बाद सोशलिस्ट पार्टी , स्वतन्त्र पार्टी , जनसंघ , लोकदल ,
समता पार्टी , कम्युनिस्ट पार्टी आदि के नेताओं ने लोकतन्त्र को विपक्ष में रहते हुए भी नए आयाम प्रदान किए ।
अतीत में बहुत खो लिए , अब जरा वर्तमान में आ जाइए ।
आज के विपक्ष के बारे में भी बताने की जरूरत है क्या ? आंनद शर्मा , गुलाम नबी आजाद , मनीष तिवारी अच्छे नेता हैं ।
लेकिन आलाकमान को चिट्ठी लिखने का दुस्साहस किया और लंबे समय से हाशिये पर हैं । नबी तो पार्टी ही छोड़ गए हैं। कांग्रेस में यस मैन चाहिए, जो बोला वह गया । ज्योतिरादित्य सिंधिया विपक्ष के अच्छे नेता थे , चले गए ।
आज के विपक्ष में राहुल का क्या स्थान है , आकलन लगातार होता रहता है ।
पार्टी यदि आज भी युवाओं की अपेक्षा अशोक गहलौत और खड़के जैसे बुझते चिरागों को रौशन कर रही है तो बात करना ही बेकार है ।
पुराने स्वनामधन्य विपक्ष के सामने आज का विपक्ष , सच कहें तो टिक नहीं सकता ।
अब आप ही बताइए लालू , अखिलेश , मायावती , ममता , येचुरी , वृंदा , तेजस्वी आदि नेता पुराने विपक्षी नेताओं के वजूद के मुकाबले किस पायदान पर हैं ?
मुस्लिम राजनेताओं में ओबैसी के अलावा विपक्ष में आज कोई नेता नजर नहीं आता । मुस्लिम राजनीति को खुद मुसलमानों ने ही मौलाना कहकर मुलायम सिंह के सिर बंध दिया था ।
पहले जितने मुस्लिम नेता हुए वे सत्तारूढ़ कांग्रेस में रहे ।
जबकि विपक्ष में रहते हुए भाजपा के पास सिकंदरबख्त , मुख्तार अब्बास नकवी और शाहनवाज हुसैन के अलावा अकबर अहमद डम्पी ही नेता के रूप में ठहर पाए ।
अलबत्ता आज केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान सत्तारूढ़ पार्टी के प्रबल हस्ताक्षर बने हुए हैं ।
दुनिया की सर्वश्रेष्ठ व्यवस्थाएं जनतंत्र में स्थापित की जा सकती हैं ।
सच कहें तो हम संसार के सबसे बड़े ही नहीं सबसे पुराने लोकतन्त्र हैं।
लोकतन्त्र न होता तो कैकेई के आदेश पर राम वनों को न जाते।
लोकतंत्र न होता तो धोबी के कहने से राम अपनी प्रिय पत्नी सीता का परित्याग नहीं करते । परन्तु लोकतन्त्र के लिए आज की बदलती दुनिया में बहुत गंभीर विपक्ष जरूरी है।
हम सभी कल में नहीं आज में जीते हैं।
कितना अच्छा लगता यदि वर्तमान विपक्ष ने कभी पुराने विपक्ष से कुछ सीखने की तमन्ना की होती ?
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