प्रकाश भटनागर।
बात दो दशक से अधिक पुरानी है। तब युवक कांग्रेस का दौर था। कांग्रेस की इस विंग के तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष के खिलाफ एक गुट ने बगावत कर दी। गुट के सदस्य भोपाल में एकत्र हुए।
अध्यक्ष के धुर विरोधी एक कांग्रेस नेता के नेतृत्व में उन्होंने बैठक की। आरोप लगाया कि अध्यक्ष युवक कांग्रेस में पैसे लेकर पद बांट रहे हैं।
तमतमाए अध्यक्ष महोदय अगले दिन भोपाल पहुंचे, मीडिया से अनौपचारिक बातचीत में उन्होंने आरोपों को गलत बताने की रस्म अदायगी पूरी की।
साथ ही कुछ दंभ के साथ ऑफ दि रिकॉर्ड उन्होंने यह भी कहा, ‘मैं पैसे लेता नहीं, बल्कि देता हूं।’
बात एक दिन पुरानी है। कांग्रेस की छात्र विंग एनएसयूआई की है। इसके प्रदेश अध्यक्ष आशुतोष चौकसे पर भी पैसे लेकर पद बांटने का आरोप लग रहा है।
चौकसे की कथित रूप से एक चैट का बड़ा हल्ला है, कहा जा रहा है कि इसमे NSUI का कोई पद पाने के लिए एक उम्मीदवार चौकसे को पांच लाख रुपए देने की पेशकश कर रहा है।
बातचीत कुछ मोल-भाव वाले स्तर पर भी जाती है, चौकसे कह रहे हैं कि उसी पद के लिए कोई अन्य व्यक्ति नौ लाख रुपए देने को तैयार है।
फिर पैसे की पेशकश करने वाला पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का यशोगान करते हुए अपनी बात ख़त्म कर देता है। इस ‘चर्चा’ में किसी ‘दादा’ का भी जिक्र हो रहा है।
यहां याद आता है कि कांग्रेस में कई लोग कमलनाथ को भी ‘दादा भाई’ कहकर संबोधित करते हैं और दिग्विजय सिंह के लिए भी ‘राजा साहब’ के बाद ये संबोधन सम्मान के साथ प्रयोग किया जाता है।
यह तो खैर याद दिलाने की जरूरत ही नहीं है कि इस समय राज्य में कांग्रेस के बाप-दादा वाली हैसियत इन दो पूर्व मुख्यमंत्रियों को ही हासिल है।
वैसे यह बात भी गौरतलब है कि पद का उम्मीदवार चौकसे से ‘हमारे तो दादा और दिग्विजय सिंह, सब आप ही हो’ कह रहा है।
यह कौन ‘दादा’ हो सकता है, जिसे सिंह से भी पहले स्थान दिया जा रहा है? यह प्रश्न विचारणीय है।
लेकिन पांच लाख का लेन-देन (जैसा कि चैट को लेकर माना जा रहा है) में नाथ या सिंह जैसे किसी चेहरे के किसी भी रूप में शामिल होने की कल्पना भी बचकानी लगती है।
हां, यह किसी से भी नहीं छिपा है कि पद के लिए कांग्रेस सहित किसी भी अन्य राजनीतिक दल में ‘इस हाथ दे और उस हाथ ले’ वाली बात अब नयी नहीं रह गयी है।
मामला हर जगह पैसे का नहीं होता, अन्य व्यवहार तथा सरोकार निभा कर भी इस प्रक्रिया को पूरा किया जाने लगा है।
पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने कुछ समय पहले प्रदेश भाजपा संगठन में नियुक्तियों को लेकर जो आरोप दागे थे, उनके पीछे भी इसी तरह के दागदार व्यवहार छिपे हुए थे।
बहरहाल, चौकसे ने इस चैट को फर्जी बताया है, स्वयं को गरीब परिवार का बताते हुए वह कहते हैं कि एक निर्धन का इस पद तक पहुंचना कई लोगों को भा नहीं रहा है, इसलिए उनके खिलाफ साजिश रची गयी है।
अब जबकि चौकसे के मुताबिक़ उन्होंने इसकी शिकायत पुलिस में की है, तो उम्मीद की जाना चाहिए कि मामले का सच सामने आ जाएगा।
वैसे एक बात है। करीब 35 साल की पत्रकारिता में मैंने पिछले लगभग तीस साल में एक ख़ास ट्रेंड देखा है। मेरा आंकलन है कि तीन दशक में किसी पार्टी के संगठन का जिला स्तरीय पद भी बड़े काम और नाम सहित दाम की ग्यारंटी बन चुका है।
प्रदेश के किसी छोटे-से छोटे हिस्से में चले जाइए, आपको एक से अधिक वह लक्जरी वाहन दिख जाएंगे, जिनके आगे राजनीतिक दल का नाम और फिर ‘ब्लॉक अध्यक्ष फलाना’ लिखा रहता है।
जिस प्लेट पर ऐसा लिखा रहता है, उससे लेकर गाड़ी में सवार नेताजी के तेवर आपको यह अहसास करने पर विवश कर देते हैं कि कम से कम इस इलाके का राजा तो यह ही है।
बाहर नहीं जाना है तो कभी भोपाल में किसी राजनीतिक दल के बड़े आयोजन स्थल तक हो आइए।
वहां सैंकड़ों की संख्या में ग्राम से लेकर ब्लॉक इकाइयों के उन पदाधिकारियों के बेहद महंगे वाहन मिल जाएंगे, जिन पदाधिकारियों को भोपाल के अनुभव के लिहाज से हम आज भी ‘छुटभैये’ नेता कहकर ही बुलाते हैं।
मैं भोपाल में एक ऐसे अफसर को जानता हूं, जो PWD में पदस्थ रह चुके हैं। कुछ साल पहले उन्होंने फील्ड की बजाय ऑफिस में नियुक्ति का आवेदन दे दिया था। मामला खालिस रूप से मलाई छोड़कर सूखी-रूखी रोटी की तरफ जाने का था।
मैंने वजह पूछी तो अफसर ने बताया कि जिस सेक्शन में वह पदस्थ है, वहां सत्तारूढ़ दल का विधायक है।
विधायक का एक प्रतिनिधि उसकी नींद उड़ाए हुए है, क्षेत्र में जिस भी जगह विभाग का काम होता है, वह प्रतिनिधि वहां पहुंचकर काम के घटिया होने और उसकी शिकायत करने की बात करके उस अफसर से पैसे ऐंठ लेता है।
ये पीड़ा अकेले इस अफसर की नहीं थी, बाकी सभी ऐसे मामलों के उदाहरण के दुहराव का कोई अर्थ नहीं है।
अर्थ केवल इस बात का है कि अर्थशास्त्र के लिहाज से अब राजनीतिक दलों में छोटे से छोटा पद भी बहुत अर्थपूर्ण हो चुका है।
भोपाल के इस अब पूर्व हो चुके विधायक प्रतिनिधि से लेकर राज्य के किसी दूरस्थ क्षेत्र की पगडंडियों पर लकदक वाहन में शान और गुरूर से सवार पदाधिकारी ही वह तथ्य हैं, जो आशुतोष चौकसे वाले मामले को पूरी तरह से खारिज होने नहीं देंगे।
आखिर मामला पद, कद और उससे उपजे मद वाला जो ठहरा।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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