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RTI के तहत जानकारी मांगने पर आवेदक को बताया छद्म आचरणकारी

राज्य            Dec 15, 2017


छतरपुर से धीरज चतुर्वेदी।
सूचना के अधिकार अधिनियम को जहां जनता का हथियार माना जाता है। वहीं सरकारी तंत्र की धारणा इसका उपयोग करने वालों को बेईमान और कार्य में बाधा वाली है। यह सरकारी दस्तावेज की फाईल में एक जिम्मेदार अधिकारी के द्धारा लिख कर दिया गया है।

मामला मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले का है, जहां एक जिम्मेदार अधिकारी ने सूचना के अधिकार कानून की अवधारणा को ही कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है। छतरपुर शहर में संचालित प्राईवेट और पब्लिक ट्रस्ट जानकारी के लिये सूचनाधिकार कानून के तहत् मांग की गई।

आवेदन अनुविभागीय अधिकारी राजस्व (एसडीएम) कार्यालय में डाक रजिस्ट्री द्धारा 31 अगस्त को भेजा गया। समयावधि पूरी होने के बाद भी जानकारी देना तो दूर आवेदक को सूचना तक देना उचित नही समझा गया। आवेदक ने कलेक्टर एंव प्रथम अपीलीय अधिकारी के यहां 3 नवंबर 2017 को अपील दायर की। अनुविभागीय अधिकारी से इस संबध में कलेक्टर न्यायालय ने प्रतिवेदन मांगा। कलेक्टर कार्यालय और एसडीएम कार्यालय की अधिकतम दूरी आधा किलोमीटर से कम ही होगी।

सरकारी प्रतिवेदन को इस आधा किलोमीटर की दूरी तय करने में एक माह का समय लग गया। एसडीएम कार्यालय ने प्रतिवेदन की जगह उत्तर भेजा। जिसमें लिखी परिभाषा साफ तौर पर सूचना के अधिकार कानून को अपमानित करने जैसी है। एसडीएम के हस्ताक्षरित इस जबाब में लिखा गया कि आवेदक ने जो जानकारी मांगी है उसके लिये कार्यालय का सारा कार्य बंद करना होगा। सूचना के अधिकार कानून की अधिकारियों के नजरिये में क्या अहमियत है यह बात इससे साबित होती है कि अधिकारी ने जबाब में अपीलार्थी को सूचना के अधिकार कानून की आढ़ में क्षद्म आचरण करने वाला बता दिया।

साथ ही दूषित मानसिकता से प्रेरित आर्थिक लाभ प्राप्त करने की चेष्टा वाला बताकर साफ तौर पर बेईमान घोषित कर दिया। जिम्मेदार पद पर आसीन एसडीएम द्वारा सरकारी दस्तावेज में अपीलार्थी को बेईमान, दूषित मानसिकता, क्षद्म आचरण से निरूपित करना एक गभीर मामला है। अपीलार्थी ने जिसकी शिकायत लिखित रूप में कलेक्टर के समक्ष की है। शिकायत में मांग की गई है कि अगर कलेक्टर द्वारा कार्यवाही ना की गई तो पृथक रूप से अदालत में मानहानि का मुकदमा कायम किया जायेगा।

यह पूरा मामला दर्शाता है कि सूचना के अधिकार कानून को अधिकारी हजम नही कर पा रहे है। वैसे भी छतरपुर जिले में सैकड़ों आवेदन हैं जिन्हे कचरे की टोकरी में फेंक दिया जाता है। सूचनाधिकार कानून के तहत् अपील की जटिल प्रक्रिया है जिससे आवेदक कानूनी दांवपंच में ना फंस स्वतः ही चुप बैठ जाता है। सरकारी तंत्र आवेदकों की इस कमजोरी को भांपकर अधिकांश आवेदनो पर कार्यवाही नही करता।

सूचनाधिकार कानून को यूं तो जनता के लिये हथियार माना गया। सरकारी तंत्र के भ्रष्ट आचरण को खोलने में इसी कानून की अहमियत रही। समय के साथ अब यह कानून हावी नौकरशाही के कारण छटपटाता सा नजर आ रहा है। बेईमानी को रोकने वाले कानून का यह हाल है कि इसका उपयोग करने वाले ही अब सरकारी तंत्र की निगाह में बेईमान न सिर्फ घोषित किए जा रहे हैं बल्कि बकायदा सरकारी दस्तावेजों तक में बेईमान लिखा जा रहा है।

 



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