विनोद नागर।
भोपाल में बीएचईएल के अधिकार क्षेत्र वाले जम्बूरी मैदान पर विशाल राजनीतिक जमावड़ों का आयोजन कोई नई बात नहीं है। न ही वहाँ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का शपथग्रहण समारोह कोई पहली बार आयोजित किया गया। प्रधानमंत्री समेत दिग्गज राजनेताओं की आम सभा और चुनावी रैलियों के लिये राजधानी में यह सर्वाधिक मुफीद स्थान माना जाता है।
पर सोमवार को इसी जम्बूरी मैदान के विशाल मंच पर राज्य के 18 वें और कांग्रेस के 11 वें मुख्यमंत्री के बतौर कमलनाथ का शपथविधी समारोह प्रतिद्वंदिता की राजनीति में सौहार्द्र की नई इबारत लिख गया।
यूँ तो शपथग्रहण समारोह के मंच पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी व दो पूर्व प्रधानमंत्रियों मनमोहन सिंह और एचडी देवेगौड़ा समेत कांग्रेस व यूपीए के सहयोगी दलों के पच्चीस तीस जाने पहचाने चेहरे प्रफुल्लित मुद्रा में मौजूद थे।
शरद पवार, शरद यादव, फारूख अब्दुल्ला, चंद्रबाबू नायडू, के चंद्रशेखर राव, सिद्धरमैया, स्टालिन, नवजोतसिंह सिद्धू, राज बब्बर, अशोक गहलोत, सचिन पायलट, मल्लिकार्जुन खडके, आनंद शर्मा, राजीव शुक्ला, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कई अन्य नेता व धर्मगुरु मंच की शोभा बढा रहे थे।
राज्यपाल आनंदीबेन पटेल द्वारा कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद की दिलाये जाने के बाद जम्बूरी मैदान में जमा कांग्रेसियों की भीड़ के हर्षोल्लास का पारावार न रहना स्वाभाविक था।
आखिर 15 साल बाद पार्टी के सत्ता में लौटने से उनके अच्छे दिन जो आने वाले हैं।
बिना किसी भाषणबाजी के चंद मिनटों मे निपटी शपथविधी और महामहिम राज्यपाल के जाते ही कमलनाथ के लिए बधाइयों के तांते के बीच देखते ही देखते पूरा मंच महागठबंधन की एकता प्रदर्शित का माध्यम बन गया।
चलिये बड़ी दूर से आये और एकता का संदेशा लाये तो इसमें हर्ज ही क्या है। पर उसी मंच पर आज शिवराज सिंह चौहान ने एक तरफ ज्योतिरादित्य सिंधिया और दूसरी तरफ अपने उत्तराधिकारी कमलनाथ का हाथ पकड़कर एक साथ ऊँचे उठाते हुए जिस सहज स्नेह और सौहार्द्र की अनूठी मिसाल पेश की वह पूरी महफिल लूट ले जाने वाली थी।
अनायास सामने आये इस अप्रत्याशित घटनाक्रम ने सबका दिल जीत लिया। दो ढाई घंटे से पंडाल में बैठे बैठे 'पूरे मंत्रिमंडल के स्थान पर अकेले मुख्यमंत्री के शपथ लेने' से खजियाए आम कार्यकर्ता भी इस औचक सीन को देखकर चहक उठे।
आखिर यही अदा शिवराज को न केवल उनके समकालीन राजनेताओं से अलग पहचान दिलाती है बल्कि दलीय राजनीति से इतर उच्च मानवीय गुणों वाले भले इन्सान की लोकछवि को पुष्ट करती है।
हाथ कंगन को आरसी क्या। दलगत राजनीति से परे, आज नये मुख्यमंत्री के शपथग्रहण ग्रहण समारोह में पूर्व मुख्यमंत्री के बतौर केवल शिवराज सिंह ही नहीं दिग्विजय सिंह का स्नेहिल संस्कारित रुप भी देखने को मिला, जब उन्होंने भाजपा के ही दो और पूर्व मुख्यमंत्रियों कैलाश जोशी और बाबूलाल गौर को पूरे मान सम्मान के साथ मंच पर उनकी कुर्सियों तक ले जाकर बैठाने की सौजन्यता दिखाई। राजनीतिक सितारों के मंच पर ऐसे दृश्य दुर्लभ होते हैं।
जिस राजनैतिक सौहार्द्र की मिसाल आज भोपाल में नई सरकार के विधिवत श्रीगणेश के शगुन के पलों में नजर आई है, यदि उसके पीछे कोई छुपे निहितार्थ नहीं हैं तो, यह मध्यप्रदेश को शांति का टापू बने रहने में बड़ा योगदान करेगी। इसे किसी की बुरी नजर न लगे, चुनाव तो आते जाते रहेंगे..।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।
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