मल्हार मीडिया ब्यूरो।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सिविल सर्विस-डे के मौके पर राज्य की नौकरशाही के कामकाज की सराहना करते हुए कहा कि कई बार अफसरों में ईगो को लेकर टकराव हो जाता है, जो अच्छा नहीं है। मुख्यमंत्री के इस बयान पर कांग्रेस ने चुटकी लेते हुए कहा कि मुख्यमंत्री को यह समझने में 13 साल से ज्यादा का वक्त लग गया। मुख्यमंत्री चौहान ने यहां प्रशासनिक अकादमी में शुक्रवार को आयोजित कार्यक्रम में कहा कि जनता और जन-प्रतिनिधियों को जोड़कर शासकीय योजनाओं और कार्यक्रमों का संचालन जन-अभियान के रूप में किया जाना चाहिए। जनता की सहभागिता से किए गए कार्यो की सफलता सुनिश्चित होती है।
मुख्यमंत्री ने इस दौरान अफसरों को सलाह दी कि वे अपने ईगो को ज्यादा महत्व न दें, कई बार ईगो के चलते होने वाले टकराव से राज्य का नुकसान होता है।
मुख्यमंत्री के इस बयान को पुलिस महकमे में कमिश्नर प्रणाली लागू किए जाने की कवायद के दौरान आईएएस और आईपीएस के बीच उभरे तनाव से जोड़कर देखा जा रहा है।
मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि जन-प्रतिनिधि जन-भावनाओं से अवगत होते हैं। उनके साथ संतुलित ताल-मेल और समन्वय जरूरी है। जन-प्रतिनिधियों से शासकीय प्रयासों के प्रभावों और जन-भावनाओं का बेहतर फीडबैक मिलता है।
उन्होंने कहा कि योजनाओं एवं कार्यक्रमों की सफलता सुनिश्चित करना सिविल सेवक का दायित्व है। शासन की नीतियों का क्रियान्वयन तभी सफल होगा, जब उसका लाभ लक्षित वर्ग को मिलें, मंशा के अनुरूप जनता को योजना का लाभ नहीं मिलने से विफलता ही हाथ लगेगी।
चौहान ने विभिन्न योजनाओं के उद्देश्यों और प्रक्रियाओं के प्रसंगों के आधार पर सिविल सेवक की सकारात्मक सोच की भूमिका का उल्लेख करते हुए कहा कि सिविल सेवा नौकरी नहीं, मिशन है। आम आदमी का भविष्य उज्ज्वल बनाने की जिम्मेदारी सिविल सेवक की है। जनतंत्र की समस्त व्यवस्थाएं जन के लिए हैं। इसलिए तंत्र को जन-भावनाओं के अनुरूप ही चलना चाहिए।
मुख्यमंत्री के बयान पर कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता के.के. मिश्रा ने चुटकी ली है। उन्होंने एक बयान जारी कर कहा है कि मुख्यमंत्री चौहान द्वारा यह कहना कि 'अधिकारियों मे इगो है और उनके बीच भारत-पाकिस्तान जैसा तनाव है', दुखद है। सवाल उठता है कि आखिरकार इस सच्चाई को स्वीकार करनें में मुख्यमंत्री को 13 साल क्यों लगे और यदि यह स्थिति है तो उसका जवाबदार कौन है, यह सार्वजनिक होना चाहिए।
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