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मप्र में सरकार-संगठन को लेकर भाजपा हाईकमान में बड़प्पन कम बचपना ज्यादा

राज्य            Nov 20, 2018


राघवेंद्र सिंह।
एक जमाने में राजनीति हकीकत पर आधारित होती थी और माननीय नेताओं की विश्वनीयता जनता और कार्यकर्ता दोनों में हुआ करती थी। लेकिन वक्त बदला और इसमें फिसलन का ऐसा दौर शुरू हुआ कि रूकने का नाम नही ले रहा है। ताजा संदर्भों में हम भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के नारे का जिक्र कर रहे है जिसमें उन्होंने 230 सीटों वाली विधानसभा में भाजपा सरकार के िलए अबकी बार 200 पार का नारा दिया था।

पिछले साल का यह नारा न तब कार्यकर्ताओं के लिए भरोसे मंद था और न आज जनता के दिल दिमाग में उतर पा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी ने एक साक्षातकार में कहा है कि यह मुश्किल आंकड़ा है। इसी तरह गप्पों के तीर चलाने में कांग्रेस भी पीछे नही है उसने अपने वचन पत्र में प्रदेश के किसानों पर से 75 हजार करोंड़ के कर्ज माफ करने का ऐलान किया है। इसपर अविश्वास का आलम यह है कि कांग्रेसी हथेली में गंगाजल लेकर किसानों को भरोसा दिला रहे है कि कर्जा माफ किया जायेगा।

ये दो मुद्दे बताते है कि हवा में बात करने वाले नेताअाें पर कोई भरोसा नही कर पा रहे हैं। चुनाव का वक्त पार्टी और उसके नेताओं में जनता में कितनी कद्र है और कितना भराेसा है यह जानने के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। चिंताजनक यह है कि दोनों पार्टियां विश्वास के मामले में भरोसेमंद कम और गपोड़ी ज्यादा साबित हो रही है।

थोड़ा पीछे जायें तो अमित शाह का वह बयान हम केन्द्र की सरकार में कालाधन वापस लायेंगे और उससे हर व्यक्ति के खाते में 15 लाख रूपयें आयेंगे। बाद में शाह साहब का बयान पार्टी के लिए भारी पड़ा और कहा गया कि वह तो एक जुमला था। इसके बाद इसके बाद गुजारात चुनाव में फिर शाह ने दावा किया था कि अब की बार डेढ़ सौ पार लेकिन हकीकत में बहुमत से मात्र सात सीटें ही भाजपा को ज्यादा मिली और उसका आकड़ा 99 पर अटक गया।

शाह साहब के बड़बोले पन का यह दूसरा उदाहरण था। यहां वह यह भी कहते थे कि अगर 150 से एक भी सीट कम आई तों हम विजय का उत्सव नही मनाएंगे। इसके बाद उन्होंने मध्यप्रदेश ऐलान किया कि इस बार संगठन आगे होगा अौर पार्टी चुनाव में किसी चेहरों को सामने नही रखेगी। फिर यहां संगठन खास तौर से मध्यप्रदेश के मामलें अमित जी मात खा गए। प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के चेहरे पर ही पार्टी मैदान में उतरी है।

ये कुछ बातें है जो बताती हैं कि प्रदेश सरकार और भाजपा संगठन को लेकर हाईकमान में बड़प्पन कम और बचपना ज्यादा लगा रहा है।

इस तरह कि नान सीरियस बातें बिहार, दिल्ली और कर्नाटक के चुनाव में भी भाजपा नेतृत्व कर चुका है हालांकि इसके पीछे एक तर्क यह भी होता है कि कार्यकर्ताओं में जोश पैदा करने और जनता में महौल बनाने के लिए बड़े - बड़े दावे करने पड़ते हैं। भाजपा की राजनीति में मध्यप्रदेश के वरिष्ठ नेता ने अपने ही दिग्गजों पर यह टिप्पणी की थी की “आ गये है घोष्ाणावीर और खूब चलेंगे गप्पों के तीर”।

कुल मिलाकर भाजपा और कांग्रेस चुनाव जीतने के लिए कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए सच्चाई से दुर ऐसे नारे, दावे और वादे कर रही है जो जिनपर अमल करना मुश्किल ही नही ना मुमकिन सा लगता है।

जैसे शाह साहब का 200 पार और कांग्रेस का वचन पत्र में 75हजार करोड़ के किसान ऋण माफ करने का ऐलान बताता है कि मतदाताओं को बहलाने के लिए कुछ भी वादा करने से कोई पीछे नही हटेगा। अलग बात है कि इससे दल और नेताओं की साख दाव पर लग जाए अभी तो सब दाव पर लगा हुआ है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और आईएनडी समाचार चैनल में संपादक हैं।

 


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