मौं में शक्कर, पांव में चक्कर वाले भैया के मौं में कड़वाहट

राज्य            Aug 14, 2019


प्रकाश भटनागर।
क्या पता शिवराज सिंह चौहान को किस बात का फोबिया है। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद 'मो में शक्कर, पांव में चक्कर वाले भैया' के चक्कर तो यथावत हैं लेकिन 'मो में शक्कर' की बजाय अब 'कड़वाहट' ज्यादा है।

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर पार्टी लाइन के हिसाब से शिवराज सिंह चौहान गलत नहीं हैं। कश्मीर के मसले पर भाजपा नेहरू के कदम और दृष्टिकोण दोनों को गलत मानती हैं और सार्वजनिक तौर पर इसकी आलोचना करती रही है।

मालूम नहीं शिवराज को सूर्खियों का चस्का क्यों लगा है। उनके द्वारा जवाहरलाल नेहरू के लिए 'अपराधी' शब्द के चयन पर घोर आपत्ति की जाना चाहिए। उनके इस बयान के बाद लगता नहीं कि यह शख्स तीन बार में तेरह साल मध्यप्रदेश का लगातार मुख्यमंत्री रहा होगा।

विधानसभा में भी उनका आचरण एक पूर्व मुख्यमंत्री की गरिमा के अनुरूप अब तक नजर नहीं आया। गोपाल भार्गव नेता प्रतिपक्ष हैं लेकिन शिवराज को मानो हर विषय पर खुद बोलना जरूरी लगता है।

13 साल सरकार के पैसों से प्रचार के केन्द्र में रहे शिवराज को अब भी किसी तरह मीडिया की सुर्खियों में रहने की तड़प है। उन्हें डर है कि उनके वे दिन अब लौटने वाले नहीं, जो तेरह साल लगातार थे। उनका यह डर सही भी है।

मैं गांरटी से अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि यहां 'डर के आगे जीत' जैसा कुछ घटित नहीं होने वाला।

कश्मीर मामले पर जब मामला देश के नासूर बन चुके दर्द से जुड़ा हो तो इस पर तीखी अभिव्यक्ति को तो समझा जा सकता है। लेकिन नेहरू के लिए 'क्रिमिनल' शब्द का प्रयोग मानसिक दिवालिएपन से ज्यादा नहीं माना जा सकता।

हालांकि कांग्रेस यह समझने का प्रयास ही नहीं कर रही है कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 का खात्मा वस्तुत: इस देश की बहुत बड़ी आबादी की ख्वाहिश पूरा होने का मामला है। तुष्टिकरण के जुनून में पार्टी के अधिकांश नेता इस मसले पर बचकाने बयान दिये जा रहे हैं।

जिसकी प्रतिक्रिया में शिवराज ने समस्या की जड़ पर प्रहार करते हुए कुछ ऐसा कह दिया है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ या किसी भी दूृसरे कांग्रेसी का तिलमिलाहट से भर जाना स्वाभाविक हैं।

अब जब नेहरू जी इतिहास हो गए हैं तो उनके उठाए कदमों की समीक्षा होगी ही। कल को नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के साथ भी ऐसा ही होगा। इतिहास आखिर सीखने और सबक लेने के लिए ही है।

इसलिए कोई एक ठोस तर्क देकर देश की बहुसंख्या को यह नहीं समझा सकता कि कबायली हमले के बाद पाकिस्तान को घर में घुसकर सबक सिखाने पर आमादा भारतीय सेना के कदम रोकने का तब भला क्या औचित्य था, जब सिर्फ चालीस फीसदी और हिस्से पर कब्जा करना बाकी था।

इससे तो खैर कोई खांटी कांग्रेसी भी इनकार नहीं कर सकता कि यह आदेश पंडित जवाहर लाल नेहरू का ही था। तब सेना का उत्साह चरम पर था। सारे देश की भावनाएं उसके साथ थीं। लेकिन क्षुद्र सियासी स्वार्थों के चलते नेहरू ने वही किया, जो कालांतर में उनके नाती राजीव गांधी ने शाहबानो प्रकरण में करके कांग्रेस की मट्टीपलीद की थी।

कांग्रेस की समस्या शायद यह है कि वह हवा का रुख भांपने में नाकाम रहती है। फिर दूरदर्शिता का अभाव उसके तमाम निर्णयों में साफ दिखता है। हां, इंदिराजी इसका अपवाद थीं। पाकिस्तान के दो टुकड़े करके उन्होंने उसी जीवट का परिचय दिया था, जो अब नरेंद्र मोदी ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 को जड़ सहित उखाड़कर कर दिखाया है।

इंदिरा ने देश के जनमानस की बात सुनी थी। पर आप कह सकते हैं कि तब इंदिराजी चाहती तो शायद कश्मीर का मसला तब ही निपट जाता।

राजीव गांधी ने केवल मुस्लिम परस्त पार्टीजनों की बात सुनी थी। राहुल गांधी ने अनिश्चय एवं भ्रम से भरपूर अपने दिल की बात सुनी।

नतीजे सबके सामने हैं। लेकिन मोदी देश को 'मन की बात' सुनाते-सुनाते देश के मन की बात को समझ गए।

शिवराज ने अपनी गरिमा को गिराया है लेकिन कह सकते हैं कि वे सफल रहे। एक बार फिर बस सुर्खियां बटोरने में। नेहरू के लिए उन्होंने जो कुछ कहा, वह काफी समय से लगातार कहा जा रहा है, लेकिन बयान में अपराधी वाला तड़का लगाकर वह उस विराट समूह में छा गये, जो अनुच्छेद 370 वाले घटनाक्रम के बाद से नेहरू-गांधी परिवार पर पिल पड़ा है।

इससे पहले कि कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री पर हमलावर हो, पी चिदंबरम ने मोदी सरकार के ताजा फैसले को मुस्लिमों से जोड़कर एक बार फिर हवा का रुख पूरी तरह अपने खिलाफ कर लिया है।

जिस दल में इस मसले को लेकर ही कई वरिष्ठ नेता भाजपा की लाइन पर बयानबाजी कर रहे हों, उस दल में चिदंबरम जैसी फितरत के नेता 'कोढ़ में खाज' वाला काम बखूबी कर रहे हैं।

अधीर रंजन चौधरी तथा गुलाम नबी आजाद के बाद पूर्व वित्त मंत्री का बयान इस दल की उलझनों में बढ़ावा करने वाला ही साबित होगा।

खैर, चिदंबरम की छटपटाहट को समझा जा सकता है। बेटे कार्ति तथा पत्नी नलिनी के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों के बढ़ते शिकंजे से बिलबिलाया कोई शख्स वही कह और कर सकता है, जो चिंदबरम के साथ हो रहा है।

कांग्रेस इतिहास में जाकर नेहरू की गलतियां नहीं सुधार सकती लेकिन, वह अपने नाम ऐतिहासिक गलतियों का कीर्तिमान बनने से तो रोक सकती है।

राहुल गांधी से जुड़े घटनाक्रमों को देखकर ऐसा होने की कोई गुंजाइश शेष नहीं थी। सोनिया गांधी जरूर इस दिशा में कुछ कर सकती हैं। हालांकि सवाल यह है कि ऐसा करने के लिए वह पुत्र मोह से बाहर निकल पाती हैं या नहीं।

 


Tags:

bundelkhand-medical-collage parvati-kalisindh-chambal bjp-mla-hemant-khandelwal huge-shortage-of-specialist-doctors-in-government-hospitals

इस खबर को शेयर करें


Comments