छतरपुर से धीरज चतुर्वेदी।
नदियां चीख-चिल्ला नही सकतीं जब, इनकी अस्मिता के साथ बैखौफ खिलवाड़ होती है जिन्हे रोकना-टोकना चाहिये वे अर्थयुग के भंवर में फंस चुके हैं। मामला पेचीदा है क्येाकि सत्ता स्वाद में हर वो ताकतवर नदियों की कोख से रेत लूटने पर आमदा है।
जिस तरह से समूचे मध्यप्रदेश सहित बुंदेलखंड में नदियों की कोख से रेत को खोदा जा रहा है, उसने नदियों के अस्तित्व को ही खतरे में लाकर खड़ा कर दिया है। हर ताकतवर की निगाह नदियों की कोख को उजाड़ने में अपना पूरा दमखम लगा रही है। केन, उर्मिल, धसान, बेतवा, अन्य छोटी नदिया शायद कोई ऐसी होगी जिसमें अवैध उत्खनन ना हो रहा हो।
उत्तरप्रदेश सीमा को विभक्त करने वाली केन नदी की तो धारा ही बदल गई है। यहां सरकार की कृपा पात्र डिजायना सहित जय अंबे कन्सट्रक्शन ग्वालियर, शार्क लिमिटेड झाांसी कंपनियो को वैध रूप से ठेके दिये गये थे। जिसका अवैध कारोबार करोड़ों रूपये में हो चुका है। वैध खदानों को निचोड़ने के बाद रेत की भूख ने पूरी नदी को खोखला कर दिया है।
छतरपुर जिले में 7 स्वीकृत रेत खदाने हैं। इन स्वीकृत खदानों में नेहरा खदान 14 हेक्टेयर बारीखेडा 10 हेक्टेयरए फत्तेपुर 9 हेक्टेयर, धैरारा 5.2 हेक्टेयर और बारबंद की दो खदानें क्रमशः 12 व 12 हेक्टेयर की हैं। बारंबंद, बारीखेडा और नेहरा खदान डिजायना कंपनी के नाम स्वीकृत है। जबकि, फत्तेपुर खदान शार्क इन्फ्राकाम, बघारी प्रमोद गुप्ता और धौरारा जय अंबे ग्वालियर को स्वीकृत हुई।
प्राप्त जानकारी के अनुसार करीब 40 करोड की राजस्व आय इन खदानों से सरकार को हुई है। दूसरी तरफ इन कंपनियों द्वारा लगभग 1 हजाार करोड़ की रेत का खनन किया जा चुका है। स्वीकृत खदानों के अलावा केन नदी की किनारे करीब 50 घाटो से अवैध उत्खनन किये जाने के आरोपो में कंपनियां फंसी हैं। जिन्हें लेकर प्रतिदिन अखबारो की सुर्खियां बनती है लेकिन सुनने और देखने वाला कोई नही है।
एनजीटी के स्पष्ट दिशा निर्देश जारी कर रखे हैं लेकिन, केन नदी की बीच की मुख्य धार से रेत निकालने के लिये लिफ्टर का उपयोग किया जा रहा है। चंदला क्षेत्र से भाजपा विधायक आरडी प्रजापति ने केन नदी के अवैध उत्खनन को लेकर विधानसभा में अपनी ही सरकार की खिचाई कर दी थी। इस पर जमकर हंगामा मचाया गया पर हमाम में सब नंगे हैं, इसके दर्शन भी होने शुरू हो चुके हैं।
कहा जाता है कि विधायक को खामोश करने के लिये सरकार ने उन्हें भी उपकृत कर दिया। अवैध रूप से रेत डंप की छतरपुर जिले के ग्राम भैरा-पंचमपुर के मध्य स्वीकृति दे दी। किस तरह अवैध को वैध बनाया गया जिसकी जांच हो जाये तो सरकारी स्वीकृति देने वाले कटघरे में होगे।
पड़ोसी जिले पन्ना के अजयगढ क्षेत्र में रेत की चादीपाठी खदान है। उस चांदीपाठी खदान की रेत को डंप करने की स्वीकृति छतरपुर जिले के ग्राम भैरा के पास दी गई। मजेदार है कि चांदीपाठी खदान की ग्राम भैरा से 70 किलोमीटर दूरी है। चूंकी ग्राम भैरा पंचमपुर के समीप से उर्मिल नदी प्रवाहित होती है।
बताया जाता है कि उर्मिल नदी के अवैध उत्खनन को वैध करने के लिये डंप स्वीकृति की आड दी गई है। विधायक आरडी प्रजापति पर आरोप है कि उनके गुर्गे दिनरात ट्रेक्टरो के माध्यम से उर्मिल नदी से अवैध रूप से रेत निकलवाते हैं। जिसे स्वीकृत डंप में रखा जाता है जहां से वैध रूप लेते हुये यह रेत उत्तरप्रदेश भेज दी जाती है। किस तरह नदियों की रेत को संगठित गिरोह बनाकर लूटा जा रहा है। इसका सबूत कहराती नदियों की बदलती धार और सूखते धरातल में देखने को मिल जायेगा। इन इलाकों में बढ़ते बीहड़, समाप्त होते जलीय जीव जन्तु और नाश होता पर्यावरण की लाज रखने वाले ही रेत के खेल में अधिक कमाने की लालसा में जुट गये।
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