इंदौर हाईकोर्ट का फैसला:सिर्फ साथ रहने से महिला को भरण-पोषण का अधिकार नहीं मिल जाता

वामा            Aug 04, 2016


एकता शर्मा। समाज में बिना शादी किए साथ रहने (लिव इन रिलेशन) का चलन बढ़ा है। साथ ही अदालतों में ऐसे मामलों की संख्या भी तेजी से बढ़ी, जिनमें महिलाओं ने लिव इन में रहते हुए साथ रिश्ते बनाए और बाद में विवाद होने पर उनसे भरण पोषण माँगा। इस तरह के मामलों में कई पेचीदगियां होने से फैसले भी बदले हैं। दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश कैलाश गंभीर ने 2010 में लिव-इन में रहते हुए महिला को पुरुष साथी द्वारा शादी करने से इंकार करने के बाद बलात्कार का मामला दर्ज कराने की इजाजत देने से भी इंकार कर दिया। पिछले हफ्ते इंदौर हाई कोर्ट ने बगैर शादी साथ रह रही महिला को भरण-पोषण का अधिकार देने से भी इंकार कर किया है। कोर्ट ने कहा कि बगैर शादी साथ रह रही महिला को भरण-पोषण पाने का अधिकार नहीं है। हाई कोर्ट की इंदौर बैंच ने यह फैसला निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए दायर याचिका पर दी। हाई कोर्ट ने माना कि धारा 125 के तहत भरण-पोषण पाने के लिए महिला का विधिवत पत्नी होना जरूरी है। ज्योति नामक महिला ने 2012 में त्रिलोक के खिलाफ कुटुंब न्यायालय में भरण-पोषण का केस दायर किया था। महिला ने कहा कि उसने त्रिलोक के साथ एक मंदिर में शादी की थी। चार साल वह उसके साथ रही, इसलिए उसे भरण-पोषण पाने का अधिकार है। त्रिलोक ने कोर्ट में यह तो स्वीकारा कि वह चार साल महिला के साथ रहा, लेकिन उसने शादी की बात से इंकार कर दिया। कहना था कि वह अपंग है और उसने महिला को केयर-टेकर के रूप में साथ रखा था। महिला पहले से शादीशुदा है। कुटुंब न्यायालय ने मामले का निपटारा करते हुए त्रिलोक को हर माह तीन हजार रुपए भरण-पोषण के रूप में देने के आदेश दिए थे। इस पर उसने इस आदेश को चुनौती देते हुए एडवोकेट के माध्यम से हाई कोर्ट में अपील की। हाई कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को खारिज करते हुए अपील स्वीकार ली। कोर्ट ने फैसले में माना कि सिर्फ साथ रहने से महिला को भरण-पोषण का अधिकार नहीं मिल जाता। सुप्रीम कोर्ट के तय मापदंड सुप्रीम कोर्ट ने पहले लिव इन रिलेशनशिप को स्वीकार्यता दी और अब इसके लिए कुछ मानक भी तय किए थे। इसका मकसद महिला अधिकारों को सुनिश्चित करना था। अदालत ने लिव इन रिलेशन में भरण पोषण पाने का हकदार बनने के लिए कुछ मापदंड तय किए थे। तत्कालीन न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू और न्यायाधीश टीएस ठाकुर की खंडपीठ ने कहा था कि लिव इन रिलेशनशिप में रह रही महिला को भरण पोषण पाने के लिए कुछ मानकों को पूरा करना होगा। अदालत ने कहा कि महज वीकेंड या एक रात का साथ गुजारा भत्ता पाने का हकदार नहीं बनाता। अदालत ने स्पष्ट किया कि गुजारा भत्ता पाने के लिए घरेलू रिश्ता जरूरी है। इसलिए किसी महिला को बिना शादी किए अपने साथी से गुजारा भत्ता पाने के लिए इन मानकों को पूरा करना होगा! इनके तहत दोनों को अपने पार्टनर के साथ समाज की नजरों में पति पत्नी की तरह ही रहना होगा! कानून के तहत दोनों की उम्र शादी करने लायक होना जरूरी है। दोनों का आपसी रजामंदी और अपनी मर्जी से एक साथ रहना जरूरी है, किसी प्रलोभन या कोई अन्य कारण लिव इन रिलेशनशिप नहीं माना जाएगा। इसके अलावा दोनों का एक निश्चित समय तक एकसाथ रहना जरूरी है। इन मानकों को पूरा करने पर ही कोई महिला अपने पार्टनर से गुजारा भत्ता पाने की हकदार होगी। अदालत के इस फैसले से अल्ट्रामॉर्डन पुरुष और महिलाओं, दोनों को एक दूसरे के अनावश्यक शोषण से बचाया जा सकेगा। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इससे जुड़ा एक अहम फैसला दिया था। इसमें तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन जजों की खंडपीठ ने शादी के पहले शारीरिक संबंध और बिना शादी के लड़का-लड़की को एक साथ रहने पर पाबंदी लगाने की मांग को खारिज कर दिया था।


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