सऊदी अरब में महिलाओं को मिला मतदान करने और अधिकारी बनने का अधिकार

वामा            Dec 12, 2015


मल्हार मीडिया डेस्क पश्चिमी देशों का हिमायती होने के बावजूद इस्लामी मान्यताओं का पूरी कट्टरता के साथ पालन करने वाले सऊदी अरब में पहली बार महिलाओं को मताधिकार और चुनाव लड़कर निर्वाचित अधिकारी बनने का हक मिला है। सऊदी अरब में शनिवार को हो रहे काउंसिल के चुनाव में महिलाएं पहली बार वोट डाल रही हैं। कई तरह के बंधनों में जकड़ी सऊदी अरब की आधी आबादी के लिए यह अधिकार की लड़ाई की पहली फतह है । विशेषज्ञों के अनुसार भले ही यह उपलब्धि छोटी है लेकिन यह समानता की ओर महिलाओं का पहला सशक्त कदम है। काउंसिल के चुनाव में 900 से अधिक महिलाओं का मुकाबला लगभग 6000 पुरुषों से हो रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार सऊदी अरब जैसे देश में जहां चुनाव में वोट डालने के लिए भी महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग अलग मतदान केंद्र स्थापित किये गये हैं, वहां महिलाओं के लिए आगे बढ़कर चुनावी मैदान में अपनी दावेदारी पेश करना कितना मुश्किल होगा, इसे आसानी से समझा जा सकता है। उनके मुताबिक महिलाओं के बीच अभी मतदान को लेकर पर्याप्त जागरूकता नहीं है, इस कारण पंजीकृत महिला मतदाताओं की संख्या 10 प्रतिशत से भी कम है। इस स्थिति में इस चुनाव में महिलाओं की जीत दूर की कौड़ी है लेकिन इससे एक अच्छा संदेश जरूर जाएगा। महिला मतदाताओं का कहना है कि मतदान के लिए उनका पंजीकरण काफी समस्याग्रस्त था। लालफीताशाही और पंजीकरण की प्रक्रिया की कम जानकारी, इसके महत्व के प्रति अनभिज्ञता और पंजीकरण के लिए अकेले गाड़ी चलाकर जाने की पाबंदी के कारण महिला मतदाताओं का पंजीकरण काफी दुष्कर रहा। तेल के अकूत भंडार से संपन्न सऊदी अरब एक तरफ सभी तरह के अत्याधुनिक आधारभूत ढांचों जैसे गगनचुंबी इमारतों,साफ सुथरे और हाई फाई हाईवे और शापिंग माल्स से अटा पड़ा है लेकिन दूसरी तरफ महिलाओं को उनके अधिकार देने के मामले में कट्टर इस्लाम का पालन करता है। सऊदी में महिलाओं पर कई तरह की पांबदियां हैं और उसके कारण पश्चिमी देशों में उसकी कटु आलोचना होती है। भले ही इस बार महिलाओं को काउंसिल चुनाव में दावेदारी पेश करने का अधिकार मिली है लेकिन इसके साथ उन पर कई तरह की पाबंदियां भी थोप दी गयीं। उन्हें संभावित मतदाताओं से सीधे संपर्क करने, सार्वजनिक रूप से पुरुष मतदाताओं से मिलने और अपना फोटो प्रकाशित कराने की मनाही थी। सऊदी चुनाव आयोग ने सभी महिला प्रत्याशियों को यह सख्त हिदायत दी थी। आयोग ने महिला प्रत्याशियों को चुनाव प्रचार के लिए एजेंट नियुक्त करने और अपने अपने चुनाव प्रचार कार्यालयों में महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग अलग हिस्से बनाने का आदेश दिया। आदेश का पालन न करने पर महिला प्रत्याशियों को दस हजार सऊदी रियाल का जुर्माने देने का प्रावधान था। चुनाव आयोग की इन पाबंदियों के औचित्य पर सवालिया निशान लगाते हुए महिला प्रत्याशियों ने कहा कि इससे उनकी जीत दुर्लभ हो गयी, लेकिन महिलायें इस चुनाव को हार-जीत से परे अपने अधिकार की लड़ाई की पहली जीत मान रही हैं। एक महिला प्रत्याशी अमाल बदरेलदीन अल-सावरी (60) ने कहा कि उन्हें अच्छी तरह पता है कि वह चुनाव में नहीं जीतने वाली हैं । उन्होंने कहा कि मैं सोचती हूं कि चुनाव में खड़े होकर ही मैंने जीत हासिल कर ली है। सऊदी में पहला नगर निगम चुनाव 2005 में हुआ था, जिसमें सिर्फ पुरुषों को ही भाग लेने का अधिकार था। चुनाव आयोग के अनुसार लगभग दो करोड़ 10 लाख की आबादी वाले देश सऊदी अरब में कुल 15 लाख पंजीकृत मतदाता हैं। अल सऊद खानदान के शासक सुल्तान सलमान के परिवार के शासन वाले इस देश में राजतंत्र है। शाह सुल्तान के भाई एवं पूर्व सुल्तान अब्दुल्ला ने महिलाओं के अधिकारों के लिए धीरे धीरे जगह बनानी शुरू की थी। उन्होंने ही चार साल पहले इस चुनाव में महिलाओं को मताधिकार देने की घोषणा की थी। शुरा परिषद में भी पूर्व सुल्तान के सराहनीय प्रयास की बदौलत अब 30 महिला सदस्य हैं। उन्होंने ही वहां देश का पहला ऐसा विश्वविद्यालय स्थापित किया, जहां महिलाएं और पुरुष एक साथ पढ़ते हैं। महिला अधिकारों पर काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संगठनों एवं सऊदी अरब के संगठनों के अनुसार महिलाओं को अभी अपने अधिकार के लिए लंबी लड़ाई लड़नी होगी। सऊदी में महिलाएं गाड़ी नहीं चला सकतीं, किसी पुरुष अभिभावक की सहमति के बगैर काम, शादी या यात्रा नहीं कर सकतीं। सार्वजनिक स्थलों पर उन्हें पूरी तरह बुरके में रहना होता है । महिलाओं को कुछ ही तरह के काम करने की इजाजत है। वे सार्वजनिक स्थलों पर गैर पुरुष से बातचीत नहीं कर सकतीं। उन्हें पुरुषों की अपेक्षा जायदाद का कम हिस्सा मिलता है और वे पुरुषों की तरह बेहद आसानी से तलाक नहीं दे सकती हैं। उन पर कम उम्र में शादी करने के लिए दबाव डाला जा सकता है क्योंकि सऊदी में लड़कियों के लिए शादी के लिए न्यूनतम उम्र की कोई सीमा नहीं है। यहां महिलाओं को मताधिकार देने से पहले शुरा काउंसिल की सदस्य के रूप में काम करने की इजाजत थी। शुरा परिषद कैबिनेट की सलाहकार समिति होती है। महिलाओं को सरकारी विभागों में काम करने की तथा वकील जैसे कई तरह के पेशे से जुड़े होने की इजाजत है।


इस खबर को शेयर करें


Comments