Breaking News

30 करोड़ की मालकिन की एकाकी मौत

वामा            Jan 13, 2015


मुंबई,एजेंसी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जताई है कि 30 करोड़ रुपये की संपत्ति की मालकिन होने के बावजूद 68 साल की बुजुर्ग महिला की उपेक्षा की वजह से मौत हो गई। सरकार की खिंचाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि न तो परिवार और न ही राज्य ने उनकी देखभाल की चिंता की, जबकि वरिष्ठ नागरिक कल्याण कानून के तहत बुजुर्गों के लिए वृद्धाश्रम और मेडिकल सहायता की व्यवस्था अनिवार्य है। कोर्ट ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 की समीक्षा की इच्छा जताते हुए कहा कि किसी दूसरे बुजुर्ग नागरिक का यह हाल नहीं होना चाहिए। जयश्री घोलकर वर्सोवा में 5 सालों तक बीमार बेड पर पड़ी रहीं, लेकिन उनके रिश्तेदारों ने हाल जानने की भी जहमत नहीं उठाई। पिछले सप्ताह उनकी मौत हो गई। जयश्री घोलकर को उनके मृत भाई के परिवार ने छोड़ दिया था, जबकि उनके एक भाई अमेरिका में बस चुके हैं। ब्यूटी पार्लर चलाने वाली नताशा सारा को जब पता चला कि बुजुर्ग महिला काफी बीमार हैं और उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है, तो वह उनकी देखभाल करने लगीं। जब स्थिति काफी बिगड़ गई तो हाई कोर्ट के आदेश पर वर्सोवा पुलिस ने पिछले सप्ताह 7 जनवरी को महिला को जेजे हॉस्पिटल में भर्ती कराया, वहां 9 जनवरी को उनकी मौत हो गई। इसके बाद वर्सोवा पुलिस और जेजे मार्ग पुलिस में इस बात पर विवाद हो गया कि बाकी औपचारिकताएं कौन पूरी करेगा। जस्टिस वी एम कनाडे और रेवती मोहित की डिविजन बेंच ने 2012 में माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम को लागू करवाने के लिए दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उपेक्षित बुजुर्गों की देखभाल के लिए बेहतर प्रावधानों की जरूरत बताई। सीता कुटीर में जयश्री घोलकर की स्थिति लगातार दयनीय होती जा रही थी, इसे देखते हुए सारा ने एक दोस्त के साथ मिलकर यह याचिका दाखिल की थी। सारा की तरफ से कोर्ट में पेश वकील नितिन प्रधान ने कहा, 'राज्य सरकार ने अधिसूचना जारी करने में तीन साल लगा दिए और 2011 में जाकर सामाजिक कल्याण अधिकारियों की नियुक्ति हुई। अगर कुछ हुआ होता तो महिला की जान बच जाती। जस्टिस कनाडे ने कहा, 'वह बेहतर परिस्थिति में रहतीं और एक अनाथ की तरह उनकी मौत नहीं होती।' बेंच ने कहा, 'घोलकर की देखभाल अनिवार्य रूप से राज्य का कर्तव्य है। ऐसे कई बुजुर्ग हैं, जिनकी देखभाल रिश्तेदार नहीं करते। यह राज्य की जिम्मेदारी है कि वह सुनिश्चित करे कि ऐसे लोगों के लिए वृद्धाश्रम बनाए जाएं। केवल जब अदालतें संज्ञान लेती है, तो सरकारें नींद से जागती हैं।' कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह वृद्धाश्रम, मेंटेनेंस ट्राइब्यूनल, मेंटेनेंस अधिकारी, बुजुर्ग नागरिकों को चिकित्सा सहायता और कानून को लेकर जागरूक करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में जवाब दाखिल करे। कोर्ट ने राज्य सरकार से यह भी पूछा कि क्या इस ऐक्ट के तहत कोई अभियोजन शुरू किया गया है? प्रधान ने कहा, 'पांच सालों तक घोलकर दयनीय अवस्था में रहीं। ऐसी स्थिति किसी और की नहीं होनी चाहिए।'


इस खबर को शेयर करें


Comments