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सुप्रीम कोर्ट में केंद्र का हलफनामा, मैरिटल रेप अपराध के दायरे में नहीं

वामा            Oct 03, 2024


 मल्हार मीडिया ब्यूरो।

देश के शीर्ष न्यायालय वर्तमान में वैवाहिक बलात्कार मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 की वैधता पर दिल्ली हाईकोर्ट के विभाजित फैसले के खिलाफ अपील पर विचार कर रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के अपवाद 2 की वैधता से संबंधित वैवाहिक बलात्कार मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के विभाजित फैसले के खिलाफ अपील पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था.

मैरिटल रेप पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाख‍िल क‍िया है. सरकार ने इसमें साफ-साफ कहा है क‍ि मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने की जरूरत नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ऐसा नहीं कर सकता.

केंद्र ने कहा, पति के पास निश्चित रूप से पत्नी की सहमति का उल्लंघन करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन भारत में विवाह नाम की संस्‍था है. इसमें मैरिटल रेप को क्राइम के दायरे में लाना एक कठोर और गलत फैसला होगा.

सुप्रीम कोर्ट में कई याच‍िकाएं दाख‍िल की गई हैं, जिनमें मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने की मांग की गई है. लेकिन केंद्र सरकार इसका विरोध कर रही है.

हलफनामे में सरकार ने कहा क‍ि शादीशुदा मह‍िलाओं को पहले से ही सुरक्षा प्राप्‍त है. ऐसा नहीं है क‍ि शादी से मह‍िला की ‘सहमत‍ि’ खत्‍म हो जाती है.

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा क‍ि मौजूदा भारतीय कानून इसके ल‍िए पर्याप्‍त हैं, जो पति और पत्नी के बीच यौन संबंधों को अपवाद बनाता है. केंद्र सरकार ने आगे कहा कि यह मुद्दा कानूनी से ज्यादा सामाजिक है.

इसका सामान्य तौर पर समाज पर सीधा असर पड़ता है. भले ही मैरिटल रेप को अपराध घोषित किया जाए, लेकिन ऐसा सुप्रीम कोर्ट नहीं कर सकता. यह उसके अध‍िकार क्षेत्र में नहीं.

केंद्र सरकार ने कहा, इस मामले में सभी पक्षों से बात करनी होगी. सभी राज्‍यों की सलाह लेनी होगी. शादी में पार्टनर से उच‍ित यौन संबंधों की अपेक्षा तो की जाती है, लेकिन ऐसी अपेक्षाएं पति को अपनी पत्नी को उसकी इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करने का अधिकार नहीं देती हैं.

 


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