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वंदे भारत की पहली आदिवासी महिला सहायक लोको पायलट बनीं रितिका तिर्की

वामा            Sep 19, 2024


 मल्हार मीडिया डेस्क।

देश की पहली सबसे आधुनिक तकनीकयुक्त सेमिहाईस्पीड एक्सप्रेस यानि देश की "पहली आदिवासी महिला सहायक लोको पायलट" बन गई हैं.

जंगल झाड़ की धरती में जन्म लेने वाली ये आदिवासी समाज से आने वाली बेटी जो भारत की सबसे आधुनिकतम तकनीक युक्त रेल वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन को सुरक्षित चलाने की जिम्मेदारी झारखंड की 27 वर्षीय चालक रितिका तिर्की को सौपी गई है.

रितिका तिर्की ने अपने कठिन परिश्रम और समर्पण से महिला सशक्तिकरण और आदिवासी समाज के लिए एक प्रेरणा बनकर उभरी हैं.

उनका यह कदम महिलाओं के लिए एक नई राह खोलने वाला साबित हो ऐसी कामना है.रितिका तिर्की संभवतः देश की पहली आदिवासी महिला हैं जिन्होंने सहायक लोको- पायलट के रूप में वंदे भारत एक्सप्रेस की प्रभारी बनी है

बोकारो की रितिका तिर्की ने वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन चलाकर खुद को और अपने क्षेत्र को गर्व महसूस कराया है. आज के समय में बेटियां किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं, चाहे वह कार, स्कूटी, ट्रक या ट्रेन चलाना हो.

झारखंड की आदिवासी बेटियां भी अपनी कड़ी मेहनत और प्रतिभा से एक अलग पहचान बना रही हैं. रितिका तिर्की ने टाटानगर से पटना तक वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन को पहली बार चलाया और इस पर काफी खुश हैं.

रितिका ने बताया कि पहले वह गुड्स और पैसेंजर ट्रेन चलाती थीं, लेकिन अब उन्हें वंदे भारत जैसी आधुनिक और तेज़ ट्रेन चलाने का मौका मिला है. इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धन्यवाद किया.

रितिका का मानना है कि यह उनके लिए एक बड़ा अवसर है और वह इसे पूरी मेहनत और जिम्मेदारी के साथ निभाएंगी. साथ ही आद्रा डिवीजन के सीनियर डीसीएम विकास कुमार ने बताया कि यह भारत सरकार और रेलवे की नीतियों का परिणाम है कि आज महिलाएं भी वंदे भारत जैसी तेज़ रफ्तार ट्रेनों की पायलट बन रही हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रांची एयरपोर्ट से ऑनलाइन इस ट्रेन को हरी झंडी दिखाई, जिससे यह टाटा से पटना के बीच अपनी यात्रा शुरू कर पाई.

रितिका ने कहा कि वंदे भारत ट्रेन की सुविधाएं अन्य ट्रेनों से बेहतर हैं. पायलट केबिन पूरी तरह से वातानुकूलित है और इसमें टॉयलेट की भी अच्छी व्यवस्था है.

इस ट्रेन की गति 160 किलोमीटर प्रति घंटा है, जबकि पटरी की गति सीमा 130 किलोमीटर प्रति घंटा है. रितिका के चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी और रेलवे के कई कर्मचारी और अधिकारी उन्हें शुभकामनाएं दे रहे थे.

रितिका का यह सफर न सिर्फ उनके लिए बल्कि झारखंड की अन्य महिलाओं और आदिवासी समाज के लिए भी प्रेरणादायक है.

 

 


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