पंकज शुक्ला।
उज्जैन में 5 साल की बच्ची के साथ दुष्कृ्त्य और हत्या भोपाल में 9 साल की बच्ची के साथ दुष्कृत्य और हत्य मंदसौर शहर में तीन साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म की कोशिश तीन दिनों की इन तीन खबरों पर सवाल है, पुलिस कहां है?
सरकार कहां है? अपराधियों को जल्द कठोरतम सजा दिलावाने की मांग के साथ यह सही समय भी है कि हम समाज में तेजी से फैल रही इस बुराई का समाज के स्तर पर हल भी खोजें।
तब सवाल उठता है कि मध्य प्रदेश की महिला एवं बाल विकास मंत्री मंत्री इमरती देवी कहां हैं? उन्होंने बच्चियों के साथ हो रही इन घटनाओं से निपटने के उपायों पर अपने विभाग के अफसरों से चर्चा की है या विभाग कागजी योजनाओं के घोड़े दौड़ाने में ही व्यस्त है?
बच्चों के साथ हो रहे अपराधों पर आक्रोश के बीच यह जान लेना जरूरी है कि तमाम प्रयासों के बाद भी प्रदेश में बच्चों पर खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। अपहरण, खुदकुशी और ज्यादती जैसे अपराधों में 16 साल के भीतर 865 फीसदी इजाफा हुआ है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार मप्र में ही साल 2001 में ऐसी 1425 वारदात हुई थीं, जो 2016 में बढ़कर 13 हजार 746 हो गई हैं।
देश में बच्चों के खिलाफ इन 16 सालों में दर्ज हुए अपराधों में सबसे ज्यादा 16 फीसदी अपराध (95324) केवल मप्र में ही दर्ज किए गए हैं।
प्रदेश में 2001 में बच्चों के प्रति अपराध से जुड़े 2065 मामले अदालत में परीक्षण के लिए लंबित थे। 2016 में ये आंकड़ा बढ़कर 31 हजार 392 हो गया। यानी इन 16 साल में बच्चों के खिलाफ केवल अपराध ही नहीं बढ़े बल्कि लंबित प्रकरणों में भी 1420 फीसदी की वृद्धि हुई है।
यहां बात केवल अपराधों के आंकड़ों और उनके प्रति कार्रवाई में हो रही देरी की नहीं है बल्कि अपराध न हो ऐसा वातावरण बनाने की जिम्मेदारी की भी है। ऐसा वातावरण बनाने तथा बच्चों व महिलाओं के संरक्षण में महिला एवं बाल विकास विभाग, बाल आयोग, महिला आयोग की भी भूमिका होती है।
मध्यप्रदेश में जब लगातार बच्चों के साथ दुष्कृत्य , हत्या, अपहरण, कुपोषण से मौत के मामले सामने आ रहे हैं तब उम्मीद की जाती है कि महिला एवं बाल विकास विभाग की मुखिया मंत्री भी अपनी ओर से सकारात्मक पहल करें।
लेकिन बीते दिनों मंत्री इमरती देवी का यही बयान सामने आया था कि पूर्व सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए। इसके अलावा उनकी ओर से न तो कोई सकारात्मक पहल हुई और न ही कोई ऐसा सार्वजनिक बयान आया जिससे यह महसूस हो कि वे या उनका विभाग बच्चों के साथ हो रहे अपराधों के प्रति तनिक भी चिंतित या गंभीर है।
मंत्री की इस निष्क्रियता से वे समर्थक भी हैरान हैं जिन्होंने बीती 26 जनवरी को हिन्दी में लिखा भाषण न पढ़ पाने पर हो रही आलोचना पर भी मंत्री इमरती देवी का समर्थन किया था। तब आलोचकों को जवाब दिया गया था कि भाषण पढ़ना मायने नहीं रखता है।
मंत्री इमरती देवी देशज समझ लिए मैदानी संघर्ष कर राजनीति में आई हैं और मंत्री पद तक पहुंची हैं। इसी कारण उनसे उम्मीद थी कि वे महिला एवं बाल विकास विभाग में एसी केबिन में रणनीति बना कर काम करने की प्रथा को तोड़ेंगी और कुछ ऐसे काम करेंगी जो वास्तव में महिलाओं व बच्चों के लिए लाभप्रद होंगे। मगर, अब तक वे चुप ही हैं।
वे कह सकती हैं कि ऐसे मामलों पर स्वयं मुख्यमंत्री और गृहमंत्री गंभीर हैं, मगर सवाल तो महिला एवं बाल विकास विभाग की मैदानी सक्रियता का है। बच्चों के संरक्षण और सुरक्षा की पहल तो इस विभाग से भी होनी चाहिए।
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