संजय स्वतंत्र।
क्या आप केतकी को जानते हैं? थोड़ा याद कीजिए।
नहीं याद आ रही तो चलिए हम ही बताते हैं।
पिछले दिनों मैं चर्चित मॉडल केतकी जानी का साक्षात्कार देख रहा।
अपने विशेष टॉक शो में उनसे सवाल कर रही थीं पत्रकार आयुषी खरे।
हम बता दें कि केतकी के सिर पर एक भी बाल नहीं फिर भी वे एक सफल मॉडल हैं, प्रेरक वक्ता हैं, रैम्प पर चलती हैं और तालियां बटोरती हैं।
वे इतने अवार्ड भी बटोर चुकी हैं कि उसकी सूची देख कर हैरत होती है।
तमाम संघर्ष के बावजूद उन्होंने कभी हौसला नहीं खोया।
उनके चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान रहती है।
संघर्षशील स्त्रियों में इतना हौसला आता कहां से है?
इंस्टाग्राम पर विशेष साक्षात्कार को देखते हुए इस साल के ऑस्कर अवार्ड समारोह में बैठीं विल स्मिथ की पत्नी जेडा पिंकेट स्मिथ का चेहरा आंखों के आगे घूम गया।
याद होगा आपको कि उस समारोह में कामेडियन क्रिस रॉक ने जेडा की बीमारी का मजाक उड़ा दिया था।
जिससे नाराज होकर विल स्मिथ ने मंच पर जाकर उसे मुक्का जड़ दिया था, वह एक ऐसा पल था जब कोई स्त्री नहीं भूल पाई होगी।
एलोपेसिया का ऐसा मजाक? क्यों भाई? यह तो किसी को हो सकता है।
हम उनका हौसला बढ़ाएं, मजाक तो न उड़ाएं। अमूमन सिर से बाल तब झड़ते हैं जब किसी को कैंसर हो जाए और कीमियो थेरेपी चल रही हो।
या फिर एलोपेसिया एरेटा नामक रोग हो गया हो तब बाल तेजी से झड़ने लगते हैं।
स्त्री हो या पुरुष, यह स्थिति अवसाद पैदा करने लगती है, स्त्रियों के लिए यह भावनात्मक मुद्दा होता है।
जाहिर है केतकी जानी के सामने भी यही रहा होगा। तो कौन हैं यह केतकी जानी, जिसकी यहां चर्चा हो रही है।
अमदाबाद में जन्मी केतकी के जीवन में सब कुछ अच्छा चल रहा था। बच्चे-पति के साथ एक सुखमय परिवार।
मगर मई 2010 में एक दिन सब कुछ बिखर गया, जब ये पता चला कि उन्हें एलोपेसिया नाम की कोई बीमारी हो गई है।
इसके बाद तो उनके बाल तेजी से गिरने लगे।
स्टेरायड केवल अस्थायी उपचार था, जिसका भयावह असर झेलना पड़ा, उस पर से समाज के चुभते सवाल।
लोग पूछते कि केतकी क्या हो गया।
ऐसे में केतकी का घर से निकलना मुश्किल हो गया, दुनिया सिमट कर रह गई।
लेकिन एक दिन उन्होंने फैसला किया कि वे घर से निकलेंगी।
स्कार्फ बांधे बिना या या बिना विग लगाए बाहर जाएंगी और यहीं से शुरू हुआ केतकी के जीवन का नया सफर।
मिसेज इंडिया वर्ल्डवाइड प्रतियोगिता में वे यूं ही शामिल हो गर्इं। तब केतकी को लगा था कि वे खाली हाथ लौट जाएंगी मुंबई से।
क्योंकि प्रतियोगिता में शामिल दूसरी युवतियां उन्हें अविश्वास भरी नजरों से देख रही थीं। मगर जजों के पैनल ने उनके हौसले को सराहा और फिर केतकी उस सौंदर्य प्रतियोगिता से ‘मिसेज इंसपायरेशन’ का खिताब लेकर लौटीं।
इसके बाद तो केतकी जानी ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। कई सौंदर्य प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। 2018 में फिलीपींस में मिसेज यूनिवर्स प्रतियोगिता में वूमन आफ कांफिडेंट का पुरस्कार जीता।
केतकी को मिले पुरस्कारों की सूची इतनी लंबी है कि किसी को भी हैरानी हो सकती है। उनके संघर्ष पर लेखक-पत्रकार प्रफुल्ल शाह ने उपन्यास लिखा, जिसका नाम है-अग्निजा।
यह काफी चर्चित रहा। यहां हम बता दें कि केतकी भारत की पहली एलोपेसियन मॉडल हैं, जिनके सिर पर बाल नहीं हैं।
एलोपेसिया से पीड़ित महिलाओं का हौसला बढ़ाने के लिए केतकी अकसर रैम्प पर उतरती हैं।
प्रेरणा देने के लिए भाषण देती हैं, अखबारों में महिला केंद्रित कॉलम लिखती हैं।
इसके अलावा वे पॉडकास्ट शो ‘बाल हो न हो में’ भी शामिल होती हैं।
हाल ही में वे जोश टॉक शो में भी वक्ता के तौर पर आर्इं। इसके अलावा आयुषी खरे के चर्चित टॉक शो में जिस बेबाकी से उन्होंने अपनी संघर्ष गाथा सुनाई उसे जान कर हजारों दर्शक भावुक हो उठे।
उन्होंने कहा कि एलोपेसिया छुपाने वाली बात मानी जाती है, लोग क्या सोचेंगे।
जानें किस नजरों से लोग देखते हैं, मगर उसका मुकाबला करना होता है। समाज की धारणा को तोड़ना होता है। उन्होंने कहा कि विग पहनना अजीब लगता है।
मगर लोगों के पास नकली चेहरा लेकर क्यों जाऊं? मैं जैसी हूं वैसी ही ठीक। जैसी दिखती हूं उसी तरह सामने आऊं।
सुंदरता के पैमाने पर केतकी का कहना है कि इसे बदलने की जरूरत है।
समाज का माइंडसेट बदलना होगा। उन्होंने समाज को कठघरे में लाते हुए कहा कि लोगों की स्त्रियों के प्रति आज तक धारणा नहीं बदली है।
कार्यस्थलों पर सहयोगियों को एलोपेसिया पीड़ित लोगों से सामान्य लोगों की तरह पेश आना चाहिए ताकि ऐसे लोग असहज महसूस न करें।
केतकी ने यह भी कहा कि लेखकों को इस तरह के रोग से पीड़ित लोगों को केंद्र में रख कर लिखना चाहिए, उन्हें सौंदर्य का नया मानदंड बनाना चाहिए।
बिना बाल वाली स्त्री की भी भावना है। उसका अपना अलग सौंदर्य है। केतकी ने कहा कि फिल्म उद्योग में नेचुरल हेयर वाले लोग भी अपने बालों के प्रति वफादार नहीं हैं।
यह अजीब बात है।
उन लोगों को भी सोचना चाहिए कि जिनके बाल नहीं वे क्या सोचते होंगे। उन्होंने कहा कि एक समय ऐसा आया था कि मैं हार चुकी थी।
एक बार खुदकुशी करने जा रही थी। मगर जब बच्चों को सोते हुए देखा तो सोचा कि कल सुबह मेरे न रहने पर इनका क्या होगा।
तो कुदरत ने जो जवाबदेही दी है उसे झुठला कर दुनिया छोड़ नहीं सकती।
केतकी बताती हैं कि फिर मैंने संघर्ष यात्रा शुरू की। वे कहती हैं कि ईश्वर ने हमें जैसा बनाया है वैसे ही रहिए।
आईने के सामने खड़े होकर खुद को ‘आई लव यू’ कहिए। अपनी खुशी को खुद में ढूंढ़िए। वे कहती हैं कि उन्होंने अपने सिर पर मंडाला आर्ट का टैटू बनवाया।
वे हंसते हुए बोलीं, मेरे सिर से अच्छा कैनवास कहीं था ही नहीं।
उन्होंने कहा कि जीवन कभी भी नए सिरे से शुरू किया जा सकता हैं। बस हौसला चाहिए, वह आपके पास है।
लेखक जनसत्ता में चीफ वरिष्ठ उपसंपादक हैं।
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