महिला अधिकारों और सुरक्षा की धज्जियां यहां ऐसे ही उड़ती हैं

वामा            Feb 05, 2017


बनारस से ज्योति तिवारी।
उस कॉलेज जाने का रास्ता लगभग चारों तरफ से है जिनमें तीन रास्तों पर पुलिया बनी हुई है।कम से कम 10 से 12 किलोमीटर दूर तक की लडकियां यहाँ पढने आती है।कुछ लडकियां साइकिल से आती है बाकि लडकियां पैदल समूह में या अकेले आती है।बाजार की चहल पहल से विद्यालय का रास्ता दस मिनट दूर है।अब बात यह है कि लडकियों की कम उपस्थिति हमेशा दिमाग को परेशानी में डाल देता है।पूछने पर पता चलता है कि पुलिया पर झुन्ड बना बैठे लडके उनपर छींटाकाशी करते है,उन्हें घूरते हैं और गालियां देते है और अमूमन तीनों तरफ के पूल का यही हाल हैं। इतना सुनते ही आगबबूला मैम ने कहा कि उन्हें थप्पड मारों, गालियां दो,उनका विरोध करों जैसे भी तुम कर सकती हो।लडकियों ने कहा कि एक लडकी ने विरोध किया था दूसरे दिन लडको ने झुन्ड बना उसे पीटा था।

घरवाले पढाई छुडवा देंगे ऐसे तो हम हफ्ते में दो दिन कॉलेज आ जा रहे हैं विरोध करने पर तो हम घर ही बैठे रहेंगे।.......ग्रामीण क्षेत्रों के मां बाप जो अभी भी पुराने ख्यालातों से मुक्त नहीं है उनके लिए उनका बेटा चाहे जितना आवारा हो वह आवारा नहीं हो सकता।किसी लडकी ने अगर पलटकर विरोध कर दिया तो लड़की चरित्रहीन है। लड़की के मां बाप की समस्या कि लडकी के इस कदम से हमारी बदनामी होगी उसका विवाह कहाँ होगा फिर?बी०ए० तक ही तो पढाना है फिर क्यों बेवजह किसी से दुश्मनी मोल ली जायें।.....और यह जो लडकों का झुन्ड होता हैं यह या तो बाप की बनी बनायी सम्पत्ति के मालिक होते हैं या इन्टर या हाईस्कूल येन केन प्रकारेण पास कर भर्ती देखने वाले होते है या इस गली से उस गली घूमने वाले होते है।

कुहरे में या बारिश में लडकियां कॉलेज नहीं आती,अकेले होने पर वह कॉलेज नहीं आती..अधिकांश के मां बाप उन्हें साइकिल ना ही उपलब्ध कराये ना ही चलाना सिखाये।...कहने को तो एक पुलिस चौकी भी है लेकिन वहाँ से कभी कोई बाजार में निकल विद्यालयों की तरफ झांकता ही नहीं।वह चौकी पर ही बैठ मठाधीशी करते है।

कितना जोशीला भाषण देकर इन्हें समझाया जाय? कितना इन्हें फेमिनिस्ट बनाया जाय? सब बस रामभरोसे चल रहा है। महिला अधिकारों और सुरक्षा की धज्जियां यहां ऐसे ही उड़ती हैं।



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