जहॉं महिलाएं सुरक्षित नहीं, वहाँ कैसा महिला दिवस

वामा            Mar 08, 2017


हेमंत पाल।
'एमपी अजब है, सबसे गज़ब है।' ये जुमला मध्यप्रदेश के विज्ञापनों में अकसर सुनाई देता है। वास्तव में एमपी अजब ही है। इस प्रदेश में बालिका जन्म को प्रोत्साहित करने से लगाकर महिला सशक्तिकरण के लिए लाडली लक्ष्मी, लाडो, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना, मुख्यमंत्री साइकल योजनाएं चलाई जा रही है। युवतियों को स्वयं की सुरक्षा में सक्षम बनाने के लिए शौर्या-दल गठित किए जा रहे हैं। लेकिन, प्रदेश में महिला अपराधों को लेकर जो सच सामने आया हैं, उसने कई सवाल खड़े कर दिए। एक बार फिर मध्यप्रदेश महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित राज्यों में शामिल हो गया। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक महिलाओं के साथ दुष्कर्म के सर्वाधिक मामले मध्यप्रदेश में घटित हुए। ये लगातार दूसरा साल है जब महिलाओं के खिलाफ अपराधों में प्रदेश सबसे ऊँची पायदान पर गर्दन झुकाकर खड़ा है। इसे कानून व्यवस्था की कमजोरी समझा जाए या आधुनिक समाज का काला सच, जो भी है ये सरकार की गंभीर चिंता का विषय है। लोगों को ख़ुशी देने के लिए 'आनंद' के बहाने खोजने वाली सरकार को ये आंकड़े मुँह चिढ़ाते लग रहे हैं। अब ऐसे प्रदेश में महिला दिवस मनाने का औचित्य समझ से परे है।

महिला की सुरक्षा और उनके उद्धार का दावा करने वाली मध्य प्रदेश सरकार की बात और सच्चाई में कितना फर्क है, ये सच्चाई उजागर हो गई! विधानसभा में कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत के एक सवाल के जवाब में गृहमंत्री भूपेंद्रसिंह ठाकुर का जवाब चौंकाने वाला था। गृहमंत्री के मुताबिक प्रदेश में फरवरी 2016 से जून तक 1868 महिलाएं दुष्कर्म और 108 महिलाएं सामूहिक दुष्कर्म का शिकार हुई! इनमें 883 बालिग और 985 नाबालिग थीं। जुलाई 2016 से अब तक 2411 महिलाओं के साथ दुष्कर्म, 140 के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ। इस अवधि में दुष्कर्म के 2400 और सामूहिक दुष्कर्म के 137 मामले दर्ज हुए। दुष्कर्म का शिकार बनीं महिलाओं में 611 अनुसूचित जाति की, 662 अनुसूचित जनजाति की, 750 अन्य पिछड़ा वर्ग की और 388 सामान्य की महिलाएं शामिल हैं। आश्चर्य की बात तो ये कि सरकार की तरफ से इसमें सुधार के लिए कोई कदम नहीं उठाए जा रहे! ये लगातार दूसरा साल है, जब 'एनसीआरबी' की रिपोर्ट में महिलाओं पर अपराधों में मध्य प्रदेश सबसे ऊँची पायदान पर खड़ा है! पर, ये सबसे ऊँची पायदान पीठ थपथपाने वाली नहीं, शर्म से गर्दन झुका लेने वाली बात है।

ये कहा जा सकता है कि महिला और बालिका हितैषी योजनाओं के कारण देश और दुनिया में पहचान बनाने वाले मध्य प्रदेश में बालिकाएं और महिलाएं देश में सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं। 'एनसीआरबी' की 2015 की रिपोर्ट में भी मध्यप्रदेश में देश में सबसे ज्यादा 4391 महिलाएं दुष्कर्म का शिकार बनी थीं। तब भी सरकार ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया था। सरकार ने बचाव करते हुए कहा था कि राज्य में हर शिकायत पर रिपोर्ट दर्ज की जाती है, इसलिए संख्या ज्यादा है। प्रदेश की तत्कालीन महिला बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनीस ने भी महिलाओं के साथ बढ़ी दुष्कर्म की घटनाओं पर चिंता जताई थी। कहा था कि प्रदेश में हर शिकायत पर प्रकरण दर्ज किया जाता है, इसलिए आंकड़े बढ़ जाते हैं। उन्होंने ये भी कहा था कि ऐसी घटनाओं में बड़ी संख्या में परिचितों व परिजनों के शामिल होने की बात भी सामने आई। इसलिए ऐसे मामले रोकने के लिए सरकार के साथ समाज को भी आगे आना होगा। लेकिन, सवाल उठता है कि इन बढ़ते आंकड़ों पर काबू पाने के लिए सरकार ने क्या कुछ किया है? यदि वास्तव में कुछ किया होता तो आंकड़े बढ़ने बजाए घटते, पर ऐसा हुआ नहीं।

सच्चाई तो ये है कि दुष्कर्म की वारदातें घटने के बजाए बढ़ रही है। बल्कि, इसकी जघन्यता ही सामने आने लगी! अब तो छोटी बच्चियों के साथ स्कूलों में ही दुष्कर्म की वारदातें होने लगी। क्या सरकार कभी सामाजिक नजरिए से ये जानने की कोशिश की है कि महिलाओं, युवतियों और छोटी बच्चियों के साथ बढ़ते दुष्कर्म के कारण क्या हैं? लोगों को नकली आनंद का अहसास कराने वाली सरकार ने कभी समाज शास्त्रियों से इसका कारण जानने की कोशिश की है? शायद नहीं की होगी, क्योंकि सरकार की नजर में ये आपराधिक प्रकरण हैं, न कि सामाजिक! स्कूलों में छेड़छाड़ और दुष्कर्म करने वालों में भी छात्र तो कम, शिक्षक ही ज्यादा हैं! बेहतर हो कि इस बीमारी का इलाज पुलिस के डंडे के बजाए समाज सुधार के तरीके से किया जाए। इसी साल फ़रवरी के महीने में भोपाल के कोलार इलाके में 3 साल की एक बच्ची के साथ स्कूल के डायरेक्टर ने दुष्कर्म किया! जबलपुर में 5 साल की एक बच्ची के साथ भी स्कूल के ही दो छात्रों ने दुष्कर्म किया। ग्वालियर में तो एसपी के रीडर पर ही एक महिला के साथ ज्यादती का आरोप लगा। बुरहानपुर जिले के एक गांव में तो चर्च के पादरी पर ही आदिवासी महिला के साथ दुष्कर्म का मामला सामने आया। ये वो मामले हैं, जो दर्शाते हैं कि समाज किस तरफ जा रहा है और उसमें कितना और कैसा सुधार किया जाना चाहिए।

नाबालिग बच्चियों के साथ यौन शोषण के मामले भी मध्यप्रदेश में लगातार बढ़ रहे हैं। 2015 में दर्ज हुए दुष्कर्म के 5,071 मामलों में से 605 में बाल यौन शोषण सरंक्षण अधिनियम यानी 'पोक्सो एक्ट' लगाया गया था। छोटी बच्चियों के साथ छेड़छाड़ और यौन शोषण के मामले भी प्रदेश की गलत तस्वीर पेश करते हैं। देशभर में 5 साल तक के बच्चों के साथ दुष्कर्म के 151% बढे हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 2010 में बाल यौन शोषण के 5,484 मामले दर्ज किए गए थे, जो 2014 में बढ़कर 13,766 हो गए। इसके अलावा पोक्सो एक्ट के तहत देशभर में 8,904 मामले दर्ज किए गए! इसे कानून व्यवस्था कमजोरी का मामला माना जाए सामाजिक कुंठा का, जो भी है इसका हल तो सरकार को निकालना है।

महिलाओं के शोषण के बढ़ते मामलों में विडंबना यह है कि जैसे-जैसे समाज के सोच में आधुनिकता आई, उसके साथ ही महिलाओं के प्रति संकीर्णता का भाव बढ़ा है। समाज की दृष्टि में महिलाएं आज भी सिर्फ औरत हैं। कथित सभ्य समाज उन्हें थोपी, गढ़ी और बुनी तथाकथित नैतिकता की परिधि से बाहर नहीं आने देना चाहता। इसी मानसिकता का नतीजा है कि महिलाओं के प्रति छेड़छाड़, बलात्कार, हिंसा, दहेज मृत्यु और यौन उत्पीड़न जैसे अपराधों की संख्या में बढ़ रही है। ये स्थिति तब है, जब देश और प्रदेश में महिलाओं को अपराधों के विरुद्ध कानूनी संरक्षण प्राप्त है। भारतीय संस्कृति सृजन और संवेदना से जुडी है। इसका मूर्त रूप है औरत! कोई भी व्यक्ति, समाज या सरकार कितनी सुसंस्कृत है, इसका जवाब उसके संरक्षण में महिलाओं के साथ होने वाले व्यवहार में देखा जा सकता है। महिलाओं के प्रति दुर्व्यवहार हमारी सभ्यता और संस्कृति पर प्रश्नचिह्न लगाता है। नारी के प्रति अपराध, संस्कृति पर आघात है। मध्यप्रदेश में जिस तरह इन मामलों में बढ़ोतरी हो रही है, उससे हमारा साँस्कृतिक अस्तित्व ही संकट में आने लगा है। लेकिन, इसमें सुधार की दिशा कौन तय करेगा? सरकार या समाज ये सबसे अहम सवाल है।

(लेखक 'सुबह सवेरे' के राजनीतिक संपादक हैं)



इस खबर को शेयर करें


Comments