घाघ-भड्डरी कहते हैं, किसानों पर और बरसेगी आफत
वीथिका
Apr 17, 2015
कुंवर समीर शाही
फैजाबाद घाघ ने कहा था- 'एक बूंद जो चैत में परै। सहस बूंद सावन में हरै।।’ यानी यदि चैत में बरसात की एक बूंद भी पड़ जाए, तो सावन की सैकड़ों बूंदे नहीं पड़ेंगी यानी वर्षा नहीं होगी। घाघ कहते हैं कि माघ में गरमी जेठ में जाड़, कहैं घाघ हम होब उजाड़। यानि जेठ माह में गर्मी न पड़े तो समझ लेना चाहिए कि सूखा पड़ने वाला है। इस बार चैत और बैसाख में हो रही वर्षा किसानों को पूरी तरह से बर्बाद कर चुकी है। घाघ और भड्डरी यदि सही निकले तो संकट आगे और भी बड़ा है। बरसात के दिनों में भी सूखे की आशंकाएं बढ़ रही हैं। मौसम का चक्र ऐसा बदला है जिसे किसान नहीं समझ पा रहे हैं। उधर, देश के मौसम विभाग ने भी यह आंशका व्यक्त की है कि देश में सूखे की संभावना बन सकती है। इसका कारण वह अलनीनो को ठहराते हैं। साफ है वैज्ञानिक और घाघ व भड्डरी के सुर एक हैं। कारण अलग गिनाए जा रहे हैं। यह अलग बात है कि इस वैज्ञानिक युग में भी किसान मौसम के बारे में घाघ और भड्डरी को ज्यादा याद करते हैं। लेकिन सवाल यह जरूर उठ रहे हैं कि क्या लगभग साढ़े चार सौ साल बाद भी घाघ और भड्डरी की मौसम संबंधी भविष्यवाणी सही साबित होंगी।
चैत व बैसाख यानी मार्च-अप्रैल में वर्षा कोई नई बात नहीं है, लेकिन ऐसी बरसात किसी ने नहीं देखी। मौसम विभाग कहता है कि अप्रैल में वर्ष 2००6 में भी काफी वर्षा हुई थी। यह अलग बात है कि बड़े-बुजुर्गों को भी इस तरह से फसलों के भारी नुकसान की याद नहीं। जिले के 75 साल के एक बुजुर्ग किसान अर्जुन सिह बताते हैं कि वर्ष 1977 में दो-तीन फिट ओले गिरे थे। तब खेतों से सीला बिन लिया गया था लेकिन इस बार वह भी नसीब नहीं। एक किसान रामवीर कहते हैं कि अभी बरसात हो रही है, लेकिन बरसात के मौसम में दो बूंद भी पानी नहीं गिरेगा। मौसम वैज्ञानिक तत्काल के परिणामों की जानकारी देते हैं, लेकिन असली भविष्यवाणी घाघ और भड्डरी कर गये हैं। बैशाख और जेठ में जब पछुआ हवायें चलनी चाहिए, तब लगातार पुरवैया हवायें चल रही हैं। ऐसे में जब तक मौसम में ठंडक बनी रहेगी, वर्षा ऋतु में सूखे की संभावनाएं प्रबल होती जाएंगी।
पुरवा हवाओं से बढ़ा नुकसान
पुरवैया हवा में मड़ाई बहुत कठिन है। यह किसानों का दुर्भाग्य है कि फरवरी से अब तक लगातार पुरवैया हवाएं चल रहीं हैं। घाघ यह भी कहते हैं कि 'तपै मृग शिरा जोय, तो बरखा पूरन होय।’ यानी अप्रैल-मई में गर्मी और लू के चलने से ही मॉनसून ठीक रहेगा। पिछले वर्ष भी किसानों को सूखा झेलना पड़ा था। मॉनसून अपनी विदाई के समय बरसा था। सूखे ने बहुत ही गहरा असर छोड़ा था।
अब आये भड्डरी की बात कर ले। भड्डरी कहते हैं- 'चैत मास दशमी खड़ा, बादर बिजरी होय, तौ जानो चित माहिया गर्व गला सब जोई। अर्थात चैत सुधी दशमी को यदि बादल बिजली हो तो यह समझ लेना कि वर्षा का गर्भ गल गया है, अर्थात वर्षा ऋतु में बरसात नहीं होगी। यहीं नहीं वह कहते हैं कि असनी गलिया अन्त विनाशै गली रैवती जल को नाशे मतलब यदि चैत में पानी बरस जाये, तो चैमासा यानी बरसात में सूखा पड़ेगा। मृगशिर वायु न बाजिया, राहणी तपै न जेठ। गोरी बीनै कांकरा, खड़ी खेजड़ी हेठ।। यानि मृगशिर में हवाएं न चलीं और जेठ न तपा तो बरसात नहीं होगी। किसान की पत्नी पेड़ के नीचे कंकड़ बीनेगी। पिछले कई वर्षों से किसान सिर्फ संकट झेल रहा है। पिछले साल सूखे का संकट आया था। इस संकट से किसान निकल भी नहीं पाये थे कि अतिवृष्टि और ओलों का संकट आ गया। अब किसानों का भी अनुभव बताता है कि अगली फसल के लिए भी संकट बहुत बड़ा है। घाघ ही नहीं किसान भी अपने अनुभव के आधार पर बताते हैं कि इस समय असमय हो रही वर्षा और भी परेशानी खड़ी करेगी। इस समय हवा में नमी है, जब तक लू नहीं चलेगी हवा से नमी नहीं जाएगी।
किसान मौसम वैज्ञानिकों पर भी भरोसा करता है और घाघ, भड्डरी पर भी। मौसम व कृषि वैज्ञानिक अगले आठ दिनों के मौसम के बारे में भविष्यवाणी करते हैं, लेकिन घाघ की कहावतें कई महीने पहले ही बता देती हैं कि फसलों पर संकट कैसा होगा और किसानों को क्या करना चाहिए, क्या नहीं। मौसम विज्ञान अब आया है, जो किसानों की मदद भी कर रहा है। लेकिन घाघ की कहावतें लोगों की जुबान पर चढ़ी रही है। घाघ तभी गलत हो सकते हैं, जब प्रकृति बदले और निश्चित रूप से हमारे कर्मो से प्रकृति में बदलाव आ रहा है, लेकिन अब तक घाघ सौ आने सही साबित हुए। घाघ व भड्डरी की कहावतों का वैज्ञानिक आधार पर अध्ययन होना चाहिए।
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