जहां हनुमान वहां ऊर्जा, चेतना, स्पंदन

वीथिका            Apr 03, 2015


शैलेश तिवारी श्री हनुमान जी का सम्पूर्ण चरित्र युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है, लेकिन उनकी जिस मूर्ति और चित्र की पूजा अर्चना देश के अधिकांश स्थानों पर की जाती है उस मूर्ति द्वारा भक्तों सहित युवाओं को जो प्रेरणा दी जा रही है उस पर हमारा ध्यान कम जाता है। संभवत: इन्हीं कारणों को ध्यान में रखते हुए बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय के संस्थापक महामना पं. मदन मोहन मालवीय ने एक बार यह कहा था कि देश के प्रत्येक नगर की गली और हर गांव की चौपाल पर हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित की जाना चाहिए। जिससे युवा निरंतर प्रेरणा ले सकें। हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र अधिकांश स्थान पर जो देखने में आए हैं वह एक हाथ में पर्वत, दूसरे में गदा लिए जाते हुए नजर आते हैं। इस प्रतिमा का सर्वप्रथम निर्माण जिस मूर्तिकार ने किया होगा। निश्चित ही वह हनुमान दर्शन को बहुत गहरे तक समझा होगा। हम उसी मूर्तिकार को नमन करते हुए उन विशेषताओं का जिक्र करते हैं जो हनुमान जी की प्रतिमा में दर्शाई गई है। सर्वप्रथम श्री हनुमान जी की चरण वंदना अर्थात उनका एक पैर पंजे के बल पर जमीन पर टिका हुआ है और दूसरा पैर हवा में उठा हुआ है। यह स्वरूप वास्तव में जीवन की गतिशीलता का प्रतीक है। जो हमें लगातार गतिमान रहने की प्रेरणा देता है कि चलना जीवन का नाम, चलते रहो सुबह शाम। जिस प्रकार हनुमान के चरित्र में बैठना या लेटना अथवा विश्राम शामिल नहीं है उसी प्रकार हम भी जीवन में गतिशील तो बने रहें। दूसरी विशेषता के रूप में उनके एक हाथ में गदा या मुगदर दिखाई देता है। जो रक्षा का सपूर्ण आश्वासन देता है। असुरक्षा की भावना को दूर करता है। हमारे लिए प्रेरणादायी है कि हमारी उपस्थिति जहां भी हो वहां असुरक्षा की भावना दूर हो जाए। जैसे हनुमान की शरण में जाने पर सुरक्षा की भावना मजबूत हो जाती है। भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे। प्रेरणा का तीसरा बिन्दू है उनके एक हाथ में संजीवनी युक्त पर्वत का होना। जो उनके जीवन दायक होने की न केवल घोषणा कर रहा है, वरन यह विश्वास भी दिला रहा है कि जहां हनुमान होंगे वहां कोई लक्ष्मण मूच्र्छित नहीं रह सकता। रोग का निवारण होना सुनिश्चित है। नासे रोग हरे सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा। उसी मूर्ति या चित्र में हमें उनकी लक्ष्य पर टिकी आंखें, मन की एकाग्रता का बयान करती नजर आती हैं। मानों कह रही हों कि एकाग्र होकर लक्ष्य पर नजरें टिकाए रखो तो सफलता तुम्हारे कदमों में होगी। इसी सत्य को उन्होंने, राम काज कीन्हे बिना मोहे कहां विश्राम, कहकर उद्घाटित भी किया है। स्वर्ण शैलाभ देहम्, जैसे शब्दों से हनुमान जी की सिंदूरी शरीर की आभा का वर्णन संत तुलसीदास जी ने सुंदरकांड के प्रारभ में किया है। अनेक अर्थ अपने में समेटने वाला सिंदूरी रंग ऊर्जा का प्रतीक है तो प्रेम और रक्षा का भी। माता सीता द्वारा मांग भी सिंदूर भरे जाने का कारण श्रीराम से प्रेम की प्रगाढ़ता और उनकी रक्षा का बताने पर हनुमान ने पूरा शरीर सिंदूर से रंग लिया है। यह सिंदूरी रंग प्रेम और रक्षा का विश्वास दिला रहा है तो ऊषा काल के सूर्य की तरह सिंदूरी होकर ऊर्जा का संचार भी कर रहा है। सच है जहां हनुमान होंगे वहां ऊर्जा, चेतना और स्पंदन पैदा होना सुनिश्चित है।


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