मॉर्निंग वाक और मोबाइल

वीथिका            Apr 17, 2015


संजय जोशी 'सजग' जब से चलित दूरभाष की क्रांति हुई है तब से मोबाइल लेकर घूमने की परम्परा अपने आप शुरू हो गई चलते हुए बात करना फैशन हो गया और ऐसा करने वाला मानो अपने आप को आधुनिक दर्शाने का उपक्रम करता है सुबह और शाम के भ्रमण करने की बात ही कुछ ओर है पैदल घूमना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है ऐसा डॉक्टर कहते है खूब घूमो इसलिए घूमता है पर आदत से लाचार है इसलिए बेचारा मोबाइल लेकर घूमता है। आजकल सबका परम प्रिय जो बन गया है । सब उसके बड़े दास हो गये है कि लगता है उसके बिना पल पर भी नहीं रह सकते क्योंकि वह उसे यह अहसास कराता है कि दुनिया मेरी मुट्ठी में है मुझे भी मोबाइल फोबिया हो गया है और हमेशा वह मेरे साथ होता है यह मेरी .जान से भी प्यारा है और सामाजिक संबधो का पिटारा .इसके बिना जीवन अधूरा सा लगता है । मैंने एक अनुभव किया कि प्रात:भ्रमण के दौरान सीनियर सीटिजन घूमने की पूरी आचार संहिता का पालन करते है वह इस पिटारे को अपने साथ नही रखते वे इसे बीमारी की जड़ मानते है। मुझे .ऐसे ही सीनियर सीटिजन श्री शर्मा जी .....मिले .मैंने उनसे पूछा कि परम श्रद्धेय .शर्मा जी आप मोबाइल साथ क्यों नही रखते वे सुनते ही आग बबूला हो गये में सहम गया मैंने विनम्रता से कहा मुझसे क्या गलती हो गई आप खामख्वाह नाराज हो गये ,इसके बाद उन्होंने प्रात: भ्रमण करने वालो के बारे में सब कुछ बयां कर डाला , कुछ इस तरह कि हम तो पूरे वर्ष ही प्रतिदिन घूमते है और यह दिनचर्या का अहम हिस्सा है हमारी सेहत का भी यही राज है हम जैसे लोग बिरले ही होते है इसी मॉर्निंग वाक कि वजह से हम आपके सामने है वरना आजकल तो जीवन रेखा छोटी होती जा रही है लोग दिखावा ज्यादा करते है । mobile-talking उनका शाब्दिक प्रवाह निरंतर जारी था उनके अनुसार कुछ लोग घूमने नहीं मोबाइल पर बात करने ही निकलते है हमारा तो केवल एक सूत्रीय कार्यक्रम है घूमो और सेहत को चूमो ,जब से मोबाइल क्या आया मॉर्निंग वाक.के उद्देश्य का सत्यानाश कर दिया मेरे अनुभव व सूक्ष्म ज्ञान के मुताबिक अब इसका स्वरूप इस कदर बिगड गया .अब आपको मॉर्निंग वाक पर दो और तीन सूत्रीय वाले ही मिलेंगे एक सूत्रीय वाले हम जैसे बड़ी मुश्किल से मिलेंगे ।द्विसूत्रीय वालों का घूमने पर कम मोबाइल पर ध्यान ज्यादा होता है वे किसी से भी टकरा जाते है। क्योकि इस श्रेणी वाला तो मोबाइल से बातचीत में मशगूल रहता है और विशेष टाइप के तीन सूत्रीय वाले होते है उनका तो भगवान ही मालिक है एक हाथ में कुत्ता और दूसरे हाथ में मोबाइल इनकी स्थिति विचित्र होती है। दूसरो को उनसे बचते हुए अपना ध्यान रखना पड़ता है वह मोबाइल में मस्त और व्यस्त है उनका कुत्ता कहीं काट न खाए का डर हमेशा बना रहता है पता ही नही खुद घूमने निकला है, कुत्ते को घुमाने या मोबाइल पर बात करने । दिसूत्रीय और त्रिसूत्रीय एक सूत्रीय वाले के लिए परेशानी का कारण बन इठलाते है। और कमबख्त चुनाव के समय तो और भी खराब हो जाता है शुद्ध हवा में चुनावी बयार घुलने से एक विचित्र बेचैनी होने लगती है और घूमने का मजा किरकिरा हो जाता है। शर्माजी जी की व्यथा की कथा निरंतर जारी थी लग रहा था कि बरसों की भड़ास निकाल रहे हैं । उनकी व्यथा बिलकुल सही थी । बारिश और ठण्ड में तो कोई नही आता गर्मी आते ही घूमने वालो की बाढ़ सी आ जाती है । बेचारे ट्रेक सूट और स्पोर्टस शू की किस्मत के वे वारे न्यारे हो जाते है जो साल भर में दो या तीन महीने ही हवा खा पाते है फिर कैद कर दिए जाते है वो भी अपनी किस्मत को कोसते होंगे काश हमारी भी किस्मत ऐसी होती कि हमेंशा साथ रहें । मोबाइल की तरह। जिसे सब अपनी जान से भी ज्यादा चाहते है और हमेशा अपने से चिपकाये रहते है ।


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