उनका शाब्दिक प्रवाह निरंतर जारी था उनके अनुसार कुछ लोग घूमने नहीं मोबाइल पर बात करने ही निकलते है हमारा तो केवल एक सूत्रीय कार्यक्रम है घूमो और सेहत को चूमो ,जब से मोबाइल क्या आया मॉर्निंग वाक.के उद्देश्य का सत्यानाश कर दिया मेरे अनुभव व सूक्ष्म ज्ञान के मुताबिक अब इसका स्वरूप इस कदर बिगड गया .अब आपको मॉर्निंग वाक पर दो और तीन सूत्रीय वाले ही मिलेंगे एक सूत्रीय वाले हम जैसे बड़ी मुश्किल से मिलेंगे ।द्विसूत्रीय वालों का घूमने पर कम मोबाइल पर ध्यान ज्यादा होता है वे किसी से भी टकरा जाते है। क्योकि इस श्रेणी वाला तो मोबाइल से बातचीत में मशगूल रहता है और विशेष टाइप के तीन सूत्रीय वाले होते है उनका तो भगवान ही मालिक है एक हाथ में कुत्ता और दूसरे हाथ में मोबाइल इनकी स्थिति विचित्र होती है। दूसरो को उनसे बचते हुए अपना ध्यान रखना पड़ता है वह मोबाइल में मस्त और व्यस्त है उनका
कुत्ता कहीं काट न खाए का डर हमेशा बना रहता है पता ही नही खुद घूमने निकला है, कुत्ते को घुमाने या मोबाइल पर बात करने । दिसूत्रीय और त्रिसूत्रीय एक सूत्रीय वाले के लिए परेशानी का कारण बन इठलाते है। और कमबख्त चुनाव के समय तो और भी खराब हो जाता है शुद्ध हवा में चुनावी बयार घुलने से एक विचित्र बेचैनी होने लगती है और घूमने का मजा किरकिरा हो जाता है।
शर्माजी जी की व्यथा की कथा निरंतर जारी थी लग रहा था कि बरसों की भड़ास निकाल रहे हैं । उनकी व्यथा बिलकुल सही थी । बारिश और ठण्ड में तो कोई नही आता गर्मी आते ही घूमने वालो की बाढ़ सी आ जाती है । बेचारे ट्रेक सूट और स्पोर्टस शू की किस्मत के वे वारे न्यारे हो जाते है जो साल भर में दो या तीन महीने ही हवा खा पाते है फिर कैद कर दिए जाते है वो भी अपनी किस्मत को कोसते होंगे काश हमारी भी किस्मत ऐसी होती कि हमेंशा साथ रहें । मोबाइल की तरह। जिसे सब अपनी जान से भी ज्यादा चाहते है और हमेशा अपने से चिपकाये रहते है ।
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