संजय जोशी सजग
बांकेलाल जी जोश से परिपूर्ण एक ऐसे मनुष्य है जिनको पराये सुख से दुखी रहने की आदत है वह भी क्या करें सामजिक परिवेश कुछ ऐसा ही है हर कोई दूसरे के सुख से दुखी है। पर आज तो वे देश के हालत पर दुखी लग रहे थे वे कहने लगे कि डिजिटल इंडिया की शुरुआत हो गई है जब हम छोटे थे तब से डिजिटल शब्द को सुनते आ रहे हैं। । मालवा में तो घुमावदार ,सनकी चालबाज , समझ से परे और बत्तीबाज जैसे व्यक्तित्व के लिए कहते है कि यह तो डिजिटल है अतः ये शब्द सुनते आ रहे हैं। वर्तमान दौर में हर चीज डिजिटल हो गई और लोगों को समझ में आया कि यह तो आधुनिकता की निशानी बन गया है तो ऐसे लोगों को डिजिटल कहना मतलब उनकी कीमत में इजाफा करना सो कहना लगभग कम हो गया है।
बांकेलाल जी कहने लगे डिजिटल इण्डिया तो अब बना पर पहले ही बहुत कुछ डिजिटल है। यहां के सांख्यिकीय आंकड़े तो आम जनता के कभी समझ ही न आये आकड़ो का विकास दिखाया जाता है और जनता जहां की तहाँ रह जाती है और देश के कर्णधार दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति करते है। अब नया डिजिटल इंडिया कैसा होगा यह तो वक्त बताएगा। डिजिटल इंडिया का सबसे ज्यादा फायदा उच्च वर्ग को ,थोड़ा बहुत मध्यम वर्ग को जो यह सोचता है कि भागते भूत की लंगोटी ही सही।
हेल्पलाइन कभी न चलने वाली लाइन है , ब्रॉडबैंड की स्पीड कभी कभी ही ढंग से मिल पाती है ,मोबाइल से नेट चलना तो और भी दूभर हो जाता है ,वाई -फाई जोन जहां है वहां भी मारामारी है । इंटरनेट के लिए बिजली बहुत जरूरी है, गर्मी मे तो मोबाइल भी पूरा चार्ज करना मुश्किल होता है कई जगह । देश की बहुत बड़ी आबादी आज भी गाँवो में रहती है ,अच्छी और सस्ती शिक्षा का अभाव ,ऐसी कई मुलभूत आवश्यकता है जो डिजिटल इण्डिया की सफलता के लिए जरूरी है ऊपरी तौर पर डिजिटल इण्डिया बन जाए तो ढोल में पोल ही रहेगी ।
डिजिटल इंडिया से तो टेलीकॉम कम्पनियों की चांदी उपभोक्ता की बर्बादी नेट पैक रिचार्ज करा -करा के ही कमर टूट जायेगी और डिजिटल इण्डिया की झांकी चलती रहेगी । कम्प्यूटर के आने के बाद से देश की जनता का बहुत बड़ा हिस्सा इसकी पहुंच से दूर तो है ही पर ये क्या होता है । यह भी नहीं मालूम उस देश में डिजिटल इण्डिया एक सपना लगता है जब तक अंतिम आदमी इससे न जुड़ें और समझें।
मैंने कहा बांकेलाल जी यह तो हर ताले की चाबी है ऐसा है सब काम आसान हो जायेंगे पेपर की बचत होगी ,समय भी कम लगेगा वे कहाँ मानने वाले थे। कहने लगे कि शुरू -शुरू में सब अच्छा नजर आता है बाद में कोई पलट के नहीं देखता । हमारे देश की विडंबना है हर नयी शुरूआत होती तो जोर शोर से है । बाद में सिसक -सिसक कर कोमा में चली जाती है । मैंने कहा कि सब्र का फल मीठा होता है वे कहने लगे ज्यादा सब्र रखने से फल सड़ भी जाता है । मैंने बांकेलाल जी से कहा मुझे कुछ जरूरी काम है इस विषय पर बाद में चर्चा करेंगे । वे बोले ये क्या ,आप भी डिजिटल जैसी बात कर रहे हो ।
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