ऋचा अनुरागी।
पापा को अक्सर माँ कहती,यह क्या है ,आपका लिखा कैसे संभालू? कभी झाडू में बस के टिकट पर लिखी पंक्तियाँ ,कभी अखबार के पन्नों पर या फिर कगाज के टुकड़ों पर लिख कर भूल जाते हो। उनकी सहज मुस्कान और फिर माँ को संबोधित कर कहते...
तुलसी के कितने गीत
गुमे,अनजान रहे।
मीरा के कितने पद केवल
एकान्त घुंघरूओं में ही रम
भाषा के जग से
बेबूझे-बिन पहचान रहे ।
उस मस्त कबीरा का जादू
पूरा कब भाषा ले पाई
करघे ने जितना सुना
न सुन पाई वाणी
औ,कलम न उतना दे पाई।
सूरा की अंधी आँखों ने
इतना देखा,
थक गई कलम।
विद्यापति गीत बिखेर चला
बीनो,जिसमें जितना दम हो।
तुम गीत उगाते चलो ,
फसल कोई काटे।
तुम अपना गाते चलो,
गीत कोई छांटे।
माँ कहते-कहते थक गईं पर पापा तो गीत बिखेरते गये। कई बार तो यह हुआ कि वे नये रचनाकारों को लेकर गीत,रचनाएं छांटने बैठ जाते और फिर समझो साथ बैठे रचानाकारों की लाटरी खुल गई हो। छटाई के दौरान अगर पापा कहते अरे यार यह कुछ जम नहीं रहा अलग करो तो झट उस रचना ,को बाला रचनाकार यह कह रख लेता ,दादा यह रचना फिर मेरी हुई और वे साहर्ष स्वीकृति दे देते। किसी रचना के बारे में कोई कह देता अरे वह कितनी अच्छी रचना है दादा यह तो कहीं छपी-पढ़ी नहीं है उनके अन्तर मन को वे समझ जाते और धीरे से कहते ,चल यह आज से तेरी हुई। यह मेरे सामने की ही नहीं इन बातों के गवाह बहुत से लोग हैं।
एक बार पापा मंचासीन थे और एक महोदय पापा का ही गीत अपने नाम से सुना रहे थे ,और वाह-वाही लुट रहे थे कि तभी मंच पर विराजित कवि संपत चतुर्वेदी ने पापा के कान में कहा दादा यह तो आपकी है,। पापा ने बड़ी ही सहजता से कहा हाँ मुझे मालूम है,ग्वालियर मेले में चल रहे कवि सम्मेलन की बात है ,पापा संपत जी का हाथ दबाए बैठे थे और वे कह रहे थे दादा मुझे छोड़ों मैं इसे सबक सिखाता हूँ। जैसे -तैसे उसका रचना पाठ पूरा हुआ मंच के पीछे ले जा कर माननीय संपत जी ने जो भी किया कि वे बगैर राशी लिये चम्पत हो गये ।
इसी तरह एक बार फिर वही घटना दोहराई गई तब दिलजीत सिह रील सरदार जी कवि महोदय से रहा नही गया और वे माईक थाम बोले ,यह जो सज्जन पढ़ रहे थे यह रचना दादा अनुरागी जी की है ,दादा यहाँ खामोश बैठे अपनी रचना पर ही दुसरे को शाबासी दे रहें हैं ,मुझे साहित्य की चोरी बरदाश्त नहीं फिर क्या सरदार जी को गुस्सा और जोश दोनों ही आ गया वे उस पर तुल बैठे। पापा ने रील साहब को बड़ी मुश्किल से यह कह शांत कराया कि भाई यह रचना मैंने उसे गोद दे दी ।
एक बार एक मशहूर शायर का गीत फिल्मी दुनिया में धूम मचा रहा था कि हमारे घर छतरपुर से किसी सज्जन ने एक पत्र भेजा,जिसमें सन् छप्पन के अखबार की कटिंग थी और वह गीत पापा के नाम से छपा था ,जो धूम मचा रहा था ,हम बच्चे बहुत खुश कि वाह यह गीत तो हमारे पापा का है। पापा जैसा इंसान तो भूतौ ना भाविष्यति है उन्होंने उस अखबार की कटिंग को आग के हवाले कर हम सबको हिदायत दी कि यह बात यहीं खत्म ।
मैं भी यह सब आपसे साझा कर ही रही हूँ कि माननीय राम प्रकाश जी का फोन आ गया और जब जब मैने बताया कि मैं आज यादें अनुरागी में गीत बांटने वाले अनुरागी जी की बात कर रहीं हूँ तो उन्होंने एक वाक्या और बता दिया। अनुरागी जी अपने गीत भी बांट देते थे। उनकी कृपा कोर से कई कवि सम्मेलनी कवि ,कवित्रियां यत्र तत्र पाये जाते थे। एक बार दिलचस्प वाक्या हुआ। एक प्रसिद्ध गीतकार के नाम से एक गीत नवभारत के दीपावली वार्षिकांक में छपा , अनुरागी जी बोले -यह गीत तो मेरा है और छपा हुआ भी है। दिलचस्प यह था यही गीत कोई तीन साल पहले नव भारत के वार्षिकांक में वही गीत अनुरागी जी के नाम से छप चुका था। उन्होंने मुझे दोनों अंक दिखाये।
मैं बिगड़ गया यह तो सरासर चोरी है ,इस पर कारवाई होनी चाहिए। संपादक त्रिभुवन यादव और ध्यान सिंह तोमर से मैंने बात भी कर ली कि तारीख सहित फोटो कापी करवा कर समाचार की तरह नवभारत में छपवा देते हैं। इस बीच उन कवि जी को इन सबका भान हो गया और उन्होनें अनुरागी जी को अपनी करनी पर पछतावा जता दिया या बस अनुरागी जी अड़ गये। हम बहुत झगड़े पर उनका कहना था ,यार हो सकता हो यह गीत मैंने उसे दे दिया हो ,देते समय मैं भूल गया था कि यह छपा हुआ है। नहीं नहीं यह ठीक नहीं होगा।यह तुम किसी से कहना भी नहीं ।
एक बडे नामधन्य नेता अपने भाषण अनुरागी जी से लिखवाते रहते थे और ये सहज में ही लिख देते एक दिन उनकी पुस्तक का बड़े भारी प्रोग्राम में विमोचन हुआ ,अनुरागी जी भी वहाँ विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे पुस्तक को खोलते ही अनुरागी जी हत्-प्रभ थे सारा उनका ही लिखा हुआ था। नेता जी थे अतः अनुरागी जी के बधाई देने पर आँखों में शर्म भी नहीं थी । ऐसे थे अनुरागी महाशयः।
पापा हमेशा एक बात कहते थे- हजारों फूलों को एक साथ खिलने दो। वे इसी खिलन के पैरोकार थे।जो कवि नहीं खिल सकते थे मगर कवि होने का हौंस पालते थे,अनुरागी जी उनके लिए अपनी कलम से काव्य - पुष्प- खिला देते थे ।
Comments