2016 में सौ साल का हो जायेगा पटना हाईकोर्ट

वीथिका            May 29, 2015


मल्हार मीडिया डेस्क बिहार का पटना हाई कोर्ट भारत की सबसे पुरानी अदालतों में से एक है और यह अगले साल अपनी स्थापना के सौ साल पूरा कर रहा है। भारत में न्याय का चक्का थोड़ा धीमा घूमता है। अदालतों में अब भी तीन करोड़ से ज़्यादा मामले लंबित हैं और इनमें से एक चौथाई हर साल अनसुलझे रह जाते हैं। पटना हाई कोर्ट में भी हर साल हज़ारों मुक़दमे चलते हैं। फ़ोटोग्राफ़र प्रशांत पंजियार को भारत में अदालतों के काम करने के तरीकों को तस्वीरों में क़ैद करने का दुर्लभ मौका मिला। मार्च 1916 में पटना हाई कोर्ट के दरवाज़े लोगों के लिए खुले थे। इंडिया लीगल जर्नल के मुताबिक़, "उस दिन, जजों ने लाल गाउन पहने थे, विग लगाए थे, काले ब्रीचिज़ और रेशम के मोज़े पहने थे। तत्कालीन वायसराय लॉर्ड हार्डिंग्स ने कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि अदालतें कानून की अच्छी समझ के लिए जानी जाएंगी। अदालत की मुख्य इमारत के बाहर छाया में टाइपिस्ट अदालती दस्तावेज़ तैयार करते हैं। भारत में टाइपिस्टों की लुप्त होती पीढ़ी के कुछ बचे हुए लोग यहां मिल सकते हैं। भारत में जजों की भारी कमी है क्योंकि ख़ाली पद भरे ही नहीं जाते। हाई कोर्टों में 30 फ़ीसदी जजों की कमी है। इससे इंसाफ़ की प्रक्रिया लंबी हो जाती है। इस अदालत में आपको पारंपरिक वेशभूषा में क्लर्क भी दिख जाते हैं। भारत में अदालतें अक्सर आपको आज़ादी से पहले के वक्त की याद दिला देती हैं बहुत से कानून, नियम और वर्दियां ब्रिटिश राज के दौर की ही हैं। पटना हाई कोर्ट की वकीलों की लाइब्रेरी में काग़ज़ातों को देखते वकील. काले-सफ़ेद कपड़ों का चलन अभी जारी है। हाई कोर्ट की जजों के लिए बनी लाइब्रेरी किताबों और पत्रिकाओं से अटी पड़ी है। एक पूर्व जज का कहना है, "पटना हाई कोर्ट यक़ीनन हमारे वक्त के महानतम हाईकोर्टों में से एक था। इसने विद्वान जजों और वकीलों को जन्म दिया है। 2001 में लंबित मामलों को निबटाने के लिए फ़ास्ट ट्रैक अदालतों का गठन किया गया और तब से इन अदालतों ने 30 लाख से ज़्यादा मुक़दमे निपटाए हैं। लेकिन फिर भी हाई कोर्टों में बड़ी संख्या में मुक़दमे लंबित हैं, जिससे इंसाफ़ की गति धीमी होती है। अदालती फ़ैसलों और आदेशों की मूल प्रतियां मुख्य रिकॉर्ड्स रूम में रखी जाती हैं। ख़ास बात यह है कि पटना हाई कोर्ट भारत की उन पहली अदालतों में शामिल है जिसने मुक़दमों की सूची को कंप्यूटरीकृत किया और वीडियो कॉंफ्रेंसिंग के ज़रिए सुनवाई की गई। इस प्रोजेक्ट के दौरान अपने अनुभवों को साझा करते हुए प्रशांत पंजियार कहते हैं, "न्यायपालिका के लिए मेरे मन में आदर का भाव आया, क्योंकि मैंने जो नज़रिया और अनुशासन देखा उसकी उम्मीद नहीं थी। BBC


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