क्यूरियोसिटी ही ज्ञान है, अब्र क्या चीज़ है? हवा क्या है?

वीथिका            May 20, 2022


नवीन रंगियाल।
क्यूरियोसिटी ही ज्ञान है। प्रकाश है। वही हमें दूर तक ले जाता है, लंबी सड़कों पर, अनजान गलियों में, एक नगर से दूसरे नगर तक आतम के एक कोने से दूसरे तक।

क्यूरियोसिटी एक दृष्टि से दूसरी दृष्टि को प्राप्त होना, फिर दूसरी से तीसरी, अपने से दूर जाना, देह को अपने से दूर रख देना, उसे दूर रखकर देखना, जैसे हम नहीं हैं इस दुनिया के।

हम सिर्फ देखते हैं।

उत्सुकता, जिज्ञासा, जानने की उत्सुकता, बस उत्सुकता, जवाब नहीं।

जैसे प्रेम! जानना ही प्रेम है, किसी को जान लेना, इसलिए प्रेम भी उत्सुकता है।

कितने लोग हैं दुनिया में असंख्य, किंतु हम किसी एक को ही जानते हैं।

हमें किसी एक को जानने की उत्सुकता है।

प्रेम जवाब नहीं है, सिर्फ एक उत्सुकताभर है।

ज्ञान भी उत्सुकता है, न ज्ञान कोई अंत है, न प्रेम कोई जवाब है।

अगर इस क्यूरियोसिटी को इस बच्चे की तरह तुतलाई हुई ज़बान में 'कोरिया सिटी' भी कहा जाए तो कोई फ़र्क नहीं पड़ता, उसका मकसद सिर्फ़ खोज है।

मार्ग ही खोज है, मार्ग ही ज्ञान है, जानना है और खोजते खोजते वहां पहुंच जाना है, जहां पहुंचने के बारे में हमने कभी तय ही नहीं किया था।

संभवतः ज्ञान कोई जगह नहीं है, मार्ग है।

मैं इस वक्त चांद को देख रहा हूं। आज की पूनम का चांद, बुद्ध का चांद, कहां से आया,अंततः कहां जाएगा?

यह चांद है, किंतु मैं इसे उसकी आंख की पुतली भी कह सकता हूं जो मेरा हाथ पकड़कर इस वक्त मेरे साथ चल रही है।

या कभी किसी दिन मेरा हाथ छोड़कर कहीं चली जाएगी। गुम हो जाएगी।

मैं चांद को आकाश की एक आंख भी कह सकता हूं, जिससे कोई निराकार, कोई अज्ञात, कोई शिव इस दुनिया पर नज़र रखे हुए है।

वो रातभर जागता है और निगरानी करता है, किस के मन में क्या छुपा है देखता है।

चांद रोटी भी है, खिड़की से झांकता भी है, वो आता भी है, चला भी जाता है। कहां से आता है? कहां जाता है?

अब्र क्या चीज़ है? हवा क्या है?
चांद कविता का बिम्ब भी है। वो दृष्टि भी है। चांद क्यूरियोसिटी भी है। या फिर दुनिया के घाव पर रखा हुआ कोई फाहा?
खोज रहा हूं... इस नन्हें खोजी के बहाने जिसने अपना मार्ग चुन लिया है।

औघटघाट
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