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मिठास बांटना मधुमक्खियों से ही सीख लीजिए

वीथिका            Sep 05, 2022


संजय स्वतंत्र।

क्या आपने कभी अपनी बालकनी में किसी मधुमक्खी को मंडराते देखा है? वह क्या ढूंढ़ रही है आपके पास?

क्या करने आई है वह आप समझ नहीं पाते?

 दरअसल, वह अपना घर बनाने के लिए जगह ढूंढ़ रही है।

हम अपने लिए घर बनाने का सपना देखते हैं। मन में एक घरौंदा भी बना लेते हैं, मगर कभी किसी चिड़िया या मधुमक्खियों के लिए क्या कभी सोचते हैं,  शायद नहीं।

हम अपना ‘स्पेस’ किसी को देना ही नहीं चाहते बल्कि, दूसरों का छीन लेना चाहते हैं।

हमने जंगल काटे तो कालोनियों में बंदर आ गए,  कौन रोक पाया उनको?  मासूम पक्षियों की कौन सोचे?

मधुमक्खियों से तो लोगों को डर लगता है,  क्यों डरना चाहिए?

 क्या आप जानते हैं कि हम मनुष्यों से इनको कितना डर लगता है?

 आप लोगों के जीवन में मिठास तो घोल नहीं सकते सिवाय जहर के, लेकिन ये मधुमक्खियां तो अपना घर छोड़ कर शहद रूपी अमृत आप को दे जाती हैं।

यह त्याग कौन करता है? अब कौन मिठास घोलता है जीवन में?  

हमें मधुमक्खियों से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। पूरी प्रकृति अपना प्रेम लुटाती है मनुष्यों पर और हम हैं कि उसको ही बर्बाद करने में दिन-रात लगे हैं।

पिछले दिनों इंस्टाग्राम पर यूं ही चला गया था।

वहीं मैने ‘द बी मैन आफ इंडिया’ देवेंद्र जानी को सुना।

उनका साक्षात्कार ले रही थीं प्रखर लेखिका आयुषी खरे।

इस साक्षात्कार में ‘मिस्टर बी’ के नाम से ख्यात देवेंद्र बता रहे थे कि हमारे जीवन में मधुमक्खियों का क्या महत्व है।

यों तो वे एक आइटी कंपनी में काम करते हैं, मगर वे मधुमक्खियों के संरक्षण-संवर्धन के लिए देश में बहुत बड़ा काम कर रहे हैं।

बचपन के शौक ने उन्हें ‘द बी मैन आफ इंडिया’ बना दिया। वे समझाते हैं कि मधुमक्खियां किस तरह फूलों का परागीकरण करती है।

परागीकरण के क्या मायने हैं?  क्या किसी ने मन का परागीकरण होते देखा है? यह महसूस करने की चीज है।

तो देवेंद्र जानी आयुषी के टॉक शो में बता रहे थे कि मधुमक्खियों का हमारे जीवन में होना कितना जरूरी है। कितना जरूरी है यह खेती-किसानी के लिए भी।

यह किस तरह फूलों की खेती को ही नहीं, फसलों को भी बेहतर बनाती है, उपज बढ़ाती हैं।

यह जानना सभी के लिए जरूरी है। क्योंकि कीटनाशक हमारी फसलों के साथ हमारे स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बने हुए हैं।

लेकिन अब मधुमक्खियों का कम होना चिंता का विषय है।

यह एक भ्रम है कि मधुमक्खियां खेतों और जंगलों में ही रहती हैं। अब ये हमारे शहरों की ओर आ रही हैं।

हमारे घरों के ठीक सामने, आसपास के पार्कों में और बालकनी में खिले फूलों पर भी मंडरा रही हैं। वे कह रही हैं, स्वागत नहीं करोगे हमारा।

हालांकि आपने शहरों का क्या हाल बना दिया है? प्रदूषण और रेडिएशन से कोयल, कौए और कबूतर सब भाग रहे हैं।

गौरेया पहले ही जा चुकी है आपको छोड़ कर।

अगर ये मधुमक्खियां आसपास दिख रही हैं तो आप भाग्यशाली हैं।

ये बता रही हैं कि आप जहां रह रहे हैं वहां का जल स्तर ठीक है। कोई प्रदूषण नहीं है और कोई रेडिएशन भी नहीं।

ऐसी ही जगह रहना चाहती हैं वे।

आयुषी खरे के इस टॉक शो में देवेंद्र बता रहे थे कि देश को मल्टी लेवल फार्मिंग की आवश्यकता है।

खेतों को एक परिवार की तरह बनाया जाए। यानी एक खेत में अलग-अलग तरह के पौधे लगाए जाएं। इससे किसानों को हर सीजन में फसल मिलेगी।

खेत की मिट्टी भी समृद्ध होगी।

एथिकल फार्मिंग की ओर इशारा करते हुए ‘द बी मैन आफ इंडिया’ ने कहा, इस समय खेतों में रसायन का अत्यधिक प्रयोग हो रहा है?

यह स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है। अच्छा होगा कि इसे कम किया जाए।

बेहतर होगा कि खेतों में केंचुए को अपना काम करने दें। वह हल जोतने जैसा काम कर रहे हैं।

मधुमक्खियों को जगह दें। खेत में विविध पौधे लगाएं, फूलों के, फलों के सब्जियों के। और मौसमी फसल तो लगाएं ही।

अगर किसान खेत में ‘बी बाक्स’ रखे तो मधुमक्खियां आएंगी। इससे पैदावार बढ़ेगी। इस पर सोचना होगा।

शहरों में मधुमक्खियों को कैसे अनुकूल पर्यावास मिले, इस सवाल पर देवेंद्र जी का कहना था कि हर किसी के घर में गमले होते हैं। हो सके तो देसी पौधे लगाएं। उन्हें घर बनाने का अवसर दें। उनकी मदद करें।

किसी लकड़ी में तीन-चार छेद कर गमले के पास रख दें। इसके अलावा थोड़ा जल का प्रबंध कर दें। बच्चों को सिखाएं कि मधुमक्खी से डरें नहीं। वे आपकी मित्र हैं।

आयुषी के एक सवाल पर देवेंद्र का कहना था कि जिस खेत में चिड़िया आएंगी। मधुमक्खियां आएंगी, वहां फसलों पर सकारात्क असर पड़ेगा।

वे पर्यावरण संतुलन में भी संतुलन में भी भूमिका निभाती हैं।

 हम खुद डरेंगे तो बच्चे भी डरेंगे। एक बच्चे ने कहा, नानी दूर हट जाओ, मधुमक्खी मंडरा रही है।

इस पर नानी ने बच्चे को समझाया, डरो नहीं। यह मेरी मां है। यह मुझसे मिलने आई है। ... तो यह छोटी सी बात है।

हम बच्चों को इस तरह संवेदनशील बना सकते हैं। मधुमक्खियों के प्रति उनका जुड़ाव पैदा कर सकते हैं।

देवेंद्र जी का यह भी कहना था कि मनुष्य मधुमक्खियों से बहुत कुछ सीख सकता है।

एक अकेली रानी साठ हजार मधुमक्खियों के साथ किस तरह रहती है, उन्हें किस तरह संगठित कर काम करती है। यह हमें उनसे सीखना चाहिए।

खाना लेने कहां जाना है, कैसे जाना है?

सूरज की किरणों के किस एंगल में उड़ कर जाना, यह सब रानी मधुमक्खी ही गाइड करती है।

सभी मधुमक्खियों में एक सटीक कम्युनिकेशन होता है। छत्ते में वे बेहद आर्गनाइज तरीके से रहती हैं।

इस तरह से वे सिखाती हैं कि समूह में हम भी किस तरह व्यवस्थित तरीके से रह सकते हैं। दरअसल, वे जिंदगी का पाठ पढ़ाती हैं।

आयुषी के इंस्टाग्राम पर चर्चित टॉक शो में देवेंद्र बता रहे थे कि मधुमक्खियां किसी को काटना नहीं चाहतीं।

वे खुद ही अपने काम में व्यस्त होती हैं। वे कम समय में बहुत सारा काम निपटाती हैं। क्या कोई सीखेगा उनसे।

उनके लिए तो गांव-गांव और शहर-शहर हमें माहौल बनाना चाहिए। अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि लोगों में मिठास बांटना कम से कम मधुमक्खियों से ही सीख लीजिए।

 

 



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