धार्मिक पर्यटन के लिए तरस रहे खजुराहो के 24 अद्भुत मंदिर

वीथिका            Feb 03, 2024


रजनीश जैन।

खजुराहो के शेष बचे हुए चंदेल कालीन 24 मंदिरों में से कुछ मंदिरों के गर्भगृहों में प्रतिष्ठित मुख्य विग्रह (प्रतिमाएं) सुरक्षित हैं। जैसे कि सबसे विशाल शिवमंदिर कंदरिया महादेव का मुख्य शिवलिंग पूरी तरह सुरक्षित है। इसके नंदी मंदिर जैसे उपमंदिर भी पूरी तरह सुरक्षित हैं।

ऐसा भी नहीं कि सभी मंदिरों के बाहृय पृष्ठों पर यौन प्रतिमाएं बनी ही हों, वस्तुस्थिति यह है कि दो चार ही ऐसे मंदिर खजुराहो में ऐसे हैं जिनमें यौनक्रीडा़ओं को दर्शाया गया है। इस यौन दृश्यांकन की भी आध्यात्मिक व्याख्याएं शैव व शाक्त दर्शनों में विद्यमान हैं।

यह विडंबना ही है कि यहां के अखंडित विग्रहों और यौनाकृतियों रहित मंदिरों में भी पूजा अर्चना मंदिर है।

हालांकि मैं स्वयं एक दशक से खजुराहो नहीं गया। जब जाता था तब की जानकारी के अनुसार संभवतः एक या दो मंदिरों में पूजा अर्चना की अनुमति थी। जैन मंदिरों में भी जैन श्रद्धालु जाते रहे हैं। पुरातत्व विभाग ने पुरातात्व केंद्रित पर्यटन की दृष्टि से खजुराहो के मंदिरों में पूजा अर्चना बंद कर रखी है। कंदरिया महादेव जैसे अप्रतिम मंदिर जिसके गर्भगृह का मुख्य शिवलिंग पूरी तरह अखंडित है उसमें भी पूजा अर्चना वर्जित है।

यह बात और है कि पूरे मंदिर का सौंदर्य और चुम्बकीय आकर्षण देखते देखते जब पर्यटक भीतर गर्भगृह में शिवलिंग के समक्ष पहुंचते हैं तो उनके हाथ श्रद्धा और आस्था के वशीभूत स्वत: ही जुड़ जाते हैं और आराधना में शीष झुक जाते हैं।

मुझे लगता है कि बहुतेरे दर्शनार्थियों में यह आस्था गर्भगृह में विराजमान ईश्वर के साथ-साथ उन कुशल शिल्पियों के सम्मान में भी प्रकट होती है जिनका शिल्प और स्थापत्य इतना बेजोड़ था कि पत्थरों में प्राण डाल देना जैसा दिव्य, ईश्वरीय कार्य उन्होंने किया। 

वर्तमान में भारत में बन रहे सभी शैलियों के मंदिरों में ऐसा सूक्ष्म मूर्तिशिल्प और स्थापत्य देखने में नहीं मिलता जैसा कि खजुराहो जैसे एक हजार साल प्राचीन मंदिरों में पाया जाता है। बहुत से प्राचीन मंदिरों को देखने के बाद मेरा आकलन यह है कि पिछले एक हजार सालों में हम मंदिर व मूर्ति शिल्प निर्माण के सौंदर्य व कुशलता में आई निरंतर न्यूनता का क्रम हम देश भर में देख सकते हैं। न्यूनता का यह क्रम भी उदाहरणों, कारणों आदि के साथ किसी शोधार्थी का विषय होना चाहिए।

आज अयोध्या के राममंदिर और बुंदेलखंड के दमोह जिले में कुंडलपुर के आदिनाथ बड़ेबाबा मंदिर की तुलना एक हजार साल तक पुराने इसी नागर या द्वेसर शैली के मंदिरों से कर लें तो ये बिना नमक के भोजन की तरह रूखे और फीके लगते हैं। आज के मंदिरों में शिल्प का उत्कीर्णन साधारण है।

उदाहरण के लिए हजारों करोड़ रुपए की लागत से बन रहे थे अयोध्या के श्रीराम मंदिर की तुलना हम खजुराहो के कंदरिया महादेव से करें तो श्रीराम मंदिर सिर्फ आकार में 33-35% बड़ा है लेकिन प्रतिमा उत्कीर्णन, शिल्प, सुडौलता, आनुपातिक लय यानि शिल्प और स्थापत्य दोनों की दृष्टि से देखें तो नवनिर्मित श्रीरामलला मंदिर खजुराहो के कंदरिया महादेव मंदिर से 90 प्रतिशत पिछड़ा हुआ है।

यहां इस फर्क को रेखांकित कर लीजिए कि कंदरिया महादेव में बलुआ पत्थर और ग्रेनाइट के पत्थर पर शिल्प है जो राजस्थान के लाल पत्थर और मकराना के मार्बल से ज्यादा मुश्किल और जटिल है।

संक्षिप्त में कहें तो मंगल और चंद्र यानों के इस उच्च तकनीकी युग 2024 में हम मंदिर निर्माण तकनीक में 1500 वर्ष पीछे पहुंच गये हैं। सोने की चिड़िया-विड़िया से लेकर पांचवी और तीसरी अर्थव्यवस्था आदि की दृष्टियों से आप मूल्यांकन करते रहिए तब और अब की परिस्थितियों का। भारी क्रेनों और लेजर कटर्स के इस तकनीकी प्रधान युग में इन मंदिरों के निर्माण में समय अब भी लगभग उतना ही लगा है।

बहरहाल मैं फोकस इस बात पर लाना चाहता हूं कि हमारे पिछड़े बुंदेलखंड में खजुराहो जैसा एक शहर है जिसमें आज की तुलना में खरबों रुपए के निवेश से सनातनी परंपरा के ही देवी देवताओं के मंदिर निर्मित किए गए। पुरातत्व विभाग के नियमों में गुंजाइश बना कर आपकी कृपा दृष्टि धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से खजुराहो पर भी हो जाए तो यहां आपको ज्यादा पोटेंशियल मिल सकता है।

अभी हफ्ते भर में कुछ फ्लाइटों को छोड़ कर ठीकठाक रेलवे कनेक्टिविटी तक खजुराहो को नहीं मिल सकी है। काशी विश्वनाथ, अयोध्या, उज्जैन, मथुरा के साथ खजुराहो को भी नई अर्थदृष्टि से मूल्यांकित कीजिए। इसे भी ध्यान, आध्यात्म की धर्मनगरी की अर्थदृष्टि से देखिए ताकि बुंदेलखंड सिर्फ जंगल और खेतों वाले बुंदेलखंड के टैग से ऊपर उठ सके।

यदि राममंदिर अयोध्या में है तो खजुराहो में लक्ष्मण मंदिर भी है। कुछ पुरातत्व स्थल अब भी इतनी सुदृढ़ स्थिति में हैं कि उन्हें धार्मिक टूरिज्म के लिए खोला जा सकता है। यदि सुदृढ़, रिक्त गर्भगृहों वाले और आंशिक भग्न हैं तो उन्हें आज की उच्च तकनीकों से सुधारिए, पुनर्निर्मित कीजिए, नई प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा कीजिए, खंडित प्रतिमाओं को ऐसे संशोधन की प्रक्रिया से गुजारिए कि पुराना जस का तस रहे और पूर्णता भी मिल जाए।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

 


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