मल्हार मीडिया डेस्क।
'पचपन खम्भे लाल दीवारें' "उषा प्रियंवदा" द्वारा लिखा गया एक महिला केंद्रित उपन्यास है, जिस पर यह धारावाहिक आधारित है।
दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक जिसमें "मीता वशिष्ठ" और "अमन वर्मा" 'सुषमा' एव 'नील' के किरदार में नजर आऐ थे।
यह उपन्यास एक लड़की के अपने परिवार के लिए किए गए बलिदानों को बेहद मार्मिक रूप में चित्रित करता है। यही नहीं, यह उपन्यास भारतीय महिलाओं के जीवन के अलग-अलग मुद्दों पर प्रकाश डालता है।
इस कहानी की मुख्य किरदार है सुषमा। जो एक स्वावलम्बी और आत्मविश्वासी महिला है। इसके आलावा वह अपने घर की आय का एकमात्र साधन है। पूरे परिवार की ज़िम्मेदारियां उसके ऊपर हैं।
सुषमा दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक गर्ल्स कॉलेज में लेक्चरर है और बाद में अपनी काबिलियत के दम पर वार्डन भी बना दी जाती है। आर्थिक और शारीरिक रूप से आज़ादी होने के बाद भी वह कई तरह के बंधनों में है। ये अदृश्य बंधन उससे कुछ इस तरह से लिपटे हुए हैं कि वह अपनी खुशी और अपनी ज़िंदगी के फैसले भी अपने अनुसार नहीं ले पाती।
सुषमा का पूरा परिवार आर्थिक रूप से पूरी तरह उस पर आश्रित है और वह हर संभव तरह से उससे लाभ ही लेना चाहता है। हर कोई उससे बस अपने ही फायदे की बात करता है यहां तक की उसकी मां भी।
वह सुषमा के माथे पर सारा क़र्ज़ मढ़कर छोटी बेटी नीरू की शादी करवाती है लेकिन कभी भी उसकी शादी की बात नहीं करती है।
सुषमा के अंदर सूनेपन की एक टीस है वह भी अपना संसार बसाना चाहती है, पति और बच्चे चाहती है लेकिन उसके पैसे के लालच में घरवाले उसकी शादी नहीं करना चाहते हैं।
उसके अपने परिवार से कोई भी उसका दुख और अकेलापन समझना नहीं चाहता।
"इसे पढ़ते हुए यह महसूस होता है कि नए ज़माने की एक स्वावलंबी स्त्री किस तरह समाज से त्रस्त रहती है।
पूरी तरह से आत्मनिर्भर होने के बाद भी समाज में वह अपने फैसले खुद नहीं ले सकती। औरतों से सिर्फ बलिदान की उम्मीद रखी जाती रही है।
समय बदला, औरतों के रहने का तरीका बदला मगर समाज की सोच नहीं बदली"
सुषमा सबके बारे मे सोचती है और अपने बारे में नहीं।
ऐसा नहीं है कि वह अपने बारे में सोचना नहीं चाहती लेकिन जिस तरह से औरतों के मानसिक ढांचे गढ़े गए हैं उसके अनुसार सुषमा का आचरण स्वाभाविक है।
कहानी के इस पक्ष से किताब को पढ़ने वाला लगभग स्त्री वर्ग खुद को उससे जुड़ा हुआ पाता है।
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