अनिल सिंह।
पूरनपुर विधानसभा का सेंट्रल हॉल सज चुका था।
हसन भाई गुलदस्ता एवं फरीद भाई मोमेंटो शानदार ड्रेस में तैयार होकर मौका मुआयना कर रहे थे।
एक-एक चीज की बारीकी से जांच हो रही थी।
लिस्ट का मिलान हो रहा था।
शॉल, मोमेंटो एवं गुलदस्ता की गिनती की जा रही थी।
तीन शॉल, मोमेंटो और गुलदस्ता टेबल के नीचे छुपाकर रखवा दिये गये कि अचानक कोई सम्मानित होने लायक दिख जाये तो उसे खाली हाथ वापस ना लौटना पड़े।
एहतियान दो चुस्त दुरुस्त युवा पत्रकार मांगेराम और छबीले को मुस्तैद कर दिया गया था। कि अगर किसी को दौड़ाकर सम्मानित करने की नौबत आये या फिर गट्टा खींचकर सम्मानित करना पड़े तो हांफने और सांस फूलने जैसी समस्या बीच में ना आये।
मौका था वरिष्ठ युवा पत्रकार गुलदस्ता और मोमेंटो भाई की जुझारू संस्था सहाफी पत्रकार जर्नलिस्ट संघर्ष एसोशिएशन हईया-हईया के बैनर तले आयोजित सम्मान समारोह का। पूरनपुर विधानसभा के कर्मचारियों का सम्मान होना था।
यह ऐतिहासिक घटना थी और घटनास्थल पर तमाम साक्षर-गैरसाक्षर पत्रकार मौजूद थे। अब तक पत्रकारों की किसी संस्था ने ऐसा नेक काम नहीं किया था।
बहुतेरी पत्रकार संस्थाओं ने पुलिस विभाग, अधिवक्ता, क्लर्क, अधिकारी, सूचना विभाग, सचिवालय सुरक्षा विभाग का सम्मान किया था, लेकिन किसी ने विधानसभा कर्मचारी या कवरेज कार्ड विभाग का सम्मान नहीं किया था।
हसन भाई गुलदस्ता एवं फरीद भाई मोमेंटो की जोड़ी पहली बार यह नेक काम करने जा रही थी।
सम्मान समारोह घटनास्थल पर कम भीड़ के अंदेशा के मद्देनजर गुलदस्ता एवं मोमेंटो भाई ने कुछ रिक्शा चालक एवं फेरीवालों को भी बुला लिया था।
रिक्शा एवं फेरीवालों की भीड़ में गलती से एक अफीमची रंगीले भी घुस आया था, जो रह रहकर माहौल गड़बड़ा रहा था।
इस भीड़ के बीच मंच पर मुख्य अतिथि विधानसभा के लीडर करेजा नारायण शिक्षित, उनसे थोड़ी कम मुख्य अतिथि बेंजामिन टैंकची और सबसे कम मुख्य अतिथि पीटर्सन दुबे विराजमान हो चुके थे।
इन तीनों महानुभावों को अपने हाथों पुरस्कार एवं सम्मान का वितरण करना था।
तीनों मेहमान अपने-अपने फील्ड के जाने-माने घाघ थे।
कांइयापने में कोई किसी से कम नहीं था, चिरकुटई भी सभी में कूट-कूटकर भरी गई थी, किसने कूटा था, इस जानकारी का अभाव था।
करेजा नारायण की गिनती देश के विद्वानों में होती थी, वह अक्सर अर्थवेद के नीचे दबे रहते थे, वहां से टाइम बचता तो अथर्ववेद ओढ़कर बैठ जाते।
अर्थवेद की चर्चा वह गिने-चुने दो-तीन लोगों से करते, लेकिन अथर्ववेद की चर्चा वह सबसे कर लेते।
यहां तक कि अपने चपरासी और अर्दली से भी।
अथर्ववेद की चर्चा पीटर्सन दुबे के अलावा किसी से नहीं करते।
दूसरे मेहमान बेंजामिन पत्रकारों के जानेमाने अग्रज थे। टुच्चेपने में उन्होंने एक मुकाम हासिल था।
कठोर चिरकुटई और सतत काइयांपने की बदौलत उन्होंने एक ऊंचाई हासिल की थी। ढरकपने में उनका कोई जवाब नहीं था।
पीटर्सन दुबे तो खैर बहुत बड़े वाले थे। चित्रगुप्त के भतीजे को समीक्षा अधिकारी बनाकर सीधे ब्रह्माजी से स्टांप पर लिखवा लिये थे कि विधानसभा निर्माण सतत चलता रहेगा। विष्णु जी के भांजे को संपादक नहीं बनाने पर उन्हें श्राप मिला था कि वह जीते जी सरकारी नौकरी से कभी रिटायर नहीं होंगे।
खैर, सेंट्रल हॉल खचाखच भर चुका था, इतनी भीड़ जमा हो चुकी थी कि सम्मानस्थल पर तिल रखने की जगह नहीं बची थी।
कुर्सियां भर चुकी थीं। स्थान नहीं मिलने की वजह से सम्मान पाने वालों को खड़ा होना पड़ा।
अफीमची को छोड़कर सब कुछ व्यवस्थित सा लग रहा था।
इसी बीच सम्मान पाने वालों में आगे जगह बनाने को लेकर धक्का-मुक्की शुरू हो गई। अव्यवस्था होते देख युवा पत्रकार मांगेराम दहाड़ा, ''खबरदार किसी ने एक कदम भी आगे बढ़ने की कोशिश की, उसके कदम बेदम कर दिये जायेंगे।''
मांगे की दहाड़ सुन बेंजामिन खड़े हुए। नाक के नीचे तक सरक आये चश्मे के ऊपर से देखते हुए कहा, ''धैर्य अनुज धैर्य।''
मांगे गुर्राया, ''खबरदार जो हमारे बीच में कोई बोला तो, खाल उधेड़ दूंगा, चमड़ी में भूंसा भर दूंगा।''
मांगे का रौद्र रूप देखकर बेंजामिन अथर्ववेद की चर्चा में जुट गये।
मांगे ने सम्मान पाने वाले सभी कर्मचारियों को एक लाइन बनवाकर खड़ा कर दिया।
छबीले ने सम्मानित होने वाले सभी कर्मचारियों के नामों की लिस्ट से मिलान कर लिया। सम्मानित होने के लायक पाये गये कर्मचारियों के बीच अफीमची रंगीले भी घुस गया।
एक-एक का नाम उनके पिता के नाम से मिलान करते समय अफीमची पकड़ा गया।
उसे अपने पिता का नाम ठीक से याद नहीं था। मांगे ने गट्टा पकड़कर उसे पत्रकारों की भीड़ में बैठाया।
जांच के बाद सभी कर्मचारी मौजूद पाये जाने की घोषणा छबीले ने माइक पर की और पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
कार्यक्रम विधिवत शुरू कर दिया गया।
समारोह का संचालन कर रहे फरीद भाई मोमेंटो ने मंच पर भाषण देने के लिये मुख्य अतिथि करेजा नारायण को आमंत्रित किया।
मुंह पर विद्वता और कंधे पर साहित्य का अथाह बोझ लिये करेजा नारायण उठे और कहा, ''जीवन एक संघर्ष है।
यह आसानी से आपको राज्यपाल नहीं बनने देती है।
संघर्ष करना पड़ता है। नैतिकता का ध्यान रखना पड़ता है।
वरिष्ठ साहित्यकार माइकल मिश्रा उन्नावी ने अपनी किताब 'नियुक्ति एवं वसूली' के अध्याय तीन के दूसरे भाग के चौथे श्लोक के पांचवें पैरा में लिखा है - नैतिकता की आड़ मा चौतिया बनावंतती, नाटकम पूरा करंती, भर्ती में पैसा क्यों छोड़ती, अर्थवेद मजबूतंती तो भांड में जाये जगतंती'- अर्थात जीवन में नैतिकता....।''
करेजा जी अभी आगे इस श्लोक की साहित्यिक व्याख्या करते उसके पहले ही सम्मानित होने वालों की लाइन में पीछे खड़ा कर्मचारी टॉम यादव लाइन तोड़कर चिल्लाने लगा, 'नैतिकता गई भाड़ में, पैसा लेकर...।'
टॉम यादव इसके आगे कुछ कहता, और मांगेराम-छबीले उस तक पहुंचकर उसे अपने कब्जे में लेते उससे पहले ही पीटर्सन दुबे मंच से कूदकर टॉम के पास पहुंच गये।
टॉम को जमीन पर पटकर उसके सीने पर चढ़ गये और उसका मुंह दबा दिया और कहा, ''करेजा जी जैसे विद्वान के बारे में अंड-संड बोलेगा हरामखोर।''
दुबे की फुर्ती देख मांगेराम और छबीले शार्मिंदा फील करने लगे।
इसी शर्मिंदगी के दबाव में दोनों ने लिस्ट में टॉम का नाम बाइसवें नंबर पर होने के बावजूद उसका सम्मान सबसे पहले करवा दिया।
मुंह में पान दबाये बेंजामिन मंच से उठे और जमीन पर पटकाये टॉम को शॉल, मोमेंटो और गुलदस्ता देकर सम्मानित करते हुए कहा, ''अनुज तरक्की करो, लेकिन उंगली मत करो।'' तालियों की गडगड़ाहट से हॉल गूंज उठा।
सबसे ज्यादा ताली बेंजामिन के चेले विषधर गंगोत्री ने बजाया।
नैतिकता पर खतरे के अंदेशा को देखते हुए करेजा का भाषण बंद कराने का निर्णय लिया गया।
ऐसा पहली बार हुआ था कि वरिष्ठ युवा पत्रकार गुलदस्ता और मोमेंटो भाई के किसी कार्यक्रम में व्यवधान उत्पन्न हुआ हो।
टॉम इन दोनों की नजरों से गिर गया।
टॉम करेजा और पीटर्सन की नजरों से भी गिरता उसके पहले ही अफीमची रंगीले बड़बड़ाते हुए उठने लगा।
लेकिन वह कुछ कहता या माहौल खराब करता गुलदस्ता और मोमेंटो के इशारे पर मांगे ने उसका गला पकड़ लिया और पीटर्सन दुबे के हाथों उसे सम्मानित करवा दिया।
सम्मान पाकर अफीमची खुशी में झूमते हुए शॉल बेचकर अफीम खरीदने भाग निकला। इसके बाद क्रमानुसार सभी कर्मचारियों को सम्मानित किया गया।
कर्मचारियों को विधानसभा निर्माण रत्न, विधानसभा नियुक्ति भूषण, विधानसभा वसूली अवार्ड जैसे सम्मानों से सम्मानित किया गया।
तीन बचे हुए मोमेंटो, शॉल, गुलदस्ता के चलते सम्मान करने का दबाव इस कदर बढ़ा कि विधानसभा में पूरे साल निर्माण कार्य कराने वाले पीडब्ल्यूडी के एक इंजीनियर और एक चपरासी को भी उनके इनकार के बावजूद कॉलर पकड़कर सम्मान किया गया।
जबकि पहले से तैयार सूची में इनका नाम अंकित नहीं था।
मांगे-छबीले की फुर्ती के बावजूद एक जूनियर इंजीनियर मौके से सम्मान बचाकर भाग निकला और नीलामी के लिये रखे गये नये सोफा और कुर्सियों के बीच जाकर छिप गया। हसन भाई और फरीद भाई की तलाशी की लाख कोशिशों के बावजूद अपना सम्मान बचाने में सफल रहा।
उदास गुलदस्ता और मोमेंटो भाई ने जूनियर इंजीनियर के हाथ नहीं आने पर सबसे ज्यादा ताली पीटने वाले विषधर को सम्मानित कर कार्यक्रम समाप्ती की घोषणा की।
(नोट - इस लेख का किसी भी जीवित, मृत या भटकती आत्मा से कोई संबंध नहीं है। यह पूरी तरह काल्पनिक घटना पर आधारित है।
अगर इसमें किसी को किसी से कोई समानता मिलती है तो वह पक्का उसी का हरामीपना है। शरीफ लोग इससे दूर रहे। पास आने पर झटका लग सकता है।)
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