रवि अवस्थी।
मध्यप्रदेश की पहली महिला मुख्य सचिव निर्मला बुच का बीती रात निधन हो गया। 97 वर्षीय श्रीमती बुच कुछ दिनों से अस्वस्थ थीं।
भाप्रसे की वर्ष 1960 बैच की अधिकारी श्रीमती बुच का समूचा कार्यकाल साफ-सुथरा रहा। इसके चलते सेवानिवृत्ति के बाद भी वह प्रशासनिक क्षेत्र की रोल मॉडल बनी रहीं।
उत्तरप्रदेश के खुर्जा जिले में 11 अक्टूबर 1925 को जन्मी श्रीमती बुच बाल्यकाल से प्रखर बुद्धि की रहीं। महिलाओं के प्रति होने वाले अन्याय को लेकर उनके मन में बचपन से ही सवाल उठते रहे। इसका उन्होंने प्रशासनिक सेवा में रहते हुए भी हमेश प्रतिकार किया।
महिलाओं के स्वावलंबन व उन्हें मानसिक गुलामी से मुक्त कराने,उनमें चेतना पैदा करने उन्होंने महिला चेतना मंच बनाया। इस दिशा में उन्होंने जीवन पर्यन्त काम किया। वर्ष 1955 में काशी हिंदू विवि से स्नातक श्रीमती बुच जर्मनी व फ्रेंच भाषा की भी जानकार थीं। ज्ञान साधना के दौरान उन्हें प्रिंसटन विवि की और से फैलोशिप भी प्रदान की गई।
वर्ष 1959-60 में वह भारतीय प्रशासनिक सेवा में आईं और 1961 में मसूरी अकादमी से प्रशिक्षण पूरा करने पर उनकी पहली पदस्थापना जबलपुर में रही। वह अनेक जिलों में कलेक्टर रहीं। देवास कलेक्टर रहते हुए पड़ोसी जिला उज्जैन के तत्कालीन कलेक्टर पंजाब निवासी महेश नीलकंठ बुच से उनकी प्रीत बढ़ी और वे विवाह बंधन में बंधे। श्री महेश नीलकंठ स्वयं भी एक सख्त प्रशासक रहे। उन्होंने राजधानी भोपाल के लिए जो कार्य किए वे आज भी याद किए जाते हैं। आठ वर्ष पहले उनका निधन हुआ।
श्रीमती बुच का समूचा एकेडमिक करियर बेदाग रहा। वह एक कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी रहीं। वर्ष 1975 से 1977 तक वह प्रदेश की वित्त सचिव बनीं। तो 22 सितंबर 1991 से 1जनवरी 1993 तक मुख्य सचिव रहीं। इस दौरान उन्होंने प्रदेश के विकास को जो रोडमैप बनाया वह मील का पत्थर साबित हुआ।
सेवानिवृत्ति उपरांत भी समाज व सरकार को अपनी सेवाएं देती रहीं। राज्य सरकार ने उन्हें अपना सलाहकार भी बनाया तो जोशी दंपत्ति मामले में जांच का दायित्व भी उन्हें मिला। उनका निधन प्रदेश के लिए एक अपूरणीय क्षति है। दिवंगत आत्मा को विनम्र श्रद्धांजलि।
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