ऋचा अनुरागी।
आइन्स्टीन ने कहा था कि आने वाली पीढ़ियाँ मुश्किल से ही विश्वास कर पाएँगी कि हम जैसा ही हाड़-माँस का कोई ऐसा भी आदमी कभी इस धरती पर पैदा हुआ था।
श्री राजेन्द्र अनुरागी जी कविता बापू : बच्चों के लिए , कुछ यही कहती है--
बच्चों! करो भरोसा, वे भी
थे हम-से इनसान।
जिनके कंठ एक ही बैठे
गीता और कुरान।
जिनने कर्म-धर्म दोनों की
की सीधी परिभाषा।
मस्तक को दी कर्मयोग ने
हाथ-पाँव की भाषा।
मेहनत में बसते थे जिनके
खुदा और भगवान।
हर पग अन्यायों के आगे
जिनने सीना ताना।
लेकिन फिर भी अन्यायी को
क्षमा योग्य ही माना।
तोपों से जा टकराती थी
जिनकी मधु-मुस्कान।
सत्य-अहिंसा में था जिनकी
ताकत का रहवास।
प्रेम-मन्त्र की महाशक्ति में
था अटूट विश्वास।
उनकी करुणामयी दृष्टि ही
थी अजेय अभिमान।
आई जहाँ-कहीं भी पशुता
मानवता के आगे।
बूढ़ी काया अंगारों पर
अविचल दौड़े-भागे।
आखिरकार इसी वेदी पर
किया आत्म- बलिदान।
थे जिनके दो हाथ, शक्ति थी
लेकिन साठ करोड़।
थे दो पाँव किन्तु देते थे
इतिहासी पथ मोड़।
शान्त मुटिठ् यों में थामें थे
जो विराट तूफान।
समता को मत-वाद न कह जो
'साम्य-योग' कहते थे।
ममता के झरने बापू के
अन्तर से बहते थे।
बापू तो थे ही, माँ भी थे
थी कोटी सन्तान।
करमचन्द गाँधी के सुत वे
मोहनदास सुनाम।
जनम पोरबन्दर में पाया
जीवन सेवाग्राम।
हरिजन की कुटियों तक पहुँचे
जिनके पीछे राम।
बच्चों ! करो भरोसा, वे भी
थे हम-से इनसान।
पापा बचपन में हमें किताबें लाकर देते थे। जिनमें स्वतंत्रता के सेनानी, झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई, भगत सिंह, आजाद , बाल गंगाधर तिलक, सुभाष चन्द्र बोस, जवाहर लाल नेहरु, गाँधी जी, और बहुत सी वे कहानियां भी जिनसे नैतिक शिक्षा के साथ राष्ट्र प्रेम की शिक्षा भी मिलती हो। कुछ बड़े हुये तो हमें गाँधी जी की 'पुस्तक सत्य के प्रयोग',' पिता के पत्र बेटी के नाम ' पं. जवाहर लाल नेहरू की पुस्तक,और भारतीय इतिहास, संस्कृति, सभ्यता को समझाने वाली पुस्तकों से हमारी दोस्ती कराई। बाद में हमें मुंशी प्रेमचंद, शरदचन्द्र, रविन्द्र नाथ टैगोर और अनेक साहित्यकारों के साहित्य भी पापा ने सहज उपलब्ध कराये। हमारी परवरिश में पापा नैतिक शिक्षा , संस्कृति और संस्कारों का विशेष ध्यान रखा। मुझे आज भी याद है जब पापा ने हमें गाँधी जी की पुस्तक "सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा" ला कर दी थी और उसके बाद रविवार को होने वाली बाल सभा ,जी हाँ -हमारे घर पापा हर रविवार शाम को एक बालसभा का आयोजन करते थे , हम सबको इसका बेसब्री से इंतजार होता था इसके लिये हम कहानी, कविताएं भी तैयार करते , जिसमें घर के बच्चों के अलावा आस-पड़ोस के बच्चे भी शामिल होते थे। यूं तो पापा भी शामिल रहते पर अगर वे अपनी व्यस्तता के कारण उस समय उपस्थित न हो पाते तो अगले दिन हमारी बाल सभा की जानकारी जरूर लेते। इस बाल सभा में सब अपनी-अपनी उपलब्धियों के साथ पूरे सप्ताह में की गई गलतियों को भी बताते, चाहे वह घर में की गई हो या स्कूल में या कहीं बाहर। छोटी से छोटी गलती जैसे पापा की शेविंग ब्लेड से चुपके से पेंसिल छील लेना हो ,क्राकरी तोड़ना हो या स्कूल में शैतानी की हो या झगड़ा, मोहल्ले के बच्चों के साथ मार पिटाई या और भी कुछ, सब सही-सही कबूल करना और माफी मांगना। हमें छोटी छोटी सजा भी मिलती और उपलब्धियों के लिये इनाम भी। जी , मैं बात कर रही थी गाँधी जी की पुस्तक सत्य के प्रयोग की हमसे पापा ने पूछा किस-किस ने उसे पढ़ा और क्या समझा, मुझ से बड़ी दो बहने हैं दोनों ने ठीक-ठाक जबाव दिया पर जब मेरी बारी आई तो मैंने कहा-पापा बाकी तो सब ठीक है पर मैं आपको सब सच बता दूंगी पर माँ की क्रॉक्ररी तुटाने पर उन्हें नहीं बताऊंगी क्योंकि जब आप नही होते हो तो माँ मारती हैं, और गाँधी जी ने यह कहीं नहीं लिखा कि सत्य सबको बताया जाये। दरअसल पापा बच्चों की पिटाई के सख्त खिलाफ थे ,पापा ने हँसते हुए स्वीकार कर लिया कि ठीक है तुम मुझे बता दिया करो, और माँ से मुखातिब हो बोले सत्य स्वीकारने के बाद सजा नहीं मिलनी चाहिए, मार तो कतई नहीं। पर उसका नतीजा यह हुआ कि अगर घर के नौकर भी कुछ तोड़-फोड़ करते तो माँ पापा से -कहती पूछो अपनी लाड़ली से इसी ने तोड़ा होगा? और नौकर बच जाते माँ के कोप भाजन से। हाँ पापा एक बात हमेशा कहते थे अगर गलती को तुम स्वयं स्वीकार कर लो तो वह तुम से दुसरी बार नही होगी। स्वयं से झूठ कभी मत बोलना।
गाँधी जी के विचारों से पापा बेहद प्रभावित थे और हम बच्चों को भी उनके बारे में स्वयं छोटी-छोटी कहानियां बना कर सुनाते और समझाते। आज जब हमारे नेता दोहरे मापदंडों को अपनाते हैं ,झूठ की नीव पर अपनी सत्ता खड़ी करते हैं। आदर्शों की तो बात ही मत कीजिए, ना कोई बड़ा है ना कोई छोटा यहाँ तो फकत् पद और पैसा है और जिसके पास यह सब है बस सब उसकी चरण वंदना में लगे हैं। तब गाँधी की जरूरत महसूस होती है। हमारे और हमारे बच्चों की जीवन की पाठशाला से नैतिक शिक्षा गायब हो गई है। गाँधी जी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है -उनके जीवन पर ' श्रवण पितृभक्ति नाटक' और हरिश्चन्द्र नाटक का गहरा प्रभाव पड़ा।वे लिखते हैं मैंने हरिश्चन्द्र नाटक को अपने मन में सैकड़ो बार खेला होगा।सब इनकी तरह सत्यवादी क्यों नहीं होते?
आज हमारे नौनिहालों को बेतूकी कहानियों, कविताओं को नर्सरी कक्षाओं में रटा दिया जाता है ,जबकी इस तरह की शिक्षाप्रद कहानियां उनके जीवन से दूर कर दी गई हैं। घरों से भी आदर्श गायब से हैं , स्कूलों और पाठयपुस्तकों से तो नदारद हैं। इन्हें भी राजनीति की दीमक खा गई। स्वतंत्रता सेनानी भी राजनीति खेमों ने बाट लिये है। जवाहर लाल नेहरू कांग्रेसी, लोहिया समाजवादी, अम्बेडकर बहुजन पार्टी, सुभाष चंद बोस कम्युनिस्ट और बीजेपी के पास ऐसा कोई नहीं था सो उन्होंने सरदार पटेल को लोहे में मूर्त कर अपना बनाने की कोशिश की और बापू का तो अपहरण ही कर लिया है। उन्हें अब क्या कहूं जिन्होंने -- तोते हिन्दू ,कबूतर मुसलमां बना दिये।
मुझे पापा इन सब मुद्दों पर बात करते हुए बेहद याद आते हैं और याद आती हैं उनकी रचनाएं-----
ये मकतब सभी अनाथ,
मस्जदें बेवा हैं;
ये मंदिर सिर्फ नुमाइश,
गिरजे नाटक हैं;
यदि अब भी मीरा कहीं हलाहल पीती है,
मंसूर और ईसा सूली पर चढ़ते हैं,
गांधी की हत्या करने वाले हाथ,वही बारुद लिये
बेखौफ़ लुमुम्बा की छाती तक बढ़ते हैं।
तब आदमी की औलाद निरी नालायक है,
उसके सब रहबर जाहिल-नीच-कमीने हैं;
उसका सारा साहित्य सिर्फ बकवासें हैं
इल्लोउसूल झूठे-नक्काल-नगीने हैं।
यदि अब भी फिरकों की नापाक लकीरों से
परवरदिगार की धरती बाँटी जाती हो;
चश्मेशाही का यौवन नोंचा जाता हो
झेलम-चिनाब की छाती बाँटी जाती हो!
केशर की क्यारी पर तोपें मँडराती हों,
शालीमारों की रौनक टैंक कुचलते हों;
इनसानों की ही पञ्चशील-आस्तीनों में,
विस्तारवाद के साँप-सँपोले पलते हों!
डल के बजरों पर शोले फेंके जाते हों,
बारुद निशातों में बिछवाई जाती हो;
हंसों के मानसरोवर-मोती-आँगन पर
कौओ की पल्टन आ अधिकार जताती हो!
ये कोरी बहस-डिबेटें-सेशन बन्द करो,
यू.एन.ओ. की इजलासों पर ताले डालो;
हिल उठें विषमता की धरती के ओर-छोर
प्राणों में ज्वालामयी चेतना धधका लो!
कुछ दिन को मुझ- सी शान्ति-समर्थक कलमों को
पकड़ो, ले जाकर तहखानों में बन्द करो
मेरी कविता के बँधे हुए फर्मे तोड़ो,
उनमें नव-क्रान्ति जगाने वाले छन्द भरो!
गाँडीव उठा लेने दो फिर से अर्जुन को,
हर जंगखोर ताकत की हिम्मत पस्त करो!
अब फिर से कोई हाथ नहीं बढ़ पाएगा,
आओ, पांचाली-धरती को आश्वस्त करो!
रघुपति राघव राजा राम
पतित-पावन सीता-राम।
ईश्वर-अल्ला तेरे नाम
सबको सन्मति दे भगवान।
सबको सन्मति दे भगवान।
सबको सन्मति दे भगवान।
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