ट्रेन की बर्थ बन गई मध्यप्रदेश में डॉक्टरी की पढ़ाई

खरी-खरी            Nov 27, 2017


राघवेंद्र सिंह।
मध्यप्रदेश का कुख्यात व्यापम महाघोटाला याने देशद्रोह का नया मॉडल। इसे राष्ट्रवाद का अतिरेक नहीं माना जाएगा। यह राष्ट्रद्रोह का स्वदेशी मॉडल भी कहा जा सकता है। इसे चिकित्सा शिक्षा से लेकर सरकारी नौकरियों में टैलेंट को खत्म करने का कथित तौर पर षड्यंत्र सरकारों द्वारा पोषित संरक्षित सिस्टम कहें तो छोटे मुंह बड़ी बात नहीं होगी।

असल में आतंकवाद या राष्ट्रद्रोह सीमा पर घुसपैठ और देश में धमाके करना ही नहीं है। भोपाल में सीबीआई ने जांच में अरबपति रसूखदारों की गिरेबान पर हाथ डाला है, जिनकी तरफ एसटीएफ ने रुख नहीं किया था। अब प्याज की परतों की तरह एक एक रहस्य उघड़ने की एक धुंधली सी उम्मीद नजर आई है। मेडिकल कॉलेज मालिक संचालक सरकारी अफसरों पर शिकंजा कसा है। मगर महाघोटाले की माफिया टीम उसके सरगना तक जांच की आंच नहीं पहुंची तो बकाैल सुप्रीम कोर्ट सीबीआई फिर सरकार का तोता साबित होगी।

देश जानना चाहता है इस सुनियोजित संगठित महाघोटाले का डॉन कौन है। किसके पास जाती थी करोड़ों की रकम और भारतीय प्रतिभाओं को डॉक्टर अफसर बनने से रोकने का कौन काम कर रहा था। करीब 600 आरोपी और उनमें लगभग ढाई सौ नए नाम जुड़े हैं। जांच अभी जारी है। दिल थाम कर बैठना चाहिए नए-नए खुलासे के इंतजार में।

असल में व्यापम कांड ने प्रदेश की लोकप्रिय और राष्ट्रवादियों की शिवराज सरकार को कलंकित कर दिया है। एसटीएफ की जांच के दौरान करीब 50 लोगों की चर्चित मौतों ने संवेदनशील मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को रात भर सोने नहीं दिया था। नतीजतन फरियादियों की मांग और मुख्यमंत्री की बेचैनी ने सीबीआई जांच घोषित करा दी थी। यह सब उसका ही नतीजा है।

मजे की बात यह है कि जैसे ट्रेन में बिना रिजर्वेशन यात्रा करने वाले बोगी से बाहर होने के बजाय टीसी को रुपए देकर बर्थ ले लेते हैं। उसी तरह डॉक्टरी की पढ़ाई में अयोग्य बच्चों के माता-पिता से लाखों की मोटी रकम लेकर मेडिकल कॉलेज में सीट अलॉट करा दी जाती थी। जैसे ट्रेन में घूस देकर बर्थ मध्यप्रदेश में डॉक्टरी पढ़ना चिकित्सा शिक्षा नहीं बल्कि ट्रेन की सीट हो गई थी। शायद अब भी हो क्योंकि इसके रोकने की खबरें नहीं आई है।

पूरे घोटाले को समझने के लिए तो कोड वर्ड थे। वह अंडरवर्ल्ड डॉन और उनके माफियाओं से अलग नहीं थे, मसलन रैकेटिरयर्स ने इंजन, बोगी मॉडल जैसी शब्दावली ईजाद कर रखी थी और वह इसका इस्तेमाल करते थे। रैकेटिरयर्स इसका केंद्र होता था इसमें इंजन मतलब स्कोरर, बाेगी याने विद्यार्थी माने जाते थे। रैकेटिरयर्स लाखों रुपए लेकर डॉक्टर बनने वाले छात्रों को खोजते थे।

इसके लिए बकायदा नेटवर्क काम करता था। भोपाल इंदौर और शहडोल इसके केंद्र थे। अभी तो 2012 का ही खुलासा हुआ है। यह कारगुजारी 2009 से शुरू हुई थी। इस राष्ट्रविरोधी गठजोड़ में 4 मेडिकल कॉलेज के 26 कर्ताधर्ता समेत लगभग 28 लोगों की टीम शामिल थी। इसमें अफसरों के साथ नेता और माफियों का गठजोड़ अहम है। इंडेक्स, पीपुल्स, चिरायु और एल एन मेडिकल कॉलेज और उनका प्रबंधन शामिल है। काउंसलिंग मैं आखिरी दिन सरकारी कोटे की 160 सीटें लाखों में बेचकर करोड़ों के वारे न्यारे हो गए थे।

व्हिसिलब्लोअर डॉ आनंद राय कहते हैं यह दो हजार करोड़ से ज्यादा का खेल था। पूरी जांच में यह अरबों पार कर जाएगा। इससे भी खतरनाक यह है कि टैलेंट को साजिश के तहत बाहर कर दिया। जिस से कई होनहार डॉक्टर बनते और बाद में देश की संपत्ति साबित होते। जिन पर हम गर्व करते। लेकिन अब ऐसे डॉक्टर ज्यादा बने या बन रहे हैं जिन्हें हिंदी अंग्रेजी तक नहीं आती। वे इलाज कैसे करेंगे। एक तरह से सिर्फ डॉक्टरी की डिग्री बांटी जा रही है और जो मरीजों को मारने का लाइसेंस साबित होगी।


सीबीआई के आरोप पत्र से चिकित्सा माफिया और सत्ता के गलियारों में सन्नाटा छाया हुआ है। अभी तो 2012 का ही केस खुला है। असल में मेडिकल कॉलेज में उन्हें भी प्रवेश दे दिया गया जिन्होंने पीएमटी भी नहीं दिया था। सीबीआई के विशेष न्यायाधीश डी पी मिश्रा ने कहा जो कुछ हुआ उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। यह प्रतिभाशाली और मेहनतकश विद्यार्थियों के साथ अन्याय की कहानी है जिनके भविष्य के साथ खिलवाड़ हुआ है।

सीबीआई के 1500 पेज के आरोप पत्र में 592 आरोपी हैं। इनमें 245 नए हैं। प्रमुख आरोपियों में पीपुल्स के सुरेश विजयवर्गीय, अजय गोयनका, जय नारायण चोकसे और सुरेश भदौरिया प्रमुख हैं। हर बार दलालों की नजर में रहती थी प्राइवेट कॉलेजों की 252 सीटों पर। दलालों से मिलकर प्राइवेट मेडिकल कॉलेज सरकारी कोटे की सीटों पर स्कोरर, इंजन, बोगी की टीम के साथ सौदा करते थे। दावा यह है कि 2012 में इस गठजोड़ ने करीब 500 सीटें बेंची थी। इस में प्रवेश के आखिरी दिन चयनित फर्जी विद्यार्थी प्रवेश लेने से इंकार कर देते थे और उनकी खाली सीटों पर पूर्व से निर्धारित दावेदारों को प्रवेश दे दिया जाता था,जैसे ट्रेन में सीटों की बर्थ बिक जाती है।

(लेखक आईएनडी 24 के समूह प्रबंध संपादक हैं)

 


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