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अपनी जिद में अर्थव्यवस्था की स्ट्रेंथ पर हथोड़ा प्रहार वाजिब नहीं

खरी-खरी            Nov 08, 2017


वीरेंदर भाटिया।

इस लेख को मोदी विरोध की नजर से देखने की बजाय एक स्वस्थ विवेचना के रूप में पढ़ने पर कुछ चीजों पर हमारी दृष्टि साफ़ हो सकती है।

किसी भी मुल्क की मुद्रा उस मुल्क की आर्थिक नीतियों का आईना होती है। जो मुल्क अपनी मुद्रा को टूल की तरह प्रयोग करते हैं वह मुल्क इस विश्व की मजबूत अर्थव्यवस्थाएं हैं। अमेरिका अपने डॉलर की वजह से विश्व्व में दादागिरी करता है और उसने प्रत्येक मुल्क के खजाने के लिए डॉलर जरुरी कर रखा है। जब भी अमेरिका पर मंदी का कोई संकट आता है तब पूरा विश्व अमेरिका को बचाने के लिए आगे आ जाता है क्योंकि जब मंदी आएगी तब अमेरिका डॉलर खींच लेगा और सभी देशो का बैलेंस ऑफ़ पेमेंट गड़बड़ा जाएगा।

दूसरा मुल्क चीन है जिसने अपनी मुद्रा का महत्व समझा और उसे टूल की तरह प्रयोग किया। चीन की अर्थव्यवस्था के हिसाब से युआन की फंडामेंटल वैल्यू आँकी जाए तो वह डॉलर से सस्ता नहीं हो सकता लेकिन चीन ने अपने युआन को जानबूझकर सस्ता रखा हुआ है और पूरे विश्व् के कारोबार को इस शर्त पर खींच रहा है कि आईये यहाँ आपको कॉस्ट ऑफ़ प्रोडक्शन में बड़ी राहत मिलेगी क्योंकि एक मोबाइल uk या अमेरिका में बनाने पर जो कॉस्ट आती है उस से बहुत कम कॉस्ट में आप उसे चीन में बना सकते हैं।

चीन की यह आर्थिक नाकाबंदी है जिसके मूल में मुद्रा को टूल की तरह प्रयोग करने की रणनीति है। इसी वजह से एशिया में करेंसी वार शुरू हुआ और जापान तथा भारत ने अपनी अपनी मुद्रा सस्ती की। भारत मुद्रा सस्ती करने की प्रक्रिया में जैसे आगे बढ़ता है वैसे ही महंगाई में घिर जाता है। मनमोहन सिंह चूँकि अथ्शास्त्र को समझते थे तो उन्होंने महंगाई के फ्रंट पर अलग इंतजाम किये और दोनों तरफ चीजों को बैलेंस करने में अपनी ऊर्जा व्यय की।

मोदी जी के आने के बाद जैसे ही इन्होंने विदेशी दौरों की झड़ी शुरू की उस से लगा कि करेंसी सस्ती करने के बाद का जो काम था कि विदेशी निवेश को आकर्षित करने की प्रक्रिया में जो आक्रामक नीति चाहिए उस पर मोदी जी चल पड़े हैं। मनमोहन सिंह जी क्योंकि presentable नहीं हैं इसलिए मोदी जी जैसे मार्केटिंग के सिद्धहस्त के हाथों देश आने से विदेशी निवेश बड़ी मात्रा में आएगा और स्किल इंडिया तथा साथ ही साथ मेक इन इंडिया की रणनीति चलाकर हम आने वाले दस सालो में विदेशी निवेश की निर्भरता से निकल जाएंगे।

इतना ही नहीं चीन की तरह हर घर रोजगार आएगा और हम निर्यात में चीन का विकल्प बन खड़े होंगे जिस से हम विश्व के सामने मजबूत विकल्प के रूप में सामने होंगे, चीन को मात देने की यह सबसे कारगर नीति थी जिस पर शुरुआतों दिनों में मोदी जी चलते दिखाई दिए!

फिर ना जाने क्या हुआ। एक रात मोदी जी ने सब उलट दिया। एक रात मोदी जी को ख्याल आया कि मुल्क में एक समानांतर अर्थव्यवस्था चल रही है। उस पर चोट करने की जरुरत है। मोदी जी ने बहुत त्वरित फैसला लेते हुए बड़े नोट देश की अर्थव्यवस्था से बाहर कर दिए और उसकी जगह नए नोट अर्थव्यवस्था में डाल दिए।

कोई यदि अर्थव्यवस्था की मूल समझ नहीं रखता तो वह यकीनन अपनी मूर्खता एक दिन दिखा ही देता है। सरपट दौड़ते देश को एकदम ब्रेक लग गए, पूरा विश्व जो भारत को चीन के एक बड़े विकल्प के रूप में देख रहा था वह निराश हुआ और चीन में उस दिन दिवाली हुई कि मूर्खता में भारत ने इतिहास रच दिया है, अब हमें तीस साल तक कोई नहीं हरा सकता, हम एशिया के दादा है।

देश की ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी में समानांतर अर्थव्यवस्था रहेगी ही! एक साल के बाद भी मोदी जी यदि यह दावा करें कि उन्होंने दस प्रतिशत भी उस सिस्टम को नष्ट किया है तो हम नोटबंदी को सफल कह सकते हैं। लेकिन समानानान्तर अर्थव्यवस्था असल में कोई मुद्दा ही नहीं है।

अमेरिका और चीन जो मुल्क की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं वहां भी समानांतर अर्थव्यवस्थाएं चल रही हैं। जहाँ—जहाँ टैक्स की बड़ी मार है वहां—वहां कोई सरकार समानांतर अर्थव्यवस्था यानी दो नंबर के लेनदेन को और दो नंबर की कमाई को आप रोक नहीं सकते।

एक मजे की बात और सुन लीजिये कि 2008 में जो वैश्विक मंदी आयी थी उस से तमाम डॉलर इकॉनमी कांपने लगी थी। सिंगापूर दुबई हांगकांग में समानांतर अर्थव्यवस्था ना के बराबर है। सब कागजो में है। उस मंदी में जो सेंक है वह आम आदमी तक आया लेकिन भारत में आप किसी आम आदमी से पूछिए कि 2008 में जो मंदी आयी थी उसका आप पर क्या प्रभाव पड़ा तो वह पूछेगा कि कब आयी मंदी, हमे तो पता नहीं।

मंदी के व्यापक असर को यह देश जज्ब कर गया, क्योंकि समानांतर अर्थव्यवस्था में जो पैसा हिसाब में नहीं है उस पर कोई गाज नहीं है। मंदी का पहला झटका तो सरकार पर ही आता है और वह उस झटके को जनता में छोड़ देती है।

समानांतर अर्थव्यवस्था पर अटैक करने का साधन वैसे भी नोट बंदी कभी नहीं होती। क्यों नहीं आप इनकम टैक्स खत्म करके बैंको को खुला छोड़ते कि trasanction की लिमिट अनलिमिटेड कर दो? ट्रांसक्शन चार्ज लगा दो? देखते ही देखते बैंको का npa खत्म हो जाएगा। किसी को टैक्स बचाना ही नहीं है तो वह बैंक में आने से क्यों डरेगा? indiect टैक्स आपने लगा ही रखे हैं, ना इस से किसान बचता है ना व्यापारी।

पिछले ही वित्तीय वर्ष में आपका टैक्स कलेक्शन 9 लाख करोड़ रूपये है जिसमें से छह लाख करोड़ रूपये तो indirect टैक्स ही है और तीन लाख करोड़ इनकम टैक्स है। जी एस टी आपने लगा दिया है उस से टैक्स ही टैक्स मिलेगा। इनकम टैक्स का पूरा अमला फ्री करके जी एस टी में प्रयोग कीजिये, तीन लाख करोड़ के इनकम टैक्स के लिए सालाना एक लाख करोड़ आप अमले पर खर्च रहे हैं।

खैर, नोटबंदी के बाद फिर क्या हुआ। मोदी जी ने जितनी यात्रायें की थीं वह सब कूड़ा हो गयी! क्योंकि प्रत्येक यात्रा देश में निवेश बढ़ाने और व्यापार के लिए थी। कोई डील यदि इस साल में सिरे चढ़ी तो वह हथियार खरीदने की चढ़ी क्योंकि उसमे आप पैसे दे रहे थे, आपको पैसे देने वाली कोई डील सिरे नहीं चढ़ी।

एक साल में विदेशी निवेशकों ने बड़ी मात्रा में पैसे निकाले, निर्यात कम हो गया, आयात बढ़ गया, यानी इकॉनमी का उल्टा चक्र शुरू हो गया, आपके ख़ज़ाने में डॉलर कम हो गए। खजाने की रिपोर्ट स्वस्थ रहे और बैलेंस ऑफ़ पेमेंट ठीक रहे इसको आपने अनोखे तरीके से मैंटेन किया और आपने ओपन मार्किट से बड़ी मात्रा में डॉलर खरीदे। यह खरीद पूरे विश्व ने देखी और बड़ी खबर बनी लेकिन भारतीय मीडिया ने यह खबर नहीं दिखाई।

यह खबर दरअसल देश के हालात को बयान कर रही है कि आपके खजाने आपके नेचुरल बिजनेस में नहीं भर रहे हैं, आपको जुगाड़ करना पड़ रहा है अब। देश की जीडीपी आप 30 प्रतिशत तक नीचे आ गई।

हम सबसे तेज बढ़ती इकॉनमी बन रहे थे लेकिन एक दम हमने सब गुड़ गोबर कर दिया। हम दो करोड़ रोजगार हर साल पैदा करने वाली इकॉनमी दे रहे थे और जैसा कि मैंने लेख के शुरू में कहा कि जिस तरीके से मोदी जी चले थे उस तरीके से दो करोड़ रोजगार का आंकड़ा छुआ जा सकता था। इकॉनमी में यह स्ट्रेंथ थी उस वक्त और देश में युवा शक्ति भी है, क्या बेहतर इंडिया बनता मोदी जी, लेकिन आज स्थिति यह है कि एक साल में दो करोड़ रोजगार समाप्त हो गए हैं।

काला धन नहीं ही आया, मोदी जी ने प्रचार किया कि वह कालाधन में संलिप्त किसी भी आदमी को छोड़ेंगे नहीं लेकिन मोदी जी ने तमाम भ्रष्ट लोग अपनी पार्टी में ले लिए। मोदी जी ने काला धन से चुनाव जीतने जारी रखे। मोदी जी ने पनामा पेपर और पैराडाइस पेपर्स पर कुछ नहीं किया।

पाकिस्तान को हम नालायक देश कहते हैं लेकिन पनामा पपेर्स पर उन्होंने प्रधानमंत्री बलिदान कर दिया और हमारे प्रधानमंत्री और खुद के छवि निर्माता ने छवि के अनुरूप कोई काम नहीं किया बल्कि उन तमाम मगरमच्छों को स्पेस दिया जो कालाधन के स्त्रोत हैं।

नोटबंदी के बाद क्या हुआ यह बताने की जरुरत नहीं है लेकिन मोदी जी की जिद ने देश का कितना बड़ा अहित किया है इसे आप इस तरीके से समझ सकते हैं कि मुल्क को मोदी जी ने तीस बरस पीछे धकेल दिया है। जेटली जी बार—बार कहते नजर आते हैं कि हमारे फैसलों का परिणाम कुछ सालो बाद नजर आएगा।

मैं कहना चाहता हूँ कि ये देश की भीतरी स्ट्रेंथ है जो आने वाले सालों में देश को तरक्की की ओर फिर लेकर चलेगी और यह तब होगा जब नोटबंदी की मार से इकॉनमी बाहर निकलेगी। जेटली जी इस बात को बेहतर जानते हैं कि नोटबंदी का कोई त्वरित फायदा मिलता तो मिल जाता दूरगामी कोई फायदा नोटबंदी का नहीं मिलेगा क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था वैसे ही कैश पर खड़ी होने लगी है और लगभग उतने ही नोट फिर से सिस्टम में आ गए हैं।

वह तमाम लोग जो मोदी जी को बताते थे कि एक नंबर से यदि कोई trasanction होती है तो उसके फुट प्रिंट रहते हैं और देश को हर ट्रांसक्शन पर टैक्स मिलता है ! कॅश में लिए गए सामान पर हर जगह टैक्स देना ही पड़ता है यह भी दूसरा सत्य है!

मुद्दा यह नहीं है कि देश में कोई कितना कमाता है, जो कमायेगा वह खर्च तो करेगा, खर्च करेगा तो देश का व्यापार बढ़ेगा, टैक्स बढ़ेगा, देश की कमाई बंद करके आप कैसा व्यापार बढ़ा रहे हैं कैसा टैक्स है यह समझ नहीं आता!

मुद्दा यह है कि सरकारी भ्र्ष्टाचार को ख़त्म किया जाए, विकास का पैसा नीचे तक आये यह जरुरी है। जरुरी यह भी है कि देश का पैसा देश में रहे, कोई अनाप—शनाप कमाई करके विदेश में पैसे सेटल ना करे।

बेहतर हो कि आने वाले दो सालों में मोदी जी को सद्बुद्धि आये और वह इलेक्शन मैनेजमेंट से हटकर आर्थिक मैनेजमेंट पर ध्यान फोकस करें और देश की अर्थव्यवस्था को उदार बनाये। ग्लोबल विलेज के जमाने में अनुदार अर्थव्यवस्थाएं मंदी की चपेट में जल्द आती हैं। हमारी अर्थव्यवस्था की जो स्ट्रेंथ है उस पर हथोड़ा प्रहार वाजिब नहीं है। सुधार कीजिये लेकिन धीरे—धीरे ताकि विकास अवरुद्ध ना हो, रोजगार पैदा करने वाली इकॉनमी को रोजगार हड़पने वाली इकॉनमी मत बनाइये।

 


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