जस्टिस दीपक मिश्रा, चार जजों के कारण जो अब चर्चा के केंद्र में

खास खबर            Jan 12, 2018


संजय कुमार सिंह।
पहली बार मीडिया के सामने आए सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने जो कुछ कहा है उसके मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश केंद्र में है। कौन हैं मुख्य न्यायाधीश हैं, कहां के हैं - उनके बारे में आप भी जानना चाहेंगे। पेश है संक्षित परिचय।

जस्टिस दीपक मिश्रा ने 28 अगस्त 2017 को देश के 45वें मुख्य न्यायाधीश के पद की शपथ ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें शपथ दिलाई। दीपक मिश्रा ने जस्टिस जगदीश सिंह केहर की जगह ली है। 64 वर्षीय चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा का कार्यकाल 13 महीने और छह दिनों का है। वे 2 अक्तूबर, 2018 तक इस पद पर रहेंगे। दीपक मिश्रा भारत के मुख्य न्यायाधीश बनने वाले उड़ीशा के तीसरे न्यायाधीश हैं। उनसे पहले ओडिशा से ताल्लुक रखने वाले न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा और न्यायमूर्ति जीबी पटनायक भी इस पद पर रह चुके हैं।

जस्टिस दीपक मिश्रा का जन्म 3 अक्तूबर 1953 को हुआ था। 14 फरवरी 1977 को उन्होंने उड़ीसा हाई कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की थी। 1996 में उन्हें उड़ीसा हाई कोर्ट का एडिशनल जज बनाया गया और बाद में उनका तबादला मध्यप्रदेश हाई कोर्ट हो गया था। 2009 के दिसंबर में उन्हें पटना हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। 24 मई 2010 को उनका तबादला दिल्ली हाई कोर्ट में बतौर चीफ जस्टिस हुआ। 10 अक्तूबर 2011 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया।

जस्टिस दीपक मिश्रा ने कई ऐतिहासिक फैसले दिए हैं। मुंबई ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन को फांसी की सजा जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच ने ही सुनाई थी। याकूब के मामले में आजाद भारत में पहली बार सुप्रीम कोर्ट में रात भर सुनवाई चली थी। सुप्रीम कोर्ट में रात के वक्त सुनवाई करने वाली बेंच की अगुआई जस्टिस दीपक मिश्रा ने ही की थी और दोनों पक्षों की दलील के बाद याकूब की अर्जी खारिज की गई थी और फिर तड़के उसे फांसी दी गई थी। जस्टिस दीपक मिश्रा ने आपराधिक मानहानि से संबंधित कानूनी प्रावधान के संवैधानिक वैधता को सही ठहराया था। उन्होंने कहा था कि विचार अभिव्यक्ति का अधिकार असीमित नहीं है।

यूं तो जस्टिस दीपक मिश्रा ने अब तक के कैरियर में कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए हैं, लेकिन 30 नवंबर 2016 के अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट के रूप में न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच ने कहा था कि पूरे देश में सिनेमा घरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान चलाया जाए और इस दौरान सिनेमा हॉल में मौजूद तमाम लोग खड़े होंगे। हाल में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही आदेश को पलटते हुए सिनेमाघरों में फिल्म दिखाए जाने से पहले राष्ट्रगान बजाने की अनिवार्यता को खत्म कर दिया है। इस मुद्दे पर केंद्र सरकार कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि इस मुद्दे पर इंटर मिनिस्ट्रियल कमिटी का गठन किया गया है ताकि वह नई गाइडलाइंस तैयार कर सके। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के हलफनामे को स्वीकार कर लिया है और कहा है कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने संबंधी अंतिम फैसला केंद्र द्वारा गठित कमिटी लेगी।

संयोग से जब उनका मुख्य न्यायाधीश बनना तय हुआ तो उनकी पहचान इस फैसले से जोड़कर भी हुई जबकि बहुचर्चित निर्भया गैंग रेप केस में तीनों दोषियों की फांसी की सजा को जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच ने बरकरार रखा था। न्यायमूर्ति मिश्रा ने एक फैसले में दिल्ली पुलिस से कहा था कि वह एफआईआर दर्ज होने के 24 घंटे अंदर उसे अपने वेबसाइट पर अपलोड करे। जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई में एक स्पेशल बेंच बनाई गई है जो अयोध्या मामले की सुनवाई करेगी। इसके अलावा बीसीसीआई में सुधार, सहारा सेबी मामला भी जस्टिस मिश्रा की बेंच सुन रही है।

 


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